वायु प्रदूषण

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वायु प्रदूषण

वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। ज्ञातव्य है कि प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन ज़रूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।

दूसरे शब्दों में, प्राकृतिक तथा मानव जनित स्रोतो से उत्पन्न बाहरी तत्वों के वायु मिश्रण के कारण वायु असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण कहते हैं तथा जिन कारकों से वायु प्रदूषित होती है उन्हें वायु प्रदूषक कहते है। इस तरह असंतुलित वायु की गुणवत्ता मे हृास हो जाता है और यह जीव-जंतुओ और पादपों के लिए हानिकारक हो जाती है।

वायु प्रदूषण के स्रोत

वायु प्रदूषण के स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है-

  1. प्राकृतिक स्रोत
  2. मानवीय स्रोत
प्राकृतिक स्रोत

प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु को प्रदूषित करने वाले प्रदूषकों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. आंधी, तूफान के समय उड़ती धूल
  2. वनों में लगी आग से उत्पन्न धुआं एवं कार्बन डाई ऑक्साइड
  3. दलदल एवं अनूपो में अपघटित होने वाले पदार्थों से निकलने वाली मीथेन गैस
  4. बैक्टीरिया से मिर्मुक्त कार्बन डाई ऑक्साइड
  5. कवक से उत्पन्न जीवाणु एवं वायरस आदि
  6. फूलों के परागकण से निर्मुक्त कार्बन डाईऑक्साइड
  7. धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह तथा उल्काओं आदि के पृथ्वी से टकराने के कारण उत्पन्न कास्मिक धूल
मानवीय स्रोत

मानव जनित प्रदूषक हैं-

  1. कार्बन डाई ऑक्साइड
  2. कार्बन मानो ऑक्साइड
  3. सल्फर के ऑक्साइड
  4. नाइट्रोजन के ऑक्साइड
  5. क्लोरीन
  6. सीसा
  7. अमोनिया
  8. कैडमियम
  9. बेंजीपाइस
  10. हाइड्रोकार्बन
  11. धूल

मानवीय कारणो से उत्पन्न वायु प्रदूषण को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • दहन प्रक्रिया द्वारा
  1. घरेलू कार्यों में दहन
  2. वाहनों में दहन
  3. ताप विद्युत ऊर्जा हेतु दहन
  • कृषि कार्यों द्वारा
  • औद्योगिक निर्माणों द्वारा
  • विलायकों के उपयोग द्वारा
  • आणविक ऊर्जा सम्बन्धी परियोजनाओं द्वारा
  • अन्य कारण।

दहन प्रक्रिया द्वारा

एक हजार गैलन पेट्रोल का उपयोग करने वाले वाहन द्वारा उत्सर्जित पदार्थ
उत्सर्जी पदार्थ मात्रा किग्रा में
कार्बन मोनो ऑक्साइड 1280
कार्बनिक वाष्प 80 से 160
नाइट्रोजन के ऑक्साइड 8 से 30
विभिन्न एल्डिहाइड 7.2
गन्धक के यौगिक 6.8
कार्बनिक अम्ल 0.8
अमोनिया 0.8
जस्ता तथा अन्य धातुओं के ऑक्साइड 0.13

ऊर्जा आज के जीवन की महती आवश्यकता है। ऊर्जा के बिना वर्तमान के क्रिया कलाप सम्भव नहीं है। खाना पकाने से लेकर ईंट, सीमेंट आदि के निर्माण मे ऊर्जा की ज़रूरत होती है। वाहनों एवं मशीनों आदि के चालन में भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा विभिन्न प्रकार के ईंधनों के दहन से प्राप्त होती है। घरेलू कार्यों के लिए जो ऊर्जा प्रयोग की जाती है वह कोयले, लकड़ी, कुकिंग गैस, उपलों, मिट्टी के तेल आदि से प्राप्त होती है। इन ईंधनों के दहन से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होतीं हैं तथा ईंधनों के अपूर्ण दहन से कई प्रकार के हाइड्रोकार्बन्स एवं साइक्लिक पाइरिन यौगिक उत्पन्न होते है। इस प्रकार के दहन से वायुमण्डल में दो प्रकार से प्रभाव पड़ता है। एक तो यह अनेक हानिकारक गैसें वायु में मिलकर उसे प्रदूषित करती हैं तथा दूसरी तरफ वायु में मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा मे कमी आती है, जो कि जीवन के लिए खतरनाक है। देश की कुल ऊर्जा का आधा भाग केवल रसोई घरों में खर्च होता है तथा देश के कुल प्रदूषण का 123 भाग केवल रसोई घरों से उत्पन्न होता है।

वायु प्रदूषण के लिए वाहन भी कम उत्तरदायी नहीं हैं। बसों, कारा, ट्रकों, मोटर साइकिलों, स्कूटर, डीज़ल, रेलों आदि सभी में दहन के लिए पेट्रोल अथवा डीज़ल ईंधन के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। इनसे भारी मात्रा में दम घोंटने वाला काला धुआं निकलता है, जो वायु को प्रदूषित करता है। डीज़ल वाहनों से जो धुआं निकलता है उनमें हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा सूक्ष्म कार्बनमयी कणिकाएं मौजूद रहती हैं। पेट्रोल चलित वाहनो के धुएं में कार्बन मोनो ऑक्साइड व लेड मौजूद होते हैं। लेड एक वायु प्रदूषक पदार्थ है। ज्ञातव्य है कि डीज़ल चालित वाहनों की अपेक्षा पेट्रोल चालित वाहनों से प्रदूषण अधिक होता है। एक अनुमान के अनुसार, एक मोटरगाड़ी एक मिनट में इतनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन खर्च करती है जितनी कि 1135 व्यक्ति सांस लेने में खर्च करते हैं। डीज़ल एवं पेट्रोल चालित वाहनों में होने वाले दहन से नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड भी उत्पन्न होती है जो सूर्य के प्रकाश में हाइड्रोकार्बन से करके रासयनिक धूम कुहरे को जन्म देते है। यह रासायनिक धूम कोहरा मानव के लिए बहुत खतरनाक है। सन् 1952 में पांच दिन तक लन्दन शहर रासायनिक धूम कुहरे से घिरा रहा, जिससे 4000 लोग मौत के शिकार हो गये एवं करोड़ों लोग हृदय रोग तथा ब्रोंकाइटिस के शिकार हो गये थे।

दिल्ली विश्व का तीसरा और भारत का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। इसकी गम्भीरता को देखते हुए उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. ए. एस. आनन्द, न्यायमूर्ति श्री बी. एन. कृपाल और न्यायमूर्ति श्री ए. के. खरे की खण्डपीठ ने महेश चन्द्र मेहता की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 22 सितम्बर 1988 को दिल्ली सरकार को यह निर्देश दिया कि सरकार लास एंजिल्स की तर्ज पर दिल्ली में ऑक्साइड स्तर को नियंत्रित करे।

भारत के प्रमुख शहरों में मोटर वाहनो द्वारा उत्सर्जित प्रदूषक
(टन प्रतिदिन)
शहर सूक्ष्म कण सल्फर डाई
ऑक्साइड
नाइट्रोजन
ऑक्साइड
कार्बन मोनो
ऑक्साइड
दिल्ली 8.58 7.4 105.38 452.51
मुंबई 4.66 3.36 59.02 391.6
बैंगलोर 12.18 1.47 21.85 162.8
कोलकाता 2.71 3.04 45.58 156.87
चेन्नई 1.95 1.68 23.91 119.35
भारत (अनुमानित) 60 630 270 2040

भारत में वाहनों से प्रतिदिन 60 टन सूक्ष्म कण, 630 टन सल्फर डाइ ऑक्साइड, 270 टन नाइट्रोजन आक्साइड ताकि 2040 टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित होता है। भारत के अधिकांश ताप विद्युत गृहों में ईंधन के रूप में कोयला प्रयुक्त किया जाता है जिसके जलने से कार्बन डाई आक्साइड, धुआं तथा कुछ अन्य गैसें उत्पन्न होती हैं। भारतीय कोयले में अन्य देशों के कोयले की तुलना में 25 से 40 प्रतिशत तक फ्लाई ऐश होता है और गंधक की मात्रा एक प्रतिशत कम होती है, जिसकी वजह से 200 मेगावाट का भारतीय बिजलीघर लगभग 50 टन सल्फर डाई ऑक्साइड तथा 50 टन से अधिक कालिख बाहर फेंकता है। कोयले को जलाने पर अपशिष्ट के रूप में जो राख उत्पन्न होती है, वह बाहर फेंक दी जाती है। यह राख हवा के माध्यम से उड़कर वायुमण्डल को प्रदूषित करती है।

कृषि कार्यों द्वारा वायु प्रदूषण

कृषि कार्यों मे कीटनाशी एवं जीवाणुनाशी दवा का उपयोग दिनो दिन बढ़ता जा रहा है। तीसरे विश्व में भारत सर्वाधिक पेस्टीसाइड उत्पादक देश है। एक अनुमान के अनुसार- 1993 में देश में लगभग 84045 टन कीटनाशक दवाओं का उपयाग किया गया था। जब ये कीटनाशक दवाएं छिड़की जाती हैं तो ये उड़कर वायु में मिल जाती हैं और वायु प्रदूषणा का कारण बनती हैं। कभी-कभी इनका छिड़काव वायुयानों द्वारा भी किया जाता है।

औद्योगिक निर्माणों द्वारा

कल कारखानों से धुआं, गैसें तथा कुछ कण युक्त पदार्थ निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। वायु प्रदूषण कपड़ा बनाने के कारखानों, रासायनिक उद्योगों, तेल शोधक कारखानों, चीनी बनाने के कारखानों, धातुकर्म एवं गत्ता निर्माण करने वाले कारखानों से सर्वाधिक होता है। इन कारखानों से कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर, सीसा, बेरेलियम, जिंक, कैडमियम, पारा तथा धूल वायुमण्डल में पहुंचती है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। पूर्वी अमेरिका तथा उत्तर पश्चिमी यूरोप आदि के औद्योगिक क्षेत्रों के वायुमण्डल में इतनी अधिक मात्रा मे सल्फर डाई आक्साइड मौजूद है कि वर्षा के समय गिरने वाला जल जल न होकर सल्फ्यूरिक अम्ल होता है। इसे ही तेजाबी वर्षा कहते हैं।

वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गम्भीर है कि विभिन्न देशों में इसके घातक परिणामो से बचाव के लिए चेतावनी दी जा रही है। संयुक्त राज्य अमरीका के लॉस एंजिल्स की स्थिति इतनी भयावह है कि वहां के स्कूलों के क्रीड़ा मैदानों में यह चेतावनी लिखी गयी है कि सावधान, अत्यधिक धुएं की स्थिति में व्यायाम न करें और न गहरी सांस लें।

वायु प्रदूषण

भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है। यहां के वायुमण्डल में सल्फर डाईआक्साइड एवं धूल कणों की मात्रा बहुत अधिक है। भारत के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, चेन्नई, कानपुर आदि हैं। दिल्ली की वायु धूलकणों की सान्द्रता 700 माइक्रोग्राम/घन मीटर आंकी गई है, जो देश के अन्य महानगरों की तुलना में सबसे अधिक है। अहमदाबाद मे कपड़े की मिलें हैं जिनसे कपास धूल निकलती है। इसके अतिरिक्त यहां धुएं के बादल छाए रहते हैं। यहां के लाग दमा और तपेदिक बीमारियो से ज्यादा पीडि़त होते हैं। मुंबई की अधिकांश औद्योगिक इकाइयां चेम्बूर-ट्राम्बे क्षेत्र में स्थित हैं। यहां वायुमण्डल में धूल काणों की सान्द्रता 238 माइक्रोग्राम/घन सेमी है। कानपुर में चर्मशालाएं, कपड़ा मिलें, रसायन व दवा बनाने वाले कारखाने अधिक हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार शहर के स्वच्छ वायु क्षेत्रों की तुलना में वायु प्रदूषित क्षेत्रों में एक बच्चे की लम्बाई 4 सेमी तथा वजन 3 किग्रा कम पाया गया है।

विलायकों के उपयोग द्वारा

फर्नीचरों पर की जाने वाली पॉलिश और स्प्रे पेंट बनाने में जो विलायक इस्तेमाल किए जाते हैं उनमें अधिकतर उड़नशील हाइड्रोकार्बन होते है। जब फर्नीचर की पॉलिश अथवा स्प्रे पेंट किया जाता है तो ये हाइड्रोकार्बन उड़कर वायु में मिल जाते हैं।

