कार्ल फ्रीड्रिख गौस

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कार्ल फ्रीड्रिख गौस (Karl Friedrich,Gauss, सन्‌ 1777-1855), जर्मन गणितज्ञ, का जन्म 30 अप्रैल, 1777 ई. को ब्रंज़विक के एक राजपरिवार में हुआ था। बाल्यावस्था में इनकी गणना करने की अद्भुत योग्यता से प्रभावित होकर ब्रंज़विक के ड्यूक ने इनकी शिक्षा का भार ग्रहण कर लिया। 1807 ई. में ये गौटिंजन की वेधशाला के संचालक नियुक्त हुए और आजीवन इसी पद पर रहे। ये अपने अन्वेषणों को प्रकाशित करके प्राथमिकता प्राप्त करने के कभी इच्छुक नहीं रहे।

गणित को गौस की देनें अपूर्व हैं। सर्वप्रथम इन्होंने ही अनंत श्रेणियों का निर्दोष रूप से वर्णन किया, सारणियों एवं कल्पित राशियों की महत्ता को पहचाना तथा इनका विधिवत्‌ प्रयोग किया, लघुतम वर्गों की विधि का अन्वेषण किया और दीर्घवृत्तीय फलनों के द्विक्‌आवर्तक को ज्ञात किया। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ 'दिस्कुइजिस्योनेस अरितमेतिके' (Disquisitiones Arithmeticoe 1801 ई.) के चतुर्थ भाग में सर्वांगसमता के सिद्धांत एवं वर्गात्मक व्युत्क्रमी के नियम का (जिसमें वर्गात्मक शेष के सिद्धांत का समावेश है), पंचम भाग में वर्गात्मक रूपों और सप्तम तथा अंतिम भाग में वृत्त के भाग के सिद्धांत का वर्णन है। इन्होंने चतुर्घातीय शेष एवं व्युत्क्रमी, समांशिक दीर्घवृत्तजीय आकर्षण एवं केशाकर्षण, भूमापन विज्ञान और ग्रहों एवं पुच्छल तारों की गति ज्ञात करने के नियमों पर भी शोधपत्र लिखे। इन्होंने हेलियोट्रोप (Heliotrope) और दिक्पात यंत्रों का निर्माण भी किया। 23 फरवरी, सन्‌ 1853 को इनका देहांत हो गया।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 4 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 50 |

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