जश्ने ग़ालिब -साहिर लुधियानवी

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जश्ने ग़ालिब -साहिर लुधियानवी
कवि साहिर लुधियानवी
जन्म 8 मार्च, 1921
जन्म स्थान लुधियाना, पंजाब
मृत्यु 25 अक्तूबर, 1980
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
मुख्य रचनाएँ तल्ख़ियाँ (नज़्में), परछाईयाँ (ग़ज़ल संग्रह)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
साहिर लुधियानवी की रचनाएँ

इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी-ए-कामिल को,
तब जाके कहीं हम को ग़ालिब का ख़्याल आया।
तुर्बत है कहाँ उसकी, मसकन था कहाँ उसका,
अब अपने सुख़न परवर ज़हनों में सवाल आया।

        सौ साल से जो तुर्बत चादर को तरसती थी,
        अब उस पे अक़ीदत के फूलों की नुमाइश है।
        उर्दू के ताल्लुक से कुछ भेद नहीं खुलता,
        यह जश्न, यह हंगामा, ख़िदमत है कि साज़िश है।

जिन शहरों में गुज़री थी, ग़ालिब की नवा बरसों,
उन शहरों में अब उर्दू बे नाम-ओ-निशां ठहरी।
आज़ादी-ए-कामिल का ऎलान हुआ जिस दिन,
मातूब जुबां ठहरी, गद्दार जुबां ठहरी।

        जिस अहद-ए-सियासत ने यह ज़िन्दा जुबां कुचली,
        उस अहद-ए-सियासत को मरहूमों का ग़म क्यों है।
        ग़ालिब जिसे कहते हैं उर्दू ही का शायर था,
        उर्दू पे सितम ढा कर ग़ालिब पे करम क्यों है।

ये जश्न ये हंगामे, दिलचस्प खिलौने हैं,
कुछ लोगों की कोशिश है, कुछ लोग बहल जाएँ।
जो वादा-ए-फ़रदा, पर अब टल नहीं सकते हैं,
मुमकिन है कि कुछ अर्सा, इस जश्न पर टल जाएँ।

        यह जश्न मुबारक हो, पर यह भी सदाकत है,
        हम लोग हक़ीकत के अहसास से आरी हैं।
        गांधी हो कि ग़ालिब हो, इन्साफ़ की नज़रों में,
        हम दोनों के क़ातिल हैं, दोनों के पुजारी हैं।


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