आणविक ऊर्जा सम्बंधी परियोजनाओं द्वारा

परमाणु बमों एवं परमाणु विद्युत उत्पन्न करने जिन समस्थानिकों का उपयोग किया जाता है, उनकी प्रकृति अस्थाई होती है। विस्फोट के समय ये समस्थानिक वायुमण्डल में दूर-दूर तक फैल जाते हैं तथा बाद में पृथ्वी पर अवपात के रूप में गिरते हैं, जो अपना घातक प्रभाव छोड़ते है। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराये गये परमाणु बमों का प्रभाव वहां लम्बे समय तक रहा।

वायु प्रदूषण के अन्य कारण

जानवरों के शवों द्वारा

भारत में मृत जानवरों की खाल निकालने की परंपरा है। मृत जानवरों को लोग बस्तियों से उठाकर ले जाते है तथा खाल निकालकर शेष भाग को खुले में छोड़ देते है। जब ये शव सड़ते हैं तो अत्यधिक दुर्गन्ध निकलती है, जो वायु प्रदूषण का कारण बनती है।

शौचालयों की सफाई न होना

सार्वजनिक और व्यक्तिगत शौचालयो की समुचित सफाई न होने से क्षेत्र विशेष की वायु प्रदूषित होती है।

कूड़े कचरे का सड़ना एवं नालियों की सफाई न होना

लोग बहुध अपने घरों के बाहर सड़क पर अथवा नालियों में कूड़ा कचरा फेंक देते हैं जो दुर्गंध फैलाता है तथा नालियों के बजबजाने से भी दुर्गन्ध पैदा होती है जिससे विभिन्न बीमारियों के विषाणु पनपते हैं और मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है। धूम्रपान, धूल, कूड़े कचरे का जलाया जाना आदि भी वायु प्रदूषण के कारण हैं।

वायु प्रदूषण का प्रभाव

वायु प्रदूषण

वैसे तो सभी प्रकार के प्रदूषणों का प्रभाव ख़राब होता है किन्तु वायु प्रदूषण का प्रभाव क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से वायु प्रदूषण के प्रभाव को निम्न प्रकार वर्गीकृत कर सकते है।

  1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
  2. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव
  3. पेंड़-पौधों एवं वनस्पतियों पर प्रभाव
  4. जलवायु और मौसम पर प्रभाव
  5. दृश्यता का प्रभाव
  6. इमारतो पर प्रभाव
  7. अन्य प्रभाव

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे मानव का श्वसन तंत्र प्रभावित होता है। वायु प्रदूषण से दमा, ब्रोंकाइटिस, सिरदर्द, फेफड़े का कैंसर, खांसी, आंखों में जलन, गले का दर्द, निमोनिया, हृदय रोग, उल्टी और जुकाम आदि रोग हो सकते है। सल्फर डाई आक्साइड से एम्फायसीमा नामक रोग होता है। अमेरिका मे प्रतिवर्ष 50,000 लोग इस रोग से मर जाते है।

जीव-जन्तुओं पर प्रभाव

वायु प्रदूषण का प्रभाव जीव-जन्तुओं पर भी गम्भीर रूप से पड़ता हैं। इसकी वजह से जीव-जन्तुओं का श्वसन तंत्र एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। मोटर वाहनो से निकले धुएं से प्रकाश की पराबैंगनी किरणों की मात्रा कम हो जाती है और जीव-जन्तु प्रभावित होते हैं। वायु प्रदूषण से शलभ, मधुमक्खी एवं कीटभक्षी स्तनपोषी बड़ी संख्या में मरते है। इसके अतिरक्त घास आदि पशुओ के चारे पर जब विभन्न क्लोराइ यौगिकों का अवपात होता है और जब पशु इस प्रकार के चारे को खाते है तो उनके शरीर में फ्लोराइड यौगिको की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे उनके दांत व हड्डियों में फ्लूओारोसिस रोग हो जाता है, परिणामस्वरूप उनका वजन घटने लगता है और पैरों में लंगड़ापन आ जाता है।

