नौरोज़

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नौरोज़़
अनुयायी पारसी (मुख्यत: ईरान, भारत और अफ़गानिस्तान के लोग शामिल हैं)
उद्देश्य यह सामान्यत: 21 मार्च को शुरू होता है, क्योंकि यह कई देशों में नए वर्ष का प्रथम दिन है।
तिथि सामान्यत: 21 मार्च
उत्सव दिन भर पारसी लोग एक-दूसरे का अभिवादन हमाज़ोर रीति से करते हैं, जिसमें एक व्यक्ति का दाहिना हाथ दूसरे की हथेलियों के बीच रखा जाता है। बाद में अभिनंदन और शुभकामनाओं के उद्गार व्यक्त किए जाते हैं।
संबंधित लेख पारसी धर्म, जरथुष्ट्र
अन्य जानकारी नौरोज़़ नए वर्ष का त्योहार है, जो सामान्यत: ज़रथुस्त्रीय मत और पारसी संप्रदाय से संबंधित है।
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नौरोज़़ (अंग्रेज़ी: Nowruz) पारसी धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्योहार है। नौरोज़़ नये वर्ष का त्योहार है, जो सामान्यत: ज़रथुस्त्रीय मत और पारसी संप्रदाय से संबंधित है। नौरोज़ तीन हजार से ज्यादा सालों से मनाया जा रहा है, जो प्राचीन फ़ारस में शुरू हुआ और अफ़गानिस्तान, अजरबैजान और तुर्की जैसे पड़ोसी देशों में फैल गया।

इतिहास

नौरोज़ तीन हजार से ज्यादा सालों से मनाया जा रहा है। इसे यूनेस्को द्वारा मानवता की सांस्कृतिक विरासत के तौर मान्यता मिली है। इस मौके पर घरों पर वसंत की सफाई, परिवार और दोस्तों से मिलना, गिफ्ट का आदान-प्रदान करना और सब्जी पोलो और मछली जैसे पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लिया जाता है। नवरोज धार्मिक और सांस्कृतिक के अलावा नई चीजों, आशा और एकता से भरा हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र में महत्व

संयुक्त राष्ट्र नवरोज को अंतरराष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता देता है। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि परिवार मध्य पूर्व, दक्षिण काकेशस, काला सागर बेसिन और उत्तरी, पश्चिमी, मध्य और दक्षिण एशिया में इस खुशी के त्यौहार को मनाते हैं।

धार्मिक मान्यताएँ

नौरोज़़ का त्योहार कई देशों में मनाया जाता है, जिनमें ईरान, भारत और अफ़गानिस्तान शामिल हैं। यह सामान्यत: 21 मार्च को शुरू होता है, जो इनमें से कई देशों में नए वर्ष का प्रथम दिन है। पारसियों में नए नौरज़[1] एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें पांच निर्धारित पूजा-कार्यों की आवश्यकता होती है-

  1. अफ्रिंगन, यानी प्यार और प्रशंसा की प्रार्थनाएं
  2. बाज, यानी यज़ताओं[2] के सम्मान में प्रार्थनाएं या फ़्रावाशी[3] के सम्मानार्थ अर्चनाएं
  3. यस्न, एक अनुष्ठान, जिसमें पवित्र पेय हाओमा चढ़ाना और विधिपूर्वक पान करना
  4. फ़्रावर्तिगिन या फ़रोक्षी, यानी स्वर्गवासियों की स्मृति में प्रार्थना
  5. सैटम यानी अंत्येष्टि भोज के समय उच्चारित प्रार्थनाएं

दिन भर पारसी लोग एक-दूसरे का अभिवादन हमाज़ोर रीति से करते हैं, जिसमें एक व्यक्ति का दाहिना हाथ दूसरे की हथेलियों के बीच रखा जाता है। बाद में अभिनंदन और शुभकामनाओं के उद्गार व्यक्त किए जाते हैं।

उत्सव

सूर्योदय के साथ ही उत्सव शुरु हो जाता है। सुबह सभी वयस्क, नवयुवक और बच्चे फावड़े उठाते हैं, किसी झरने या आरिक (छोटी नहर) पर जाते हैं और उसे साफ़ करते हैं। वे सम्माननीय वृद्ध लोगों के मार्गदर्शन में पेड़ भी लगाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें कहना पड़ता है- "लोगों की स्मृति में एक पूरा झुण्ड छोड़कर जाने से अच्छा है एक पेड़ छोड़कर जाना" और "यदि आप एक पेड़ काटेंगे तो आपको दस पेड़ लगाने होंगे"। इस रिवाज़ के पूरा होने के बाद चमकीले कपड़ों में सजे तीन हरकारे पूरे गाँव में सबको उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण देते हैं।

कभी-कभी ये कज़ाक परी कथाओं के हीरोज़, अल्डर कोसे, झिरेन्शी और सुन्दर काराशश की तरह भी सजते हैं। उत्सव में सबके साथ खेलने वाले खेल, पारंपरिक घुड़दौड़ और अन्य प्रतिस्पर्धाएँ शामिल होती हैं। 'आइकिश-उइशिश' (एक दूसरे की ओर) और 'औदरीस्पेक' (अच्छे घुड़सवार) इस उत्सव के लोकप्रिय खेल हैं। लड़के और लड़कियाँ दोनों ही इनमें भाग लेते हैं। दिन के अंत में मुशायरा होता है। दो अकिन (शायर) एक गायन प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। स्पर्धा दिन डूबने पर समाप्त होती है जब, आम धारणा के अनुसार अच्छाई ने बुराई को हराया था। यह त्योहार, लोगों के आग जलाने, गाँव में मशालें लेकर निकलने और नाचने-गाने के साथ समाप्त होता है।

मिथक

'शाहनामा' नौरोज़़ के त्यौहार को महान राजा जमशेद के शासन काल से जोड़ता है। पारसी ग्रंथों के मुताबिक़ राजा जमशेद ने मानवता की एक ऐसे मारक शीतकाल से रक्षा की थी, जिसमें पृथ्वी से जीवन समाप्त हो जाने वाला था। यह पौराणिक राजा जमशेद, पुरा-ईरानी लोगों के शिकारी से पशुपालक के रूप में परिवर्तन और अधिक स्थाई जीवन शैली अपनाने के काल का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।

'शाहनामा' और अन्य ईरानी मिथकशास्त्रों में राजा जमशेद द्वारा नौरोज़़ की शुरुआत करने का वर्णन मिलता है। पुस्तक के अनुसार, जमशेद ने एक रत्नखचित सिंहासन का निर्माण करवाया और उसे देवदूतों द्वारा पृथ्वी से ऊपर उठवाया और स्वर्ग में स्थापित करवाया तथा इसके बाद उस सिंहासन पर सूर्य की तरह दीप्तिमान होकर बैठा। दुनियावी लोग और जीव आश्चर्य से उसे देखने हेतु इकठ्ठा हुए और उसके ऊपर मूल्यवान वस्तुयें चढ़ाईं, और इस दिन को नया दिन (नौ रोज़) कहा। यह ईरानी कालगणना के अनुसार फ़रवरदीं माह का पहला दिन था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नया दिन
  2. पूजनीय लोग
  3. पहले से मौजूद आत्माएं

बाहरी कड़ियाँ

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