दामोदर धर्मानंद कोसांबी
दामोदर धर्मानंद कोसांबी
| |
पूरा नाम | दामोदर धर्मानंद कोसांबी |
जन्म | 31 जुलाई, 1907 |
जन्म भूमि | गोवा |
मृत्यु | 29 जून, 1966 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अनुसंधान |
प्रसिद्धि | विद्वान, भाषा-वैज्ञानिक और गणितज्ञ |
विशेष योगदान | दामोदर धर्मानंद जी का प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | वर्ष 1946 में दामोदर धर्मानंद कोसांबी को 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च' में आमंत्रित किया गया था, जहाँ ये 16 वर्ष तक काम करते रहे। |
दामोदर धर्मानंद कोसांबी (अंग्रेज़ी: Damodar Dharmananda Kosambi, जन्म- 31 जुलाई, 1907, गोवा; मृत्यु- 29 जून, 1966) भारत के प्रसिद्ध विद्वान, भाषा-वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे। गणित के अतिरिक्त भारत के इतिहास और संस्कृति में भी इनका अतुलनीय योगदान रहा है। दामोदर धर्मानंद जी ने सोलह वर्षों तक 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च' में अपनी सेवाएँ दी थीं। होमी भाभा के साथ अपने कुछ विवादों के चलते इन्हें संस्थान से हटा दिया गया था। इन्होंने कुछ ग्रंथ भी लिखे थे, जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।
जीवन परिचय
दामोदर धर्मानंद कोसांबी का जन्म 31 जुलाई, 1907 ई. को गोवा में हुआ था। धर्मानंद प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान, भाषा-वैज्ञानिक और गणितज्ञ माने जाते थे। इनके पिता बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान् थे और आस-पास के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध थे।
शिक्षा
धर्मानंद कोसांबी अमेरिका के 'हारवर्ड विश्वविद्यालय' में अध्यापक थे। अत: उनकी सारी शिक्षा अमेरिका में हुई थी। उनके अध्यन के मुख्य विषय थे- गणित, इतिहास और भाषा विज्ञान। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' और 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' में अध्यापन किया और उसके बाद 1932 में गणित के प्रोफेसर बनकर पूना के 'फ़र्ग्यूसन कॉलेज' चले गए। 1946 में उन्हें 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च' में आमंत्रित किया गया, जहाँ वे 16 वर्ष तक काम करते रहे।[1]
योगदान
गणित के अतिरिक्त दामोदर धर्मानंद का उल्लेखनीय योगदान प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में भी रहा। उन्होंने कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की भी रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं-
- 'मिथ एंड रियलिटी'
- 'स्टडीज़ इन द फार्मेशन ऑफ़ इंडियन कल्चर'
- 'द कल्चर एंड सिविलाइज़ेशन ऑफ़ एंशेंट इंडिया इन हिस्टोरिकल आउटलाइन'।
ऋग्वेद में देवियों की संख्या में अपेक्षाकृत कमी इस बात का प्रमाण है कि इस काल में आर्य महिलाओं की वास्तव में कमी थी।[2]
- दामोदर धर्मानंद कोसांबी
|
दामोदर धर्मानंद जी ने पश्चिम के इतिहासकारों की इस स्थापना का तर्कपूर्ण खंडन किया कि भारत की पुरानी सभ्यता बाहरी प्रभाव का परिणाम है। उनकी मान्यता थी कि भारत की अपनी आंतरिक परिस्थितियों का परिणाम था।
भाभा से मतभेद
पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रिय पात्र होमी जहाँगीर भाभा के साथ मतभेद के कारण प्रखर वैज्ञानिक चिन्तक, गणितज्ञ, समाजशास्त्री और इतिहासकार दामोदर धर्मानंद कोसांबी का 'टी.आई.एफ.आर' में रहते हुए भारत के सन्दर्भ में परमाणु ऊर्जा की तुलना में सौर ऊर्जा को श्रेष्ठ ठहराने का मुखर और घोषित तर्क था। अपने इसी विश्वास के चलते उन्हें होमी भाभा ने अपने संस्थान से हटा दिया था। दामोदर धर्मानंद जी के उठाये मुद्दों पर बाद में भी शासन द्वारा अक्सर सवालों को यथा संभव दबाया गया और ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों की अनदेखी की गयी।[3]
पुरुरवा-उर्वशी और कोसांबी
