है सबका ख़ुदा सब तुझ पे फ़िदा ।
अल्लाहो ग़नी[1], अल्लाहो ग़नी ।
हे कृष्ण कन्हैया, नन्द लला !
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
इसरारे[2] हक़ीक़त यों खोले ।
तोहीद[3] के वह मोती रोले ।
सब कहने लगे ऐ सल्ले अला ।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
सरसब्ज़ हुए वीरानए दिल ।
इस में हुआ जब तू दाखिल ।
गुलज़ार खिला सहरा-सहरा[4] ।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
फिर तुझसे तजल्ली[5] ज़ार[6] हुई ।
दुनिया कहती तीरो तार हुई ।
ऐ जल्वा फ़रोज़े[7] बज़्मे-हुदा[8] ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
मुट्ठी भर चावल के बदले ।
दुख दर्द सुदामा के दूर किए ।
पल भर में बना क़तरा दरिया ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
जब तुझसे मिला ख़ुद को भूला ।
हैरान हूँ मैं इंसा कि ख़ुदा ।
मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
ख़ुर्शीद[9] में जल्वा चाँद में भी ।
हर गुल में तेरे रुख़सार[10] की बू ।
घूँघट जो खुला सखियों ने कहा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
दिलदार ग्वालों, बालों का ।
और सारे दुनियादारों का ।
सूरत में नबी[11] सीरत[12] में ख़ुदा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
इस हुस्ने अमल[13] के सालिक[14] ने ।
इस दस्तो जबलए[15] के मालिक ने ।
कोहसार[16] लिया उँगली पे उठा ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
मन मोहिनी सूरत वाला था ।
न गोरा था न काला था ।
जिस रंग में चाहा देख लिया ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।
तालिब[17] है तेरी रहमत का ।
बन्दए नाचीज़[18] नज़ीर तेरा ।
तू बहरे करम[19] है नंद लला ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी ।