गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे
जायस से वो हिंदी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे
जो अक्स उभरता है रसखान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे
तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे