दीप्ति नवल

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दीप्ति नवल
दीप्ति नवल
दीप्ति नवल
पूरा नाम दीप्ति नवल
जन्म 3 फ़रवरी, 1952
जन्म भूमि अमृतसर, पंजाब
पति/पत्नी प्रकाश झा (फ़िल्म निर्देशक)
संतान पुत्री- दिशा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिंदी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'शक्ति-द पावर', 'एक घर', 'रंग बिरंगी', 'अंगूर', 'श्रीमान श्रीमती', 'हम पाँच', 'एक बार फिर' आदि।
प्रसिद्धि अभिनेत्री
नागरिकता भारतीय
सक्रिय वर्ष 1978-2020
अन्य जानकारी दीप्ति नवल ने अपने फ़िल्म कॅरियर की शुरुआत 1978 में उस समय के जाने-माने फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल की फ़िल्म 'जूनुन' की, लेकिन उन्हें असली लोकप्रियता 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म 'एक बार फिर' से मिली।
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दीप्ति नवल (अंग्रेज़ी: Deepti Naval, जन्म- 3 फ़रवरी, 1952, अमृतसर, पंजाब) प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री हैं। उनको एक हरफनमौला कलाकार के रूप में जाना जाता है। 80 और 90 के दशक की मशहूर अभ‍िनेत्र‍ियों में दीप्ति नवल का नाम शामिल है। वह एक अभिनेत्री होने के अलावा कवयित्री, कहानीकार, गायिका, फोटोग्राफर और पेंटर भी हैं। दीप्ति नवल कई चर्चित हिन्दी फ़िल्मों में नजर आई हैं। वह 'चश्मे बद्दूर', 'कथा', 'मिर्च मसाला', 'अंगूर' आदि फ़िल्मों के लिए जानी जाती हैं।

परिचय

दीप्ति नवल का जन्म 3 फ़रवरी, 1952 को हुआ था। वे अपने खुले विचारों के लिए मशहूर हैं। उनका बचपन अमरीका के न्यूयॉर्क में बीता, जहां उनके पिता सिटी यूनिवर्सिटी में शिक्षक थे। दीप्ति नवल को बचपन से ही अभिनय के साथ-साथ चित्रकारी एवं फोटोग्राफी का शौक था। उन्होंने 1985 में मशहूर फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा से विवाह किया, लेकिन ये शादी अधिक सफल नहीं रही और चार साल बाद दोनों का तलाक हो गया। प्रकाश झा से दीप्ति नवल को एक बेटी दिशा है। दीप्ति नवल, प्रकाश झा से अलग होने के बाद भी एक अच्छे दोस्त के तौर पर उनसे मिलती हैं। दोनों तलाक के बाद अपनी बेटी और दोस्त विनोद के साथ डिनर पर भी गए थे। दीप्ति की बेटी दिशा सिंगर बनना चाहती हैं। वे अपने पिता की फ़िल्म राजनीति में बतौर कॉस्ट्यूम सुपरवाइजर काम कर चुकी हैं।

कॅरियर

दीप्ति नवल

दीप्ति नवल की पहली फ़िल्म श्याम बेनेगल की ‘जुनून’ (1978) थी। एक बहुत बड़ी और सीज़न्ड स्टारकास्ट से सजी इस फ़िल्म में दीप्ति का बहुत छोटा सा रोल था। इसके बाद एक लीड एक्ट्रेस के तौर पर उनकी पहली फ़िल्म 1980 में आई। नाम था- ‘एक बार फिर’। विवाहेतर संबंधों पर बनी थी। पहले इस फ़िल्म का सब्जेक्ट कितना बोल्ड कहा गया होगा, ये कल्पना करना मुश्किल नहीं है। ‘एक बार फिर’ में निभाए ‘कल्पना’ के इस किरदार के बारे में दीप्ति नवल ने एक बार बताया कि- 'एक बार फिर’ में पहली बार ऐसा था कि लीड एक्ट्रेस, पुरुष दर्शकों की फेंटेसी को संतुष्ट करने के लिए नहीं थी। इस फ़िल्म ने हिंदी फ़िल्मों में महिला किरदारों के बिल्कुल नई परिभाषा दी थी। कल्पना का ये किरदार मील का पत्थर था'।[1]

इस फ़िल्म में उनके साथ को-एक्ट्रेस सुरेश ओबरॉय और प्रदीप वर्मा थे। कहा जाता है कि इस फ़िल्म के बाद दीप्ति नवल ने सुरेश ओबरॉय से किनारा कर लिया और दोनों के बीच ये दूरी 4 साल तक ज़ारी रही। फिर इन दोनों की एक साथ जो फ़िल्म आई उसका नाम था ‘कानून क्या करेगा’ (1984)। इसके बाद दीप्ति नवल पैरलल सिनेमा का पर्यायवाची बन गईं। उनके अनुसार- 'मेरी इस तरह के सिनेमा से ही शुरुआत हुई। उन दिनों जिस तरह की म्यूज़िक फ़िल्में आ रही थीं उन सबके बीच मेरी यात्रा कहीं ज़्यादा रोचक रही थी। मैंने ऐसी फ़िल्में कीं जैसे, ‘कमला’ (जगमोहन मूदंड़ा), ‘मैं ज़िन्दा हूं’ (सुधीर मिश्रा), ‘पंचवटी’ (बासु भट्टाचार्य) और ‘अनकही’ (अमोल पालेकर)'।

फ़िल्म 'अनकही' से जुड़ा अनुभव

‘अनकही’ (1985) में अपने रोल को समझने के लिए दीप्ति नवल एक मेंटल हॉस्पिटल गईं। ये 1983 की बात थी। इससे पहले दीप्ति जब सिर्फ 12 साल की थीं, तब भी उन्हें पागलखाने जाने का अनुभव मिला। उनकी एक दोस्त वहां भर्ती हुई थी। फिर अमोल पालेकर की फ़िल्म के दस साल बाद, 1993 में, वो मेंटल होम में दो हफ्ते तक रहीं। उस वक्त वो एक स्क्रिप्ट पर काम कर रहीं थीं। उसी की रिसर्च के चलते। हालांकि ये स्क्रिप्ट कभी पूरी न हो सकी लेकिन टेलीग्राफ को दिए एक इंटरव्यू मेंउन्होंने बताया था कि उस अनुभव ने उनका जीवन बदल कर रख दिया।[1]

उनको पागलखाने से बाहर की दुनिया, होशमंद लोगों की दुनिया सतही और काल्पनिक लगने लगी। वहां दीप्ति ऐसे लोगों, ऐसी औरतों से भी मिलीं जो पागल नहीं थीं लेकिन जिनके परिवार वालों ने उन्हें वहां डाल दिया था। क्यूंकि परिवार में अब उनकी कोई ज़रूरत नहीं थी। इस पूरे अनुभव को बाद में दीप्ति नवल ने एक अंग्रेज़ी कविता के माध्यम से व्यक्त किया- 'होशमंदी की बदबू' (The Stench of Sanity)।

मिस चमको

अच्छा सुनिए ‘मिस चमको’, आप दीजिए अपना डेमोंस्ट्रेशन।

ये पहली बार था जब ‘चश्मे बद्दूर’ फ़िल्म में सिद्धार्थ, नेहा को ‘मिस चमको’ के नाम से पुकारता है। फ़िल्म में नेहा का किरदार दीप्ति नवल ने और सिद्धार्थ का किरदार फ़ारुख़ शेख़ ने निभाया था। आज कई साल बीत जाने के बाद भी हम नहीं जानते कि ‘चश्मे बद्दूर’ में दीप्ति नवल के किरदार का नाम नेहा था। लेकिन आज भी ‘चमको’ कहते ही आंखों के सामने करीने से साड़ी पहने हुए, हाथ में चमको वाशिंग पाउडर पकड़े हुए दीप्ति नवल का किरदार जीवंत हो जाता है। इस फ़िल्म की डायरेक्टर थीं सईं परांजपे। मराठी रंगमंच से आईं, सईं अपनी आर्टहाउस फ़िल्मज़ के लिए जानी जातीं थीं। ‘चश्मे बद्दूर’ डायरेक्ट करने से पहले उन्हें अपनी पहली हिंदी फ़िल्म 'स्पर्श' (1980) के लिए नेशनल अवॉर्ड मिल चुका था।

सोसायटी वालों का हंगामा

उस ‘चश्मे बद्दूर’ के ठीक बत्तीस साल बाद, 2013 में इसकी ऑफिशियल रीमेक आई थी। 2013 की रीमेक फ़िल्म को डायरेक्ट किया था डेविड धवन ने और दीप्ति नवल वाला किरदार निभाया था तापसी पन्नू ने। जब ये रीमेक रिलीज़ होने वाली थी उसी दौरान का ये एक क़िस्सा है। हुआ यह कि डेविड वाली ‘चश्मे बद्दूर’ की रिलीज़ के साथ-साथ पुरानी, सईं परांजपे वाली ‘चश्मे बद्दूर’ फ़िल्म भी री-रिलीज़ होने वाली थी। इसी मसले पर दीप्ति नवल से पत्रकार मिलने आए थे, उनके घर पर। ‘ओशियेनिक अपार्टमेंट’ के छठे फ्लोर में। उस वक्त उनके घर पर फ़ारूख़ शेख़ भी थे। अभी पत्रकारों से बात चल ही रही थी कि जिस सोसायटी में दीप्ति का घर था, उस सोसायटी में रहने वाले लोग दीप्ति के घर में आ गए और इंटरव्यू को जबरिया रोकने लगे। उन्हें लगा कि ये इंटरव्यू नहीं, किसी फ़िल्म का सीन है। हंगामा खड़ा हो गया। सोसायटी वाले कोई बात सुनने को तैयार न थे। जब दीप्ति ने बताया कि ये इंटरव्यू है तो बोले कि इंटरव्यू लेना भी सोसायटी के नियमों के खिलाफ है।[1]

