पालमपेट, मुलुग तालुका, ज़िला वारंगल, आन्ध्र प्रदेश का ही एक हिस्सा है।
प्रसिद्धि
वारंगल से 40 मील दूर यह स्थान रामप्पा झील के किनारे बने हुए मध्य युगीन मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। मुख्य मन्दिर एक प्राचीन भित्ति से घिरा है, जो बड़े-बड़े शिलाखण्डों से निर्मित है। इसके उत्तरी और दक्षिणी कोनों पर भी मन्दिर हैं। मन्दिर का शिखर बड़ी किन्तु हल्की ईटों का बना है। ये ईटें इतनी हल्की हैं, कि पानी पर भी तैर सकती हैं।
रचना-शैली
शैली की दृष्टि से यह मन्दिर वारंगल के सहस्र स्तम्भों वाले मन्दिर से मिलता-जुलता है, किन्तु यह उसकी अपेक्षा अधिक अलंकृत है। इसके स्तम्भों तथा छतों पर रामायण तथा महाभारत के अनेक आख्यान उत्कीर्ण हैं। देवी-देवों, सैनिकों, नटों, गायकों और नर्तकियों की विभिन्न मुद्राओं के मनोरम चित्र इस मन्दिर की मूर्तिकारी के विशेष अंग हैं। प्रवेश द्वार के आधारों पर काले पत्थर की बनी यक्षिणियों की मूर्तियाँ निर्मित हैं। इनकी शरीर रचना का सौष्ठव वर्णनातीत है। ये मन्दिर के द्वारों पर रक्षिकाओं के रूप में स्थित की गई हैं।
अतीत
एक कन्नड़-तेलुगु अभिलेख के अनुसार, जो मन्दिर के परकोटे की दीवार पर अंकित है, यह मन्दिर 1204 ई. में बना था। रामप्पा झील ककातीय राजाओं के समय की है। पालमपेट से प्राप्त एक अभिलेख से यह सूचित होता है कि यह 1213 ई. के लगभग ककातीय नरेश गणपति के शासनकाल में बनी थी। यह सिंचाई के लिए बनवायी गई थी। इसका जल संग्रह क्षेत्र लगभग 82 वर्गमील है और इसमें चार नहरें काटी गई थीं। इसके साथ ही दूसरी झील लकनावरम् है जो मुलगु से 13 मील दूर है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक ऐतिहासिक स्थानावली से) पेज नं0 554
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