गोबी मरुस्थल

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गोबी मरुस्थल, मंगोलिया

गोबी मरुस्थल एशिया महाद्वीप में मंगोलिया के अधिकांश भाग पर फैला हुआ है। यह मरुस्थल संसार के सबसे मरुस्थलों में से एक है। 'गोबी' एक मंगोलियन शब्द है, जिसका अर्थ होता है- 'जलरहित स्थान'। आजकल गोबी मरूस्थल एक रेगिस्तान है, लेकिन प्राचीनकाल में यह ऐसा नहीं था। इस क्षेत्र के बीच-बीच में समृद्धशाली भारतीय बस्तियाँ बसी हुई थीं। गोबी मरुस्थल पश्चिम में पामीर की पूर्वी पहाड़ियों से लेकर पूर्व में खिंगन पर्वतमालाओं तक तथा उत्तर में अल्ताई, खंगाई तथा याब्लोनोई पर्वतमालाओं से लेकर दक्षिण में अल्ताइन तथा नानशान पहाड़ियों तक फैला है। इस मरुस्थल का पश्चिमी भाग तारिम बेसिन का ही एक हिस्सा है।

विभाजन

यह संसार का पांचवां बड़ा और एशिया का सबसे विशाल रेगिस्तान है। सहारा रेगिस्तान की भांति ही इस रेगिस्तान को भी तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. ताकला माकन रेगिस्तान
  2. अलशान रेगिस्तान
  3. मुअस या ओर्डिस रेगिस्तान

भौगोलिक स्थितियाँ

गोबी रेगिस्तान का अधिकतर भाग रेतीला न होकर चट्टानी है। यहाँ रेगिस्तान की जलवायु में तेज़ीसे बदलाव होता है। यहाँ न केवल सालभर तापमान बहुत जल्दी-जल्दी बदलता है, बल्कि 24 घंटों में ही तापमान में व्यापक परिवर्तन भी आ जाता है। गोबी रेगिस्तान में वर्षा की औसत मात्रा 50 से 100 मि.मी. है। यहाँ अधिकतर वर्षा गर्मी के मौसम में ही होती है। रेगिस्तान में अधिकतर नदियाँ बारिश के मौसम में ही बहती हैं।

गोबी मरुस्थल, मंगोलिया

अत: केवल वर्षा ऋतु में ही नदी में पानी रहता है। निकटवर्ती पर्वतों से जल धाराएँ रेगिस्तान की शुष्क भूमि में समा जाती हैं। यहाँ काष्ठीय व सूखा प्रतिरोधी गुणों वाले सैकसोल नामक पौधे बहुतायत में मिलते हैं। लगभग पत्ति विहीन यह पौधा ऐसे क्षेत्रों में भी उग आता है, जहाँ की रेत अस्थिर होती है। अपने इस विशेष गुण के कारण यह पौधा भू-क्षरण को रोकने में सहायक होता है। गोबी रेगिस्तान 'बेकिटरियन ऊंट', जिनके दो कूबड होते हैं, का आवास स्थल माना जाता है। कछु जगंली किस्म के गधे भी यहाँ पाये जाते हैं। संसार के रेगिस्तान के विशेष भालू इसी रेगिस्तान में पाए जाते हैं। इन भालूओं की प्रजाति 'मज़ालाई' अथवा 'गोबी' अब लुप्त होने के कगार पर पहुँच चुकी है। इसके अतिरिक्त यहाँ जंगली घोड़े, गिलहरी व छोटे कद के बारहसिंगे भी पाये जात हैं।

विस्तार

संसार के बड़े मरुस्थलों में से एक गोबी का मरुस्थल, जिसका विस्तार उत्तर से दक्षिण में लगभग 600 मील तथा पूर्व से पश्चिम में लगभग 1000 मील है, तिब्बत तथा अल्ताई पर्वतमालाओं के बीच छिछले गर्त के रूप में विद्यमान है। इसकी प्राकृतिक भू-रचना ढालू मैदान के समान है, जिसके चारों तरफ़ पर्वतीय ऊँचाइयाँ हैं। कटाव तथा संक्षारण क्रियाओं के प्रबल होने से यह मरुस्थल अपनी विशिष्ट भूरचना के लिये प्रसिद्ध है। सूखी हुई नदियों की तलहटियाँ तथा झीलों के तटों पर ऊँचाई पर स्थित जल के निशान यहाँ की जलवायु में परिवर्तन के प्रमाण हैं।

सभ्यता अवशेष

प्राचीन कालीन विभिन्न सभ्यताओं के द्योतक भग्नावशेष भी इस मरुस्थल में पाए जाते हैं। यहाँ गर्मी बहुत ज़्यादा और तेज़ पड़ती है तथा गर्मी में औसत तापमान 45° से 65° सें. तथा जाड़े का ताप 15° सें. तक रहता है। यहाँ पर कभी-कभी बर्फ़ के तूफ़ान तथा उष्ण बालू मिश्रित तूफ़ान भी आते हैं। यहाँ कि वनस्पतियों में घास तथा काँटेदार झाड़ियाँ मुख्य रूप से पाई जाती हैं। जल का यहाँ प्राय: अभाव ही रहता है। कारवाँ मार्गों पर 10 मील से 40 मील की दूरी पर कुएँ पाए जाते हैं।

जीव-जंतु

गोबी मरुस्थल, मंगोलिया

इस मरुस्थल के पूर्वी भाग में जहाँ दक्षिण-पश्चिम मानसून से कुछ वर्षा हो जाती है, वहाँ थोड़ी खेतीबाड़ी होती है, एवं भेड़, बकरियाँ तथा अन्य पशु पाले जाते हैं। उत्तरी-पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में भी भेड़ बकरियाँ पाली जाती हैं। सूदूर उत्तर में कुछ जंगल हैं। उत्तर में ओरखान तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियों में चीनी बस्तियाँ हैं। आबादी बहुत ही विरल है। मंगोल यहाँ की मुख्य जाति है। उत्तर तथा दक्षिण के घास के मैदानों में आदिवासी लोग हैं, जो खानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते हैं। कारवाँ मार्ग अधिकांश पूर्व से पश्चिम दिशा में हैं, जिन पर चीनी व्यापारी कपड़े, जूते, चाय, तंबाकू, ऊन, चमड़े तथा समूर आदि का व्यापार करते हैं।

भारतीय संस्कृति के अवशेष

गोबी मरुस्थल में 'सर औरेल स्टोन' द्वारा पुरातात्त्विक खुदाई में बौद्ध स्तूपों, विहारों, बौद्ध एवं हिन्दू देवताओं की मूर्तियाँ, बहुत सी पांडुलिपियाँ तथा भारतीय भाषाओं एवं वर्णाक्षरों में बहुत से आलेखों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों के बीच घूमते हुए सर औरेल को यह अनुभव होने लगा था कि, वे पंजाब के किसी प्राचीन गाँव में घूम रहे हैं। 7वीं शताब्दी में सुप्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग इसी गोबी मरूस्थल के रास्ते से ही भारत में आया और फिर चीन वापस गया। उसे इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म और भारतीय संस्कृति का प्राधान्य दिखाई दिया। ज्यों-ज्यों इस क्षेत्र में रेगिस्तान बढ़ता गया, त्यों-त्यों यहाँ पर भारतीय संस्कृति के केन्द्र विलुप्त होते गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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