ताजमहल

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ताजमहल
ताजमहल
ताजमहल
विवरण ताजमहल मुग़ल शासन की सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। सफ़ेद संगमरमर की यह कृति संसार भर में प्रसिद्ध है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।
राज्य उत्तर प्रदेश
नगर आगरा
निर्माता मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
निर्माण सन् 1632 से 1653 ई.
वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी
वास्तु शैली मुग़ल वास्‍तुकला
प्रसिद्धि यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल है।
एस.टी.डी. कोड 0562
गूगल मानचित्र
संबंधित लेख बुलंद दरवाज़ा, लाल क़िला
निर्देशांक 27° 10′ 29.27″ उत्तर, 78° 2′ 31.6″ पूर्व
विशेष संपूर्ण ताज परिसर के निर्माण में 22 वर्ष का समय लगा और इसमें चार करोड़ रुपये ख़र्च हुए। भारत के अलावा फ़ारस और तुर्की के मज़दूर भी थे।
अन्य जानकारी ताजमहल की नींव के प्रत्‍येक कोने से उठने वाली चार मीनारें मक़बरे को पर्याप्‍त संतुलन देती हैं। यह मीनारें 41.6 मीटर ऊँची हैं और इन मीनारों को जानबूझकर बाहर की ओर हल्‍का सा झुकाव दिया गया है ताकि यह मीनारें भूकंप जैसी दुर्घटना में मक़बरे पर न गिर कर बाहर की ओर गिरें।

ताजमहल (अंग्रेज़ी: Tajmahal, निर्माण- सन् 1632 से 1653 ई.) आगरा, उत्तर प्रदेश राज्य, भारत में स्थित है। ताजमहल आगरा शहर के बाहरी इलाके में यमुना नदी के दक्षिणी तट पर बना हुआ है। ताजमहल मुग़ल शासन की सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। सफ़ेद संगमरमर की यह कृति संसार भर में प्रसिद्ध है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। ताजमहल विश्‍व के सात आश्‍चर्यों में से एक है। ताजमहल एक महान् शासक का अपनी प्रिय रानी के प्रति प्रेम का अद्भुत शाहकार है। ताजमहल का सबसे मनमोहक और सुंदर दृश्‍य पूर्णिमा की रात को दिखाई देता है।

इतिहास

मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने ताजमहल को अपनी पत्नी अर्जुमंद बानो बेगम, जिन्हें मुमताज़ महल भी कहा जाता था, की याद में बनवाया था। ताजमहल को शाहजहाँ ने मुमताज़ महल की क़ब्र के ऊपर बनवाया था। मृत्यु के बाद शाहजहाँ को भी वहीं दफ़नाया गया। मुमताज़ महल के नाम पर ही इस मक़बरे का नाम ताजमहल पड़ा। सन् 1612 ई. में निकाह के बाद 1631 में प्रसूति के दौरान बुरहानपुर में मृत्यु होने तक अर्जुमंद शाहजहाँ की अभिन्न संगिनी बनी रहीं। मुमताज़ महल के रहने के लिए दिवंगत रानी के नाम पर मुमताज़ा बाद बनाया गया, जिसे अब ताज गंज कहते हैं और यह भी इसके नज़दीक निर्मित किया गया था। ताजमहज मुग़ल वास्‍तुकला का उत्‍कृष्‍ट नमूना है। ताजमहल के निर्माण में फ़ारसी, तुर्क, भारतीय तथा इस्‍लामिक वास्‍तुकला का सुंदर सम्मिश्रण किया गया है। 1983 ई. में ताजमहल को यूनेस्‍को विश्‍व धरोहर स्‍थल घोषित किया गया। ताजमहल को भारत की इस्‍लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। ताजमहल का श्‍वेत गुम्‍बद एवं टाइल आकार में संगमरमर से ढका केन्‍द्रीय मक़बरा वास्‍तु सौंदर्य का अप्रीतम उदाहरण है।[1]

संरचना

ताजमहल 580×305 मीटर के आयताकार भूखंड पर बना हुआ है और उत्तर-दक्षिण की ओर संरेखित है। ताजमहल के भूखंड के मध्य में चौकोर बग़ीचा है, जिसकी हर भुजा की लम्बाई 305 मीटर है। यह बग़ीचा उत्तर तथा दक्षिण में दो छोटे आयताकार खंडों से घिरा है। दक्षिणी आयताकार खंड में परिसर और परिचारकों की इमारत में आने के लिए बलुआ पत्थर से बना प्रवेशद्वार है। उत्तरी आयताकार खंड यमुना नदी के किनारे तक पहुँचता है। यहाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भवन हैं, जैसे विख्यात मक़बरा, जिसके पश्चिमी और पूर्वी पार्श्व में एक जैसे दो भवन, मस्जिद और जवाब (प्रत्युत्तर या सौंदर्यबोध को संतुलित रखने वाला भवन) हैं। इसके आसपास ऊँची चारदीवारी है, जिसके कोनों पर अष्टकोणीय मंडप हैं, जिसमें कंगूरे निकले हैं। यह चारदीवारी उत्तरी खंड तथा बग़ीचे के मध्य भाग को घेरे हुए है। दक्षिण में अस्तबल तथा पहरेदारों के कक्ष हैं। संपूर्ण परिसर की योजना और निर्माण समग्रता के साथ किया गया, क्योंकि मुग़लकालीन भवन-निर्माण कार्यों में बाद में किसी तरह के जोड़-तोड़ का रिवाज नहीं था।

ताजमहल, आगरा

मक़बरा सात मीटर ऊँचे संगमरमर के चबूतरे पर बना है, जिसमें चार एक जैसे खांचेदार प्रवेशद्वार हैं और एक विशाल मेहराब है, जिसकी ऊँचाई प्रत्येक फलक पर 33 मीटर है। इसके ऊँचे बेलनाकार आधार पर टिके लट्टूनुमा छोटे गुंबद से मिलकर संरचना पूरी हो जाती है। मक़बरे के शीर्षों का सामंजस्य हर मेहराब के ऊपर मुंडेर व कलश और हर कोने पर छतरीनुमा गुंबद के द्वारा बैठाया गया है। चबूतरे के चारों कोनों पर एक-एक तिमंज़ली मीनार बनी है। मक़बरे का संगमरमर एकदम चिकना तराशा हुआ है, जबकि मीनारों में ईंट शैली में इसका इस्तेमाल हुआ है। मक़बरे के भीतर अष्टकोणीय कक्ष है, जो कम अलंकृत और बढ़िया पिएत्रा दुरा से बना है।

निर्माण

ताजमहल का निर्माण सन् 1632 के आसपास शुरू हुआ था। भारत, फ़ारस, मध्य एशिया और अन्य मुल्कों के वास्तुविदों की एक परिषद ने इस इमारत के निर्माण की एक योजना तैयार की थी। लगभग 1653 में ताजमहल का काम पूरा होने तक 20 हज़ार से भी अधिक श्रमिक और कारीगर प्रतिदिन ताजमहल के निर्माण में जुटे रहे। ताजमहल के आसपास की दीवार तथा मुख्य द्वार 1649 में बने थे। संपूर्ण ताज परिसर के निर्माण में 22 वर्ष का समय लगा और इसमें चार करोड़ रुपये ख़र्च हुए। भारत के अलावा फ़ारस और तुर्की के मज़दूर भी थे। ताज की अपनी एक अलग अदा है जो दर्शकों को अपनी ओर खीँच लेती है। शाहजहाँ ने इसे बनाने वालों के हाथ कटवा दिये थे। इस स्मारक का नक़्शा भारतीय वास्तुकार ईसा ने बनाया था। कुछ लोगों का अनुमान है कि नक़्शा बनाने में इटली अथवा फ्रांस के वास्तुकार की भी मदद ली गई थी।[2]

वास्तुकार

ताजमहल, आगरा

ताजमहल के निर्माणकारों में कुछ निर्माणकार प्रमुख हैं। ताजमहल का केली ग्राफर अमानत ख़ान शिराजी थे। मक़बरे के पत्‍थर पर इबारतें कवि गयासु‍द्दीन ने लिखी हैं, जबकि ताजमहल के गुम्‍बद का निर्माण इस्‍माइल ख़ान अफ़रीदी ने टर्की से आकर किया। ताजमहल के मिस्त्रियों का अधीक्षक मुहम्‍मद हनीफ़ था। ताजमहल के वास्तुकार का नाम उस्‍ताद अहमद लाहौरी था।

सामग्री

ताजमहल की सामग्री पूरे भारत और मध्‍य एशिया से लाई गई थी। 1000 हाथियों के बेड़े की सहायता इस सामग्री को निर्माण स्‍थल तक लाने में ली गई। ताजमहल का केन्‍द्रीय गुम्‍बद 187 फीट ऊँचा है। ताजमहल का लाल सेंड स्‍टोन फतेहपुर सीकरी, पंजाब के जसपेर, चीन से जेड और क्रिस्‍टल, तिब्बत से टर्कोइश यानी नीला पत्‍थर, श्रीलंका से लेपिस लजुली और सेफायर, अरब से कोयला और कोर्नेलियन तथा पन्‍ना से हीरे लाए गए। ताजमहल में कुल मिलाकर 28 प्रकार के दुर्लभ, मूल्‍यवान और अर्ध मूल्‍यवान पत्‍थर ताजमहल की नक़्क़ाशी में उपयोग किए गए थे। मुख्‍य भवन सामग्री, सफ़ेद संगमरमर ज़िला नागौर, राजस्थान के मकराना की खानों से लाया गया था।

ताजमहल, आगरा

प्रवेश द्वार

ताजमहल का मुख्‍य प्रवेश दक्षिण द्वार से है। यह प्रवेश द्वार 151 फीट लम्‍बा और 117 फीट चौड़ा है तथा इस प्रवेश द्वार की ऊँचाई 100 फीट है। पर्यटक यहाँ मुख्‍य प्रवेश द्वार के बगल में बने छोटे द्वारों से मुख्‍य परिसर में प्रवेश करते हैं।

मुख्‍य द्वार

ताजमहल का मुख्‍य द्वार लाल सेंड स्‍टोन से बनाया हुआ है। यह मुख्य द्वार 30 मीटर ऊँचा है। इस मुख्य द्वार पर अरबी लिपि में क़ुरान की आयतें तराशी गई हैं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्‍दू शैली का छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है।

ताजमहल प्रवेश द्वार , आगरा

इस प्रवेश द्वार की एक मुख्‍य विशेषता यह है कि अक्षर लेखन यहाँ से समान आकार का प्रतीत होता है। इसे तराशने वालों ने इतनी कुशलता से तराशा है कि बड़े और लम्‍बे अक्षर एक आकार का होने जैसा भ्रम उत्‍पन्‍न करते हैं। यहाँ चार बाग़ के रूप में भली भांति तैयार किए गए 300×300 मीटर के उद्यान हैं जो पैदल रास्‍ते के दोनों ओर फैले हुए हैं। इसके मध्‍य में एक मंच है जहाँ से पर्यटक ताज की तस्‍वीरें ले सकते हैं।

ताजमहल, आगरा

ताज संग्रहालय

ताजमहल के मंच की बायीं ओर ताज संग्रहालय है। यहाँ मूल चित्रों में उस बारीकी को देखा जा सकता है कि वास्‍तुकला में इस स्‍मारक की योजना किस प्रकार बनाई। इस इमारत को बनने में 22 वर्ष का समय लगेगा वास्‍तुकार ने यह भी अंदाजा लगाया था। इस बारीकी से अंदरूनी हिस्‍से के आरेख क़ब्रों की स्थिति दर्शाते हैं कि क़ब्रों के पैर की ओर वाला हिस्‍सा दर्शकों को किसी भी कोण से दिखाई दे सके।

मस्जिद

लाल सेंड स्‍टोन से बनी हुई एक मस्जिद ताज की बायीं ओर है। इस्‍लाम धर्म की एक आम बात यह है कि मक़बरे के पास एक मस्जिद का निर्माण किया जाता है, क्‍योंकि इससे उस हिस्‍से को एक पवित्रता नीति और पूजा का स्‍थान मिलता है। इस मस्जिद को अब भी शुकराने की नमाज़ के लिए उपयोग किया जाता है।

जबाब

एक दम समान मस्जिद ताज की दायीं ओर भी बनाई गई है और इसे जवाब कहते हैं। यहाँ नमाज़ अदा नहीं की जाती क्‍योंकि यह पश्चिम की ओर है अर्थात् मक्का के विपरीत, जो मुस्लिमों का पवित्र धार्मिक शहर है। इसे सममिति बनाए रखने के लिए निर्मित कराया गया था।

साज-सज्‍जा

ताजमहल एक ऊँचे मंच पर बनाया गया है। ताजमहल की नींव के प्रत्‍येक कोने से उठने वाली चार मीनारें मक़बरे को पर्याप्‍त संतुलन देती हैं। यह मीनारें 41.6 मीटर ऊँची हैं और इन मीनारों को जानबूझकर बाहर की ओर हल्‍का सा झुकाव दिया गया है ताकि यह मीनारें भूकंप जैसी दुर्घटना में मक़बरे पर न गिर कर बाहर की ओर गिरें। ताजमहल का विशालकाय गुम्‍बद असाधारण रूप से बड़े ड्रम पर टिका है और इसकी कुल ऊँचाई 44.41 मीटर है। इस ड्रम के आधार से शीर्ष तक स्‍तूपिका है। इसके कोणों के बावज़ूद केन्‍द्रीय गुम्‍बद मध्‍य में है। यह आधार और प्रवेश द्वार की ओर खुलने वाली दोहरी सीढियां मक़बरे पर पहुँचने का केवल एक बिंदु है। यहाँ अंदर जाने के लिए जूते निकालने होते हैं या आप जूतों पर एक कवर लगा सकते हैं जो इस प्रयोजन के लिए यहाँ उपस्थित कर्मचारियों द्वारा आपको दिए जाते हैं।

ताजमहल, आगरा

ताज की आंतरिक सज्‍जा

ताजमहल के आंतरिक हिस्‍से में एक विशाल केन्‍द्रीय कक्ष, इसके तत्‍काल नीचे एक तहख़ाना है और इसके नीचे शाही परिवारों के सदस्‍यों की क़ब्रों के लिए मूलत: आठ कोनों वाले चार कक्ष हैं। इस कक्ष के मध्‍य में शाहजहाँ और मुमताज़ महल की क़ब्रें हैं। शाहजहाँ की क़ब्र बांईं और अपनी प्रिय रानी की क़ब्र से कुछ ऊँचाई पर है जो गुम्‍बद के ठीक नीचे स्थित है। जिस पर पहले क़ीमती पत्थर जड़े हुए थे। बग़ीचे की सतह से नीचे एक तहख़ाने में वास्तविक ताबूत मौजूद हैं। मुमताज़ महल की क़ब्र पर पर्शियन में क़ुरान की आयतें लिखी हैं। इस क़ब्र पर एक पत्‍थर लगा है जिस पर लिखा है- मरकद मुनव्‍वर अर्जुमद बानो बेगम मुखातिब बह मुमताज़ महल तनीफियात फर्र सानह 1404 हिजरी।[3]

शाहजहाँ की क़ब्र पर पर्शियन में लिखा है -

मरकद मुहताहर आली हजरत फ़िरदौस आशियानी साहिब- क़ुरान सानी सानी शाहजहाँ बादशाह तब सुराह सानह 1076 हिजरी[4]

इस क़ब्र के ऊपर एक लैम्‍प है, जिसकी ज्‍वाला कभी समाप्‍त नहीं होती है। क़ब्रों के चारों ओर संगमरमर की जालियाँ बनी है। दोनों क़ब्रें अर्ध मूल्‍यवान रत्‍नों से सजाई गई हैं। इमारत के अंदर ध्‍वनि का नियंत्रण अत्‍यंत उत्तम है, जिसके अंदर क़ुरान और संगीतकारों की स्‍वर लहरियाँ प्रतिध्‍वनित होती रहती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जूते पहनने से पहले आपको क़ब्र का एक चक्‍कर लगाना चाहिए ताकि आप इसे सभी ओर से निहार सकें।[5]

ताजमहल पर कविता

कैमरा लेकर ताजमहल जाइए, इस रचना के अनुसार फ़ोटो खींचिए, ट्रांस्पेरैंसीज़ बनवाइए, स्लाइड प्रोजैक्टर पर सबको दिखाइए, साथ में नाटकीय कौशल से कविता सुनाइए। ये सब न करें तो इतना कीजिए, कल्पना में आनंद लीजिए।[6]

