चाँद है ज़ेरे-क़दम. सूरज खिलौना हो गया
हाँ, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
शहर के दंगों में जब भी मुफलिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलोना हो गया
ढो रहा है आदमी काँधे पे ख़ुद अपनी सलीब
जिंदगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया जिंद
यूँ तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियाँ क्या हुई मौसम घिनौना हो गया
अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं
इस अहद में प्यार का सिंबल तिकोना हो गया।