मीनार
मीनार
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विवरण | 'मीनार' इस्लामी स्थापत्य का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह किसी भी मस्जिद का ख़ास हिस्सा होता है, जिससे अज़ान देने वाला ख़ुदापरस्तों को नमाज़ अदा करने के लिए आवाज़ देता है। |
शैली | इस्लामी |
आकृति | सामान्यतः मीनार बेलनाकार, लम्बे और ऊपर से प्याज़नुमा मुकुट से सुसज्जित होते हैं। |
विशाल मीनार | उत्तर अफ़्रीका में सबसे पुरानी मीनार ट्यूनीशिया के 'अल क़ैरावान' में है। इस विशाल वर्गाकार मीनार का निर्माण 724 से 737 ई. के बीच किया गया था। |
विशेष | हैदराबाद के पर्यटन आकर्षणों में 'सिद्दी बशीर मस्जिद' की अनूठी हिलती मीनारें ख़ास हैं। जब एक मीनार को हिलाया जाता है, तो उसका कंपन दूसरी तक पहुंचता है। |
संबंधित लेख | क़ुतुब मीनार, चारमीनार |
अन्य जानकारी | अपनी ऊँचाई के कारण क़ुतुब मीनार 20वीं सदी तक दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत थी। इसके बाद अन्य ऊंची आधुनिक इमारतें बनाई गईं। |
मीनार एक ऐसे स्थापत्य को कहा जाता है, जो स्तम्भनुमा आकार का होता है। यह देखने में किसी आम बुर्ज़ से अधिक लम्बा तथा कुछ खिंचा हुआ सा दिखाई देता है। मीनार एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है- 'दीप स्तम्भ'। सामान्यतः मीनार बेलनाकार, लम्बे और ऊपर से प्याज़नुमा मुकुट से सुसज्जित होते हैं। वे आसपास की इमारतों से अधिक ऊँचे होते हैं और अक्सर मुस्लिम मस्जिदों के साथ लगे हुए पाए जाते हैं। इस आकृति का इस्लाम से घनिष्ठ सम्बंध है।
मस्जिद का अभिन्न भाग
मीनार किसी भी मस्जिद का अभिन्न भाग है। इस्लामी धार्मिक वास्तुकला में मीनार, जिससे 'मुअज़्ज़िन' या अज़ान देने वाला ख़ुदापरस्तों को प्रत्येक दिन पांच बार नमाज़ अदा करने के लिए आवाज़ देता है। ऐसी मीनार हमेशा मस्जिद से जुड़ी रहती है और इसमें एक या अधिक झरोखे या खुली दीर्घाएं होती हैं। पैगम्बर मुहम्मद के समय नमाज़ के लिए अज़ान मस्जिद के पास वाली सबसे ऊंची छत से दी जाती थी। प्रारम्भिक मीनारें पूर्व यूनानी बुर्ज़ और ईसाई गिरजाघरों के स्तंभ थीं।[1]
विशाल मीनार
उत्तर अफ़्रीका में सबसे पुरानी मीनार ट्यूनीशिया में 'अल क़ैरावान' में है। इस विशाल वर्गाकार मीनार का निर्माण 724 से 737 ई. के बीच किया गया था।
संरचना
समारा (इराक़) में निर्मित बौनी, सर्पिल ढांचों वाली (848-852 ई. में निर्मित) व मोटी मीनारों से लेकर ऊंची, उत्कृष्ट व पतली पेंसिल जैसे शिखरों वाली विविध स्वरूपों की मीनारों का निर्माण किया गया है। उसका आधार अक्सर चौकोर होता है। जहां मीनार मस्जिद से जुड़ी होती है, वहां इस चौकोर आधार के ऊपर यह कई गोलाकार, षट्कोणीय या अष्टकोणीय चरणों में निर्मित होती है। प्रत्येक मीनार में बाहर की ओर निकला हुआ झरोखा होता है। इसके शीर्ष पर गोल गुंबद, खुला मंडप या धातु से मढ़ा शंकु होता है। मीनार का ऊपरी हिस्सा अक्सर नक़्क़ाशी से सजा रहता है। सीढ़ियां बाहर या भीतर हो सकती हैं। प्रत्येक मस्जिद में एक से छह तक मीनारों की संख्या भी अलग-अलग होती है। ये मीनारें दूर से दिखने वाली और उस स्थान पर इस्लामी परिवेश की छाप वाली 'इस्लाम की निशानी' के रूप में बनाई गई थीं।[1]
भारतीय इस्लामी वास्तुकला
भारतीय-इस्लामी वास्तुकला में मीनार का विकास काफ़ी देर बाद हुआ। पहले यह इस्लाम की ताक़त की प्रतीक थी और मस्जिद में अलग बनाई जाती थी। बाद में यह मुख्य ढांचे के हिस्से के रूप में विकसित हुई। भारतीय इस्लामी वास्तुकला के प्रारंभिक उदाहरणों में दिल्ली की क़ुतुब मीनार (1200 ई.) खुदापरस्तों को नमाज़ के लिए अज़ान नहीं देती थी, बल्कि इस्लाम की घोषणा करती थी।
इसकी ऊँचाई के कारण 20वीं सदी तक यह दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत थी। इसके बाद अन्य ऊंची आधुनिक इमारतें बन गईं।
क़ुतुब मीनार मूल रूप से 73 मीटर ऊंची थी और इसमें बाद के संयोजन 14वीं सदी में जोड़े गए। इसमें चार मंज़िलें हैं, जो ऊपर की ओर क्रमश: पतली होती चली जाती हैं। प्रत्येक मंज़िल के अनुप्रस्थ काट का अलग स्वरूप है। चारों तलों पर झरोखों को नक़्क़ाशीदार आरोही निक्षेप दीवारगीर संभाले हए हैं, जबकि बाहर की तरफ़ भारतीय कारीगरों द्वारा सुलिखित आयतों से सजी दीवारें हैं।
बाद के काल में मीनारें इस्लामी इमारतों, जैसे- मस्जिदों एवं मक़बरों का अभिन्न हिस्सा बन गईं। आगरा में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ द्वारा निर्मित 'ताजमहल' (1648 ई.) की इमारत के चारों कोनों पर पत्थरों से निर्मित शानदार ढंग से अनुपातिक चार मीनारें ताजमहल की संतुलित वास्तुशिल्प रचना के चौखटे का काम करती हैं।[1]
हिलती मीनारें
15वीं सदी से अहमदाबाद (गुजरात) भारत-इस्लामी वास्तुशिल्प की विकसित प्रांतीय शैली का महत्त्वपूर्ण केंद्र था। शहर के पर्यटन आकर्षणों में 'सिद्दी बशीर मस्जिद' की अनूठी हिलती मीनारें हैं। जब एक मीनार को हिलाया जाता है, तो उसका कंपन दूसरी तक पहुंचता है। यहां तक कि एक मीनार के शीर्ष से लुढ़कती गेंद से दूसरी भी गूंज उठती है। प्रत्येक मीनार तीन मंज़िल ऊंची (21.34 मीटर) है और महीन नक़्क़ाशी वाले पत्थर के गलियारों से जुड़ी हुई है, जो कंपन को एक मीनार से दूसरी तक संप्रेषित करती है। हिलती मीनारें शहर की अन्य मस्जिदों की भी ख़ासियत हैं। ईरान में इस्फ़हान में 14वीं सदी की मीनारों "मोनार-ए-जोंबां" में भी अहमदाबाद की मीनार जैसी विशेषताएं हैं।
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चित्र वीथिका
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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