संगमरमर का संगीत (अशोक चक्रधर द्वारा नाट्य कविता)
पात्र- स्वर-1, स्वर-2, गायक, महिला, गाइड, अनुकूल ध्वनि एवं संगीत

स्वर- (1) यमुना की सांवली लहरें
     वृन्दावन निधिवन के
     कुंज लता गुंजों को पार कर
     जब बढ़ती हैं, आगे
     रास रचाती हुई
     बाँसुरी गुंजाती हुई
     गायों-सी रंभाती हुई
     और आगे
     तो यकायक ठिठक जाते हैं
     लहरों के पांव
     बढ़ते हैं संभल- संभल।

(पानी में ताजमहल के लहराते बिम्ब। हालांकि समझ में नहीं आ रहा कि ताजमहल ही है।)

किसने खिलाए ये सफ़ेद कमल?
किसने बिखराया है
धारा पर पारा
इतना सारा!

(पानी में ताजमहल का स्पष्ट बिम्ब, फिर स्थित ताज।)

स्वर- (2) तुम तो अपने दामन में
       प्यार को समेट कर लाई हो लहरो।
       समा लो अपने अंदर मेरा भी अक्स।
       मैं भी तो वहीं हूँ
       मुजस्सम प्यार
       तुम्हारी धार का कगार।

(ताज की दीवारों के दृश्य)

स्वर-(1) बाँसुरी की गूंज में
       घुल जाते हैं
       प्यार के सितार के स्वर
       और बजने लगते हैं
       दिल के दमामे।

(गुम्बद का आंतरिक स्वरूप)

नाद गूँज उठता है
     आकाश तक।

(क़ब्रों के विविध कोण)

गायक- (मसनवी शैली में गायन)

यादगारे उल्फ़ते शाहे जहां
        रोज़- ए- मुमताज़ फ़िरदौस आशियाँ
        फ़न्ने तामीरान की तकमील ताज
        दर्दो- अहसासात की तश्कील ताज।

(ताज के बाहर सड़क पर विदेशी महिला और भारतीय गाइड)

गाइड- ऐक्सक्यूज़ मी मैडम!
       नीड अ गाइड?
महिला- नो, थैंक्स।

(सीढ़ियों से चढ़कर ताज का चबूतरा)

गाइड- हां तो हज़रात!
   ताज की कहानी इतनी लम्बी है
   सुनाना शुरू करूं
   तो हो जाएगी रात
   लेकिन दास्तान ख़तम नहीं होगी।
   पांच सदियों पुरानी ये कहानी,
   हुज़ूर आगे आ जाइए,
   आज भी ज़िंदा है।
   ज़माना गौर से सुन रहा है
   पर जी नहीं भरता है।

(ताजमहल के विभिन्न शॉट्स, कमैण्ट्री के अनुसार)

ख़ुदा मालूम
इसके मरमरी ज़िस्म में
क्या- क्या है
पर इतना कहूँगा
कि चित्रकार की नज़र है
शायर का दिल है
बहारों का नग़मा है।
ताज क्या है
क़ुदरत की हथेली में
खिला हुआ इक फूल है वक़्त के रुख़सार पर
ठहरा हुआ आंसू है हुज़ूर
हुस्नो-जमाल का जलवा है
इतना ख़ूबसूरत इतना नाज़ुक
इतना मुक़म्मल
इतना पाकीज़ा है हुज़ूर
कि बाज़-वक़्त डर लगता
छूने में
कि मैला न हो जाए।

दर्शक- गाइड हैं कि शायर हैं?

गाइड- हुज़ूर आप कुछ भी कहें
      शायरी तो इनसानी हाथों ने की है
       इसे बनाकर
      जनाबेआली।
     गोया बनाने वालों ने
     संगमरमर में इक हसीन
     ख़्वाब लिख डाला है।

(ताजमहल के विभिन्न शॉट्स, कथ्य से मेल खाते हुए।)

तामीर का यानी निर्माण का
काम शुरू हुआ
सोलह सौ बत्तीस में
और सजावट को
आख़िरी चमक दी गई
सोलह सौ तिरपन में
इस तरह कुल जमा
बाईस साल लगे
और चौबीस हज़ार लोगों के
अड़तालीस हज़ार हाथ
इसे बनाते रहे।
शुरू के पांच साल तो लग गए
ज़मीन को यक़सार करने में
टीलों को काटने में
गड्ढों को भरने में।
फिर सिलसिला शुरू हुआ
सामान के आमद का
ऊँटों का, हाथियों का
घोड़ों का, ख़च्चरों का।
मुसल्सल सिलसिला हुज़ूर!
तराई के पेड़ों से
संदल, आबनूस, देवदार
शीशम और साल लाया गया
चारकोह मकराना से
सफ़ेद संगमरमर मंगवाया गया।
उदयपुर से काला पत्थर
बड़ौदा से बुंदकीदार-खुरदरा
कांगड़ा से सुरमई
आंध्रा के कड़प्पा से चितकबरा
बग़दाद से अक़ीक़
तब्दकमाल से फ़ीरोज़ा
दरिया- ए- शोर से मूँगा
लंका से लाजोर्द
यमन से लालयमनी
दरिया-ए-नील से लहसीना,
और न जाने कहाँ-कहाँ से,
पतूनिया, तवाई, मूसा, मीना।
अजूबा, नख़ूद, रखाम, गोरी
पंखनी, गोडा, याक़ूत, बिल्लौरी।
खट्टू, नीलम, जमर्रुद, गार
हीरा, संख, मरवारीद, जदबार।
पुखराज है, बादल है, गोडा है
इतने पत्थर हैं कि
गिनती भी थक जाए
गिनाते-गिनाते,
ज़माना गुज़र जाए बताते-बताते।

(फ़व्वारों के पास पार्क)

और देखिए
यहीं कहीं
बताशे और बारीक़ रेत के
टीले लगे होंगे
ईंटों की भट्टियाँ खुदी होंगी
मसाले के लिए
गुड़ की भेलियां, उड़द की दाल
और पटसन से
मैदान अट गया होगा जनाब।
अब तो यहाँ
नज़र के लिए नज़ारे हैं
नहर है, फ़व्वारे हैं।
लेकिन सोचिए
वो भी क्या नज़ारा होगा।

(एरियल शॉट्स ताज और पास की बस्ती / सूर्यास्त और धुएं की पृष्ठभूमि में ताज के शॉट्स।)

जब सूरज के आने और जाने की
परवाह किए बिना
मेमारों, संगतराशों, फ़नकारों ने
इसे बनवाया होगा।
इधर ढेर सारा धुआँ निकलता होगा
भट्टियों की चिमनियों से।
उधर ताजगंज की
मज़दूर झोंपड़ियों के
हज़ारों चूल्हों से
थोड़ा- सा धुआं उठता होगा।
इधर ईंटें, उधर रोटियों पकती होंगी
इधर कीलें तो उधर
ज़िंदगी ठुकती होंगी।

(सामान्य चाल से ताजमहल की परिक्रमा के बदलते हुए दृश्य।)

एक दिलचस्प वाक़्या सुनिए जनाब
चलते-चलते सुनिए
सुनाता हूं जनाब।
एक बार एक ख़ास मेमार
यानी इंजीनियर
तीन महीने की छुट्टी पर गया।
गया गया तो ऐसा गया
कि नहीं लौटा छः महीने तक
तलाशी हुई, मुनादी फिरी
लेकिन कोई ख़बर नहीं मिली
पूरा साल बीता तो
खुद-ब-खुद लौट आए मियाँ,
बोले- ख़ता माफ़ हो शाहे जहाँ।
ख़ाकसार के एक साल तक
ग़ायब रहने की
मस्लेहात ये थी कि
बुनियाद पर
जाड़ा, गरमी, बरसात
तीनों मौसम गुज़र जाएं
ताकि बुनियाद मज़बूत हो।
मैं अगर यहीं रहता
तो आपकी उतावली के आगे
ये सब कैसे कहता।

(कमैण्ट्री के अनुसार ताज के शॉट्स)

