केते झाड़ फूंक भुतवा पुजयाबे को,
इधर उधर ताक- ताक बात बहु बनाते हैं।
जटा लटा धारी केते ताक़ते पराई नारी,
जुवारी बेकार लोग उनके पास जाते हैं।
सत संगत से दूर असंगत में चूर-चूर,
लगे माल हाथ कहीं यें ही वह चाहते हैं।
कहता शिवदीन मुख कारो घर गोपाल हूँ के,
कपटी असंत दुष्ट मोजां उड़ाते हैं।