वायु प्रदूषक गैसों की असहनीय सीमाएं
प्रदूषक गैस प्रति मी3 वायु में भार अधिकतम सहनीय सीमा
कार्बन मोनो आक्साइड 10 8 घण्टे
नाइट्रोजन ऑक्साइड 250 24 घण्टे
सल्फर डाई ऑक्साइड 365 24 घण्टे
हाइड्रोकार्बन यौगिक 125 30घण्टे
फोटो रासायनिक ऑक्साइड 125 1 घण्टे

पेड़ पौधों एवं वनस्पतियों पर प्रभाव

वायु प्रदूषण से वृक्ष, फल, फूल एवं सब्जियाँ व्यापक रूप से प्रभावित होती हैं। प्रदूषित वायु के कारण सूर्य के प्रकाश की मात्रा मे कमी आ जाती है जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया कुप्रभावित होती है। वायु प्रदूषित क्षेत्रों में जब बरसात होती है तो वर्षा में विभिन्न प्रकार की गैसें एवं विषैले पदार्थ घुलकर धरती पर आ जाते हैं तथा पौधों की जड़ों में पहुंचकर उन्हें नष्ट कर देते हैं।

कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, फ्लोराइड तथा ओज़ोन जैसे प्रदूषक पौधों को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। जब ओज़ोन का स्तर 0.02 पीएच हो जाता है तो टमाटर, मटर, तम्बाकू, चीड़ तथा अन्य प्रकार के पेड़-पौधों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। सल्फर डाईआक्साइड की अधिकता से पौधों की पत्तियाँ रंगहीन होकर नष्ट हो जाती हैं। प्रायः देखा गया है कि जिन क्षेत्रों में ईट के भट्टे होते हैं, वहां आम की फसल बुरी तरह प्रभावित होती है क्योंकि उनकी चिमनियों से निकलने वाला धुआं पेड़-पौधों के लिए हानिकारक होता है। वायु प्रदूषण जहां एक ओर पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है वहीं फसलों के उत्पादन पर भी अपना कुप्रभाव डालता है।

इसी प्रकार मोटर वाहनो के धुएं में मौजूद एथिलीन से वृक्षों में लगे फलो की कारोनेशन पंखुडि़यां अंदर की तरफ मुड़ जाती हैं जिससे आरकिड के बाह्य दल सूख जाते हैं और फूल नष्ट हो जाता है।

जलवायु और मौसम पर प्रभाव

वायु प्रदूषण से विश्व की जलवायु काफ़ी प्रभावित हुई है। पिछले कुछ वर्षों में ठण्डी जलवायु वाले क्षेत्र काफ़ी गर्म हो गए हैं और गर्म स्थान ठण्डे हो गये हैं। बाढ़ एवं सूखा का एक कारण वायु प्रदूषण है।

वैज्ञानिकों के अनुसार वायुमण्डल में प्रतिवर्ष कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा 2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है तथा पिछले 50 सालों में पृथ्वी के औसत तापमान में 1° सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि पृथ्वी का तापमान 3.6 और बढ़ जाता है तो इसका परिणाम यह होगा कि अण्टार्कटिका तथा आर्कटिक ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल जाएगी और समुद्र की सतह 100 मीटर ऊंची हो जाएगी, परिणाम स्वरूप सारी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। यदि तापमान वृद्धि की यही दर विद्यमान रही तो जल प्रलय की स्थिति 108 वर्षों बाद आ जाएगी।

ऐसा महसूस किया जा रहा है कि पिछले कुछ वर्षों में जाड़ों में पहले की तुलना में अधिक ठण्ड और गर्मियों में अधिक गर्मी पड़ रही है। शहरी क्षेत्रों का दैनिक तापमान ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है। इसका एक कारण यह है कि वायु प्रदूषक तापमान का परावर्तन करते हैं।

दृश्यता पर प्रभाव

वायु में उपस्थित प्रदूषक पदार्थों के छोटे-छोटे कण प्रकाश की किरणों को प्रकीर्णित कर देते हैं जिससे दृश्यता कम हो जाती है। ठण्डे प्रदेशों में वायुमण्डल की नमी एवं निम्न ताप के कारण हाइड्रोकार्बन वायुमण्डल में जम जाते हैं, जिससे धूम कुहासा बन जाता है, परिणामस्वरूप दुर्घटनाओ की सम्भावना बढ़ जाती है।

इमारतों पर प्रभाव

वायु प्रदूषण से ऐतिहासिक इमारतें प्रभावित होती है क्योंकि वे विशेषकर संगमरमर की बनी होती है अथवा उनमें कांसे का उपयोग किया गया है। भारत में मथुरा रिफाइनरी की एसिड लपटो से ताजमहल और वहां के प्राचीन मन्दिर प्रभावित हो रहे हैं। इन्द्रप्रस्थ बिजलीघर में प्रयुक्त कोयले की राख से लाल क़िले के पत्थर प्रभावित हो रहे है।

ताजमहल पर विपरीत प्रभाव पड़ने का कारण यह भी है कि मथुरा रिफाइनरी से जो धुआं निकलाता है, उसमें सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा अधिक होती है, जो वर्षा के जल के साथ अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल संगमरमर पर विपरीत प्रभाव छोड़ता है।


इन्हें भी देखें: केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

अन्य प्रभाव

वायु प्रदूषण के कुछ अन्य प्रभाव निम्न हैं-

  1. प्रदूषित वायु में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस की मात्रा निर्धारित मात्रा से अधिक होती है जिससे चांदी की चमक कम हो जाती है और सीसे से बनी वस्तुएं काली पड़ जाती है।
  2. अम्लीय वायु प्रदूषकों से धातुओं में जंग लग जाती है तथा कपड़ कमज़ोर हो जाता है।
  3. प्रदूषित वायु का प्रभाव इस्पात पर भी पड़ता है। शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण ज्यादा होने के कारण यहां इस्पात ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा घिसता है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय

  1. कल-कारखानों की चिमनियों की उंचाई अधिक होनी चाहिए।
  2. रेल यातायात में कोयले अथवा डीज़ल के इंजनों के स्थान पर बिजली के इंजनों का उपयोग किया जाना चाहिये।
  3. मोटर वाहनों का रख-रखाव ठीक रखा जाए। कारबुरेटर की सफाई कर कार्बन मोनो आक्साइड का उत्सर्जन कम किया जा सकता है तथा लेड रहित पेट्रोल का ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाए।
  4. पुराने वाहन के संचालन पर प्रतिबंध लगाया जाए क्योंकि उनसे वायु प्रदूषण ज्यादा होता है।
  5. घरों में सौर ऊर्जा चालक कुकर का उपयोग किया जाए।
  6. यूरो-1 और यूरो-2 मानकों का कड़ाई से पालन कराया जाए।

वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के कुछ अन्य उपाय

  1. ओज़ोन परत को क्षतिग्रस्त करने वाले क्लोरोफ्लोरो कार्बन (फ्रियॉन-11 तथा फ्रियॉन-12) के उत्पादन एवं उपयोग पर कटौती की जानी चाहिए।
  2. कारखानों की चिमनियों में बैग फिल्टर का उपयोग किया जाना चाहिए, जिससे चिमनियों से निकलने वाले धुएं में मौजूद कालिख एवं कणकीय पदार्थ चिमनी के नीचे बैठ जाए तथा गैस फिल्टर से होकर निकल जाए।
  3. 50 माइक्रोमीटर से बड़े आकार के कणिकीय पदार्थों को फिल्टर करने के लिए साइक्लोन सेपरेटर या साइक्लोन कलेक्टर तथा वेट स्क्रबर का उपयोग किया जाना चहिए। इसके लिए कारखानों से निकलने वाले कणिकीय पदार्थो से युक्त धुएं को शंक्काकार सिलिण्डर से होकर गुजारा जाता है। सिलिण्डर मे ठोस कणों युक्त धुएं का तेज़ीसे मंथन होता है तथा ठोस पदार्थ नीचे से निकल जाते हैं, बची हुई गैस ऊपर से निकल जाती है। वेट स्क्रबर के तहत गैसों को जल के प्रयोग द्वारा साफ़ किया जाता है। एक माइक्रोमीटर से छोटे आकार के कणिकीय पदार्थों को धुएं से अलग करने के लिए इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर, हाई इनर्जी स्क्रबर तथा फैब्रिक फिल्टर का उपयोग किया जाता है। पेट्रोल चलित वाहनो से प्रदूषक गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए उनमें कैटलिक कन्वर्टर लगाया जाना चाहिए।


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