ख़ैर साहब,
मैं भी भटक जाता हूँ
क़िस्सों में अटक जाता हूँ
ताज का कुल रक़बा बयालीस एकड़ है
सदर दरवाज़े की चौड़ाई साढ़े दस फिट
ऊँचाई अस्सी फिट है
कमरे की छत के ऊपर
भूल- भुलैया है
चार कमरे, बाईस बुर्जियाँ
चार छोटे गुम्बद हैं
और संगमरमर के चबूरते के
चारों कोनों पे जो
चार मीनारें हैं
हुज़ूर क्या ख़ूबसूरत ऊँचाइयां हैं
एक सौ बासठ फिट छः इंच।

(ताज की दीवारों पर लिखावट)

सजावट के लिए
आयतों और सूरतों को
'ख़त्ते-सुल्स' में तरशवाया गया है।
'ख़त्ते-सुल्स' यानि
लिखावट का एक तरीक़ा
ख़िंचावट और बांकपन ऐसा
लिखावट में कि
हुस्न में इज़ाफ़ा हो।

तराशे हुए गुलदस्ते
और बेलबूटे
दीवारों को सज़ा रहे हैं,
मज़ार की ओर झुके हुए
मुस्कुराते फूल खिलती हुई कलियाँ
और तरोताज़ा पत्ते
महसूस यूँ होता है जैसे
लगातार कोर्निश बजा रहे हैं।

ये जो देख रहे हैं
संगमरमर की जाली,
पहले यहाँ
सोने की थी जनाबेआली!
चालीस हज़ार तोले की थी
लेकिन हटा ली।
मौजूदा जाली को ही देखिए
ग़ैरमामूली फूल-पत्ते और सुराहियाँ
गुलबूटे और प्यालियाँ
जाली के आर-पार हैं,
जो पसीना बहा है
इस कमाने फ़न के लिए
देखने वाले उस पर निसार हैं।

(ताज की जाली / गुम्बद / क़ब्र / कलस / मस्जिद- मेहमान-खाने के विभिन्न दृश्य।)

जाली के बीचों-बीच
मुमताज़ की क़ब्र है
पहलू में ही शाहजहां की
दोनों मिलकर अकेले में
बातें करते होंगे
जाने कहाँ-कहाँ की।

एक शायर ने लिखा है-
'ताजमहल से पूछ के देखो
कैसी थी मुमताज़ महल
शाहजहां का लहजा बनकर
पत्थर-पत्थर बोलेगा'।
बोलते हैं हुज़ूर ये पत्थर
ये गुम्बद, ये कलस
ये मीनारें, ये गुल बूटे
सब मिलकर बोलते हैं।
मग़रिब की तरफ़ देख मुन्नी
मस्जिद है
मशरिक़ में इसके जवाब में
मेहमानख़ाना है।
शाहजहाँ यही पे अपने
मेहमानों को लाता होगा
और मेरी तरह
इसकी ख़ूबियाँ बताता होगा

(गुम्बद / चाँद का क़ायदा / लट्टू / सुराही / चाँद)

ख़ैर,
अब देखिए ताज का ये गुम्बद
बज़ाहिर छोटा नज़र आता है
लेकिन काफ़ी बलंद है
बलंदी है साढ़े तीस फिट
चाँद का क़ायदा साढ़े आठ फिट
लट्टू का क़तर साढ़े चार फिट
लट्टू की सुराही साढ़े चार फिट
सुराही पर का लट्टू पौने पाँच फिट
कलस का वज़न बत्तीस मन है
और कलस के चाँद पर
लिखा हुआ है
क़लम-ए- तय्यबा-

गायक- (अजान के स्वर)

ला इलाह- इल्लल्लाह
       मोहम्मदुर्रसूलुल्लाह।

(सीढ़ियाँ उतरकर दीवार के सहारे-सहारे के दृश्य)

गाइड- ये तो बलंदी देखी
         गहराई में जाएं तो हुज़ूर
         वहाँ पानी है
         हाँ जनाब ताज की बुनियाद में
         चालीस कुएँ हैं।
         कुओं में तीन हज़ार छः सौ
         लट्ठे उतारे गए।
         ऐसे लट्ठे जो जितना पानी में रहें
         और ज़्यादा मज़बूत बनें।
         दरअसल यही तो ताज के
         अहसास की भी बुनियाद है,
         जिसमें दिल की
         गीली हलचल है
        और प्यार की फरियाद है।

