तृष्णा सब रोगों का मूल।
तृष्णा भय भव दुःख उपजावे, चुभे कलेजे शूल।।
जो सुख चावे तृष्णा त्यागे, अपने आप दर्द दुःख भागे।
शिवदीन चढ़ावे गुरु चरनन की, शिर पर पावन धूल।।
तृष्णा डायन सब जग खाया, ना कोई बचा समझले भाया।
काया माया साथ नहीं दे, पंथ अंत प्रतिकूल।।
लोभ मोह क्रोधादि नाग रे, काम आदि से दूर भाग रे।
जाग सके तो जीव जाग रे, राम नाम मत भूल।।
परमानन्द सदा सुख दायक, संत सयाने सत्य सहायक।
सत संगत सब रोग नसावे, बिछे सुमारग फूल।।