खैर, दीप्ति नवल को बेवजह शर्मिंदा होकर वो घर छोड़ना पड़ा। जहां दीप्ति को रहते हुए 30 साल से ज़्यादा हो गए थे। इस पूरे वाक़ये पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए दीप्ति नवल ने बताया था कि- 'मैं तब उस अपार्टमेंट में रहने आई थी, जब किसी की हिम्मत नहीं थी वहां रहने की। मैंने पहले भी कई पार्टियां और प्रेस कॉन्फ्रेंस वहां की हैं। ऐसा पहली बार था कि मुझे ऐसा महसूस करवाया गया कि मैं एक वैश्यालय चला रही हूं। मैंने अपनी ज़िंदगी में इतना शर्मसार महसूस नहीं किया था'।

जब ये स्टोरी अख़बार में छपी तो वो थी तो दीप्ति के पक्ष में, लेकिन इसकी हैडिंग थी- 'मैं कोई प्रॉस्टिट्यूट रैकेट नहीं चला रही हूं: दीप्ति नवल'। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इस खबर को प्राइमरी सोर्स मानकर कई अख़बारों और वेब न्यूज़ पोर्टल्स ने खबर चला दी और इस दौरान कई पोर्टल्स ने पूरी खबर पढ़ने की ज़हमत नहीं उठाई। अगले कुछ दिनों तक ये खबर चलती रही कि दीप्ति पर सोसायटी वालों ने आरोप लगाया है कि वो सेक्स रैकेट चलाती हैं।

सिनेमा की टॉर्च बियरर

मेनस्ट्रीम सिनेमा के पैरलल में एक आर्टहाउस सिनेमा खड़ा हो रहा था। इस दौर को ‘दी इंडियन पैरलल फ़िल्म मूवमेंट’ कहा गया। दीप्ति नवल, शबाना आज़मी और स्मिता पाटिल इस मूवमेंट की झंडाबरदार बनीं। स्टारडस्ट के कवर में तीनों की तस्वीरें छपी। हैडिंग थी- 'न्यू वेव ग्लैमर क्वीन्स'। हालांकि स्मिता और दीप्ति ने एक साथ सिर्फ एक फ़िल्म की थी। 1985 में आई केतन मेहता की ‘मिर्च मसाला’। लेकिन उनकी दोस्ती के बारे में आज तक बातें होती हैं। स्मिता सिर्फ 31 साल की थीं जब गुज़रीं। हिंदुस्तान टाइम्स को एक बार सोसायटी ने बताया था कि- 'मैं स्मिता पाटिल को बहुत मिस करती हूं। मैं उनसे खुद को रिलेट कर पाती थी'।

स्मिता और मैं

सोसायटी ने स्मिता पाटिल के लिए भी एक कविता अंग्रेज़ी में लिखी। 'स्मिता और मैं' (Smita and I) नाम की इस छोटी-सी कविता में दीप्ति ने लिखा कि वो अक्सर स्मिता से तब मिलती थीं, जब उन्हें साथ में फ्लाइट लेनी होती थी, सफ़र पर निकलना होता था। ये शायद रूपक है, इस बात का कि दीप्ति और स्मिता ने जीवन का सफ़र साथ बिताया, दोस्तों की तरह। तमाम भौतिक और नकली चीजों के बीच एक-दूसरे का साथ और स्पर्श था, जो असली था, सच्चा था। दीप्ति लिखती हैं कि स्मिता के साथ जब वो आखिरी फ्लाइट लेने वाली थीं, तो उन्होंने स्मिता से पूछा था कि- 'क्या जीवन जीने का कोई और तरीका नहीं हो सकता?'

स्मिता कुछ देर चुप रहीं फिर कहा- 'नहीं, जीने का कोई और तरीका नहीं हो सकता'।[1]

दीप्ति नवल की लिखी एक और कविता है 'सफेद कागज़ पे पानी से'

सफेद कागज़ पे पानी से
तुम्हारे नाम इक नज़्म लिखी है मैंने
तिलस्मी रातों पर जब चांद का पहरा होगा
तमाम उम्र सिमट कर जब
इक लम्हें में ढल जायेगी
काशनी अंधेरों के तले
जब कांच के धागों की तरह
पानी की रुपहली सतह पर
ख़ामोशी थिरकती होगी
और झील के उस किनारे पर मचलेंगी
चांद की सोलह परछाइयां
मैं इस पार बैठ कर सुनाऊंगी तुम्हें
सफ़ेद कागज़ पे पानी से
तुम्हारे नाम जो नज़्म लिखी है मैंने

मुख्य फ़िल्में

दीप्ति नवल की प्रमुख फ़िल्में
वर्ष फ़िल्म
1। 1991 माने
2। 1991 एक घर
3। 1983 रंग बिरंगी
4। 1982 अंगूर
5। 1982 श्रीमान श्रीमती
6। 1980 हम पाँच
7। 1980 एक बार फिर


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 जब दीप्ति नवल के घर सोसाइटी वाले पहुंचे (हिंदी) thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 10 जनवरी, 2020।

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