बानो जहाँगीर कोयाजी
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पूरा नाम | बानो जहाँगीर कोयाजी |
जन्म | 7 सितम्बर, 1917 |
जन्म भूमि | मुम्बई |
मृत्यु | 15 जुलाई, 2004 |
अभिभावक | पेस्टनजी कपाडिया |
संतान | कुरुम |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | चिकित्सा विज्ञान |
विद्यालय | ग्रांट मेडिकल कॉलेज |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मभूषण', (1989), 'मैग्सेसे पुरस्कार', 1993 |
प्रसिद्धि | परिवार नियोजन विशेषज्ञ |
विशेष योगदान | इन्होंने पुणे में अस्पताल को अपने कार्य क्षेत्र का माध्यम बना करके अपना व्यापक योगदान, इस दिशा में दिया कि महाराष्ट्र की ग्रामीण स्त्रियों तथा उनके परिवारों के जीवन में सुधार आये। |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | डी. एन. खुरोदे, वर्गीज़ कुरियन |
अद्यतन | 15:19, 14 अगस्त 2016 (IST)
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बानो जहाँगीर कोयाजी (अंग्रेज़ी: Banoo Jehangir Coyaji, जन्म: 7 सितम्बर, 1917; मृत्यु: 15 जुलाई, 2004) भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक थींं। बानो पारसी सम्पन्न परिवार में पली बढ़ी थीं। ये परिवार नियोजन की पक्षधर तथा विशेषज्ञ भी थीं। इन्होंंने अपने कॅरियर की शुरुआत सन 1943 में 'स्त्री रोग तथा प्रसूति' में की। वहाँ अपनी प्रैक्टिस करने के बजाय डॉ. इडुल्जी कोयाली के साथ बतौर सामान्य डॉक्टर के रूप में कार्य किया। 14 मई 1944 में किंग एंडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल (KEM) के चेयरमैन सरदार मुदलियार ने खुद बानो को आमंत्रित कर एक कुशल डॉक्टर पद सम्भालने का कार्य किया। बानो ने 1972 में KEM में छोटा क्लीनिक वाडू में स्थापित कर, वहाँ प्रसूति तथा परिवार नियोजन कार्यक्रमों को ऊपर रखते हुए व्यवस्था भी की। इन्होंने पुणे में अस्पताल को अपने कार्य क्षेत्र का माध्यम बना करके अपना व्यापक योगदान इस दिशा में दिया कि महाराष्ट्र की ग्रामीण स्त्रियों तथा उनके परिवारों के जीवन में सुधार आये।[1]
जन्म तथा शिक्षा
इनका का जन्म मुम्बई में 7 सितम्बर, 1917 को हुआ था। यह अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थीं। बानो का पारसी परिवार बम्बई में रह रहा था। बानों के पिता पेस्टनजी कपाडिया एक सिविल इंजीनियर तथा वस्तु विशेषज्ञ थे। सम्पन्न परिवार में जन्म लेने के कारण इनका पालन पोषण बहुत अच्छी तरह हुआ था। उनके माता-पिता ने पढ़ाई की लिए इनको ननिहाल भेज दिया, जो पूना में थे। इसका कारण उनकी यह आशँका थी कि एकमात्र तथा अकेला बच्चा होने के कारण बम्बई में बानो का विकास ढंग से नहीं हो पाएगा। बानो का नहिहाल भरा-पूरा परिवार था, बानो की शिक्षा बहुत सुचारू रूप में चली। मुम्बई से इनके माता-पिता भी इनसे मिलने प्राय: आते रहते थे।
पूना में बानो की पढ़ाई कान्वेन्ट ऑफ जीसम मेरी में हुई। इस कान्वेन्ट में बानो नौ वर्ष तक पढ़ी और अपने कैम्ब्रिज सर्टिफिकेट तक वह हमेशा कक्षा में प्रथम ही आती रहींं। शायद ही कुछ गिने-चुने मौके हों, जब वह प्रथम न आई हों। कान्वेन्ट में पढ़ते हुए बानो ने संगीत में रुचि ली, नृत्य किया। नाना के घर में प्यानो था। संगीत के संस्कार बानो को पिता से मिले थे। बानो इस बात को अपनी स्मृतियों में संजोती रहीं, कि राष्ट्रवादी होने के बावजूद जब 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स भारत आए तक उनके पिता ने उनके सम्मान में एक संगीत रचकर उन्हें सुनाया था। बानो ने अपना कैम्ब्रिज पाँच विशेष योग्यताओं (डिस्टिंकशन) के साथ पास करने के बाद डॉक्टर बनने का फैसला किया और 1933 में उन्होंने मुम्बई के सेंट जेवियर्स कालेज में प्री-मेडिकल में प्रवेश लिया। उनकी मेडिकल डिग्री भी बम्बई में ग्रांट मेडिकल कालेज से पूरी हुई। वर्ष 1940 में उन्होंने अपनी एम.डी. डिग्री भी वहीं से हासिल की।
विवाह
एक बार वर्ष 1935 में, छुट्टियाँ बिताने के लिए वह महाबलेश्वर में थीं। यह पहाड़ी स्थान दक्षिण में स्थित है। यहाँ उनकी भेंट जहाँगीर कोयाजी से हुई। वह हाल में ही अमेरिका की पुर्द यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग पढ़कर लौटे थे। बह बानो की एक अंतरंग टीचर के छोटे भाई थे। बानो ने जहाँगीर कोयाजी को 'ब्यायलार का मिस्त्री' कहना शुरू किया। उनकी आपसी अंतरंगता बढ़ती गई और उनकी मित्रता पाँच वर्ष चली। उसके बाद अपनी मेडिकल की डिग्री पूरी करने के बाद 24 फरवरी 1941 को बानो का विवाह जहाँगीर कोयाजी से सम्पन्न हुआ। शादी के तुरंत बाद बानो ने ग्रांट मेडिकल कॉलेज में ही, डॉ. शिरोड़कर के निर्देशन में 'स्त्रीरोग तथा प्रसूति' में अपनी रेजिडेंसी (हाउस जॉब) पूरी की। उसी दौरान 7 अगस्त 1942 को उन्होंने अपने बेटे कुरुम को जन्म दिया, वह अपने माँ बाप की एकमात्र संतान रहा।
कॅरियर की शुरुआत
1943 में बानो तथा उनके पिता जहाँगीर ने अपना घर पूना लिया और उनका परिवार वहाँ आ गया। जहाँगीर का काम