1951 में दामोदर धर्मानंद कोसांबी ने उर्वशी-पुरुरवा प्रसंग से संबंधित 18 ऋग्वैदिक ऋचाओं को रोमन लिपि में प्रकाशित किया और साथ में सरसरी टिप्पणी के साथ इनका शब्दानुवाद भी दिया। ठीक यहीं से शुरू हुई उनकी खोज का नतीजा था इसके दस साल बाद आई उनकी कालजयी कृति 'मिथ ऐंड रियलिटी' का दूसरा अध्याय 'उर्वशी ऐंड पुरुरवस'। अध्याय की शुरुआत कालिदास के नाटक 'विक्रमोर्वशीयम्' के सार-संक्षेप की प्रस्तुति से होती है, जिसमें उर्वशी को इंद्र के दरबार की नर्तकी माना गया है। नृत्य के समय उर्वशी के मुंह से इंद्र के लिए 'पुरुषोत्तम' की बजाय गलती से 'पुरुरवस' निकल जाने के एवज में उसे मृत्युलोक जाने की सजा सुनाई जाती है। यहां मात्र एक साल में समाप्त हो जाने के लिए अभिशप्त उर्वशी और पुरुरवा का प्रेम इस नाटक की जटिल कथावस्तु का आधार बनता है। इस किस्से का सार-संक्षेप प्रस्तुत करके कोसांबी सीधे शतपथ ब्राह्मण, और वहां से ऋग्वेद की तरफ मुड़ जाते हैं, जो उर्वशी के मिथक का उद्गम स्रोत है।[4]
भारत में बौद्ध धर्म की क्षय
ईसा पूर्व 1750 के आस-पास आर्य भाषा-भाषी कबीले भारत आने लगे और यहाँ बसने लगे। आर्य भाषी कबीलों का धर्म प्रकृति शक्ति के देवताओं पर आधारित था और यह धर्म भारत का भी धर्म बन गया। ईसा पूर्व 800-900 के आसपास लोहे के हल से खेती शुरू हुई, और ईसा पूर्व 500 के आसपास जैन और बौद्ध धर्म नए धर्म के रूप में पैदा किए गए जो आर्य धर्म से अलग थे। बौद्ध धर्म पूरे देश में फैल गया, और देश से बाहर चीन, जापान, बर्मा, दक्षिणपूर्व एशिया से इन्डोनेशिया तक फैल गया। चन्द्रगुप्त, अशोक, हर्षवर्धन जैसे बड़े-बड़े सम्राटों ने इस धर्म को अपनाया। यह धर्म लगभग 1500 वर्षों तक भारत का धर्म रहा। मगर 900-1000 ईसा पश्चात् तक आते-आते बौद्ध धर्म बाहरी दुनिया में फला-फूला मगर भारत में मिट गया। यह एक प्रख्यात ऐतिहासिक रहस्य है जिससे कई विद्वान् समय-समय पर जूझते रहे हैं। एक ऐसे विद्वान् हुए हैं-दामोदर धर्मानंद कोसांबी, जो आधुनिक भारत में इतिहास शास्त्र के जनक माने जाते हैं।[5]
नालंदा के संबंध में कोसांबी के विचार
इतिहासकार दामोदर धर्मानंद कोसांबी ने लिखा है कि नालंदा का अभ्युदय नाग-पूजा स्थलों से हुआ है। कभी-कभी विशेष अवसरों पर भिक्षुओं से भोजन प्राप्त करने के लिए आदिम नाग दयालु सर्प के रूप में प्रकट होता था। बौद्ध कथाओं में भी सर्पनाग के बारे में जानकारी मिलती है। बुद्ध ने आदिवासी नागों को अपने धर्म में दीक्षित किया था, विषैले सर्प को अधिकार में किया था। मुचलिंद नामक दैवी नाग ने प्रकृति के प्रकोप से उसकी रक्षा की थी, और वह अपने पूर्वजन्म में एक उभयरूप साहिवक नाग भी था। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि नालंदा का बौद्ध केन्द्र के रूप में विकास धीरे-धीरे तथा नाग कबीले के लोगों के व्यापक धर्मांतरण के कारण हुआ था। कृषि के व्यापक प्रसार के फलस्वरूप नाग जैसी आदिम कबीलाई जातियां समय के परिवर्तन से अपने को बचा नहीं सकीं।[6]
निधन
भारत के इस महान् प्रतिभा सम्पन्न प्रसिद्ध वैज्ञानिक, भाषा विज्ञानी और गणितज्ञ दामोदर धर्मानंद कोसांबी का निधन 29 जून, 1966 को हुआ।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शर्मा, लीलाधर भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ 379।
- ↑ डी. डी. कोसांबी, ऐन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ इंडियन हिस्ट्री, 1985, पृष्ठ 85
- ↑ वैकल्पिक ऊर्जा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2013।
- ↑ पुरुरवा-उर्वशी और डीडी कोसांबी (हिंदी) पहलू। अभिगमन तिथि: 29 जून, 2013।
- ↑ भारत में बौद्ध धर्म की क्षय – दामोदर धर्मानंद कोसांबी (हिंदी) भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी। अभिगमन तिथि: 29 जून, 2013।
- ↑ नालंदा: एक नई दृष्टि (हिंदी) rajuranjanprasad। अभिगमन तिथि: 29 जून, 2013।
संबंधित लेख