किंवदंतियों के अनुसार, मन्दिर के गर्भगृह में रखा शिवलिंग दानवीर कर्ण ने दान दिया था, जो पांडवों के बड़े भाई थे।
अन्य जानकारी
कहा जाता है कि जब युधिष्ठर द्रौपदी के साथ यहाँ भोलेनाथ की पूजा करते थे, तो उनके चारों भाई मन्दिर के चारों गुंबदों पर शिव की आराधना करते थे।
पाण्डेश्वर महादेव मन्दिरहस्तिनापुर के एक पुराने शहरे में खंडहर में स्थित है। हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के निकट स्थित है। यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। किंवदंतियों के अनुसार, मन्दिर के गर्भगृह में रखा शिवलिंग दानवीर कर्ण ने दान दिया था, जो पांडवों के बड़े भाई थे। कर्ण को अपने समय का सबसे बड़ा परोपकारी माना जाता है। मन्दिर एक छोटी पहाड़ी के शीर्ष पर बंगाली समुदाय द्वारा निर्मित माँ काली की मूर्ति के नीचे स्थित है। यहाँ से हस्तिनापुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों का तथा शहर का शानदार दृश्य देखने को मिलता है।[1]
इतिहास
महाभारतकालीन नगरी हस्तिनापुर के पांडव वन ब्लॉक स्थित प्राचीन पाण्डेश्वर मन्दिर क्षेत्र के साथ-साथ दूर-दराज के लोगों की भी आस्था का केंद्र है। महाभारत काल से जुड़ा होने के कारण इस मन्दिर की मान्यता और भी अधिक है। मन्दिर में स्थित प्राकृतिक शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने की थी। बताया जाता है कि पाण्डेश्वर मन्दिर का इतिहास लगभग पांच हजार वर्षों से भी अधिक पुराना है। हिन्दू धर्म के ग्रंथों आदि में भी इस मन्दिर का उल्लेख है। अति प्राचीन होने के कारण इस मन्दिर का उल्लेख पुरातत्व विभाग आदि ने भी किया है। मन्दिर की मान्यताओं को लेकर कई तरह की किदवंतियाँ भी जुड़ी हैं।
नामकरण
बुजुर्गों के अनुसार महाभारत काल में हस्तिनापुर के महाराज पाण्डु के ज्येष्ठ पुत्र युधिष्ठर ने धर्म युद्ध से पहले यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना करवा कर भगवान शिव से युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद लिया था। इसी मन्दिर में पाण्डवद्रौपदी के साथ पूजा-अर्चना करने के लिए आते थे। पांडवों के पूजा करने से ही इस मन्दिर का नाम 'पाण्डेश्वर महादेव मन्दिर' पड़ गया।
मान्यता
यह भी कहा जाता है कि जब युधिष्ठर द्रौपदी के साथ यहाँ भोलेनाथ की पूजा करते थे, तो उनके चारों भाई मन्दिर के चारों गुंबदों पर शिव आराधना करते थे। हर साल दोनों 'शिवरात्रियों' पर लगने वाला भक्तों का तांता मन्दिर की मान्यता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। मान्यता है कि जो शिव भक्त सावन मास के महीने में प्रतिदिन पाण्डेश्वर महादेव मन्दिर में स्थित शिवलिंग पर पंचामृत- दूध, घी, दही, शहद, गंगाजल से स्नान कराने के बाद पूजा-अर्चना करता है, उसे मनवांछित फल प्राप्त होता है।[2]
वट वृक्ष
मन्दिर परिसर में स्थित सैकड़ों वर्ष पुराना वट वृक्ष व शीतल जल का कुआँ आज भी शिव भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मन्दिर समिति और प्रशासन द्वारा यहाँ आने वाले भगवान शिव के भक्तों के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं। महिला श्रद्धालुओं को अलग से जल चढ़ाने की व्यवस्था व दूर-दराज के शिव भक्तों को भोजन आदि के लिए भंडारे की व्यवस्था मन्दिर समिति द्वारा की जाती है।