दरसनाए पैग़म्बरे ख़ुदा -नज़ीर अकबराबादी

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दरसनाए पैग़म्बरे ख़ुदा -नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ

सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम[1]
तेरा दोस्त है वह जो ख़ेरुलवरा ।
मुहम्मद नबी मालिके दोसरा ।
कहाँ वस्फ़[2]हो मुझ से उसका अदा ।
व लेकिन है मेरी यही इल्तिजा[3]

             ज़बाँ ताबुवद दर दहाँ जाए गीर ।
             सनाऐ मुहम्मद बुवद दिल पज़ीर[4]

वह शाहे दो आलम अमीरे उमम ।
बने वास्ते जिसके लौहो-क़लम[5]
सदा जिसके चूमें मलायक[6]क़दम ।
करूँ उसका रुतबा[7] मैं क्यूँकर रक़म[8]

             हबीबे ख़ुदा अशरफ़ुल अंम्बिया ।
             कि अर्शे मजीदश बुवद मुत्तक़ा[9]

अगर्चे यह पदा हुआ ख़ाक पर ।
गया ख़ाक से फिर वह इफ़लाक[10]पर ।
मेरा जी फ़िदा उस तने पाक पर
तसद्दुक़[11] हूँ मैं उसके फ़ितराक[12] पर ।

             सवारे जहाँ गीर यकराँ बुराक़ ।
             कि बगज़श्त अज़ करने नीली-ए-खाक़ ।[13]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हज़रत मुहम्मद साहब के यशोगान में
  2. वस्फ़=प्रशंसा
  3. इल्तिजा=प्रार्थना
  4. जब तक जुबाँ मुँह में क़ायम रहे
  5. लौहो-क़लम=वह तख़्ती और लेखनी, जिनके द्वारा ईश्वर की आज्ञा से भविष्य में होने वाली सब घटनाएँ लिखी हों
  6. मलायक=देवतागण, फ़रिश्ते
  7. रुतबा=महत्ता
  8. लिखना
  9. वह रसूल जो ख़ुदा के महबूब हैं और नाबियों में जिनका रुत्बा सबसे ज़्यादा है ।
  10. आकाश
  11. न्यौछावर
  12. वह डोरी जो घोड़े की ज़ीन में दोनों ओर लगाते हैं।
  13. वह व्यक्ति जो अकेले बुराक़ घोड़े पर सवार होकर सारे ब्रह्माण्ड की सैर कर आए जो कि इस नीले गुम्बद वाले महल (आसमान) से भी परे चले गए

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