(ताज का बारीक़ काम)

बहुत प्यार से बनाया है ताज को
मेमारों फ़नकारों ने
शिल्पकला का ऐसा नमूना
कि जिस हिस्से को
जितने ग़ौर से देखने जाइए
उसमें छिपी नज़ाकतें
ख़ुद-ब-ख़ुद
जल्वा दिखाने दिखाने लगेंगी,
महीन डालियों के पेचोख़म
नाज़ुक फूलों की पंखुरियाँ
आपसे बतियाने लगेंगी।

(दीवारों पर लिखावट)

और ये आड़े-तिरछे ख़ुतूत
इनको इस तरह मिलाया है कि
जोड़ दिखाई नहीं देता
और दाँतों तले उंगली तो
तब दबाएंगे,
जब अस्सी फ़िट ऊँची लिखावट को
यहीं से देखकर
सामने की लिखावट के
बराबर पाएँगे।
ताज के मेमारों ने
भारतीय गणित विद्या और
ज्यामिति पढ़ी थी
इसीलिए उनमें
नापजोख और पैमाइश की
तमीज़ बड़ी थी।

(ताज की अलग-अलग शिल्पकारियाँ)

जात-पांत का भेद नहीं था
बनाने वालों में
उनकी कला, उनका हुनर ही
उनका धरम था
या कहें करम का धरम था।
मौ. शरीफ़ कलस-साज़ थे समरकंद के
मौ. हनीफ़ मेमार थे कंधार के
इस्माइल ख़ाँ रूमी गुम्बद-साज़ थे दिल्ली के
चिरंगी लाल, छोटे लाल
मनोहर सिंह मन्नू लाल ने
की थी पच्चीकारी
अता मुहम्मद जाटमल
शंकर मुहम्मद जोरावर ने गुलकारी
उस्ताद आफ़न्दी नक्शा-नवीस थे
उस्ताद ईसा राजगीर
उस्ताद मनोहर बढ़ई
सितार ख़ाँ ख़ुशनवीस थे।
ख़ुशनवीस माने सुंदर लिखने वाले
और ख़ुशनवीस क्या थे
ख़ुशनसीब थे
कितनी आँखें देखती हैं
हुस्नो जमाल को
कितने दिल सहराते हैं
कला के कमाल को
पाकीज़गी और रूहानियत का जैसे
साकार रूप तलाशा गया हो,
फूल की पंखुरियों से गोया
हीरे का महल तराशा गया हो।

सदक़े इन फ़नकारों की
उंगलियों के
सदक़े उनकी छैनियों के
सदक़े इंसान की उन कोशिशों के
जो दूध में नहाए ख़्वाब जैसा
ताज बना सकती हैं,
सदक़े उनकी मेहनत के
जो संगमरमर का
संगीत सुना सकती हैं।

(सूर्यास्त के समय लौंग शॉट में ताज)

फ़रिशतो ढांक दो

रूहों की चादर से इसे वरना
फ़िज़ा की सांस
छू-छू कर

इसे मैला न कर डाले[6]


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वीथिका

ताजमहल का विहंगम दृश्य
ताजमहल का विहंगम दृश्य
Panoramic View of Tajmahal

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ताजमहल (हिन्दी) यात्रा सलाह। अभिगमन तिथि: 12 अक्तूबर, 2010
  2. ताजमहल (हिन्दी) विकीमेपिया। अभिगमन तिथि: 12 अक्तूबर, 2010
  3. यहाँ अर्जुमंद बानो बेगम, जिन्‍हें मुमताज़ महल कहते हैं, स्थित हैं जिनकी मौत 1904 AH या 1630 AD को हुई
  4. इस सर्वोत्तम उच्‍च महाराजा, स्‍वर्ग के निवासी, तारों मंडलों के दूसरे मालिक, बादशाह शाहजहाँ की पवित्र क़ब्र इस मक़बरे में हमेशा फलती फूलती रहे, 1607 AH (1666 AD
  5. ताजमहल (हिन्दी) भारत की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 12 अक्तूबर, 2010
  6. 6.0 6.1 चक्रधर, अशोक (2008) रंग जमा लो। डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.। 81-7182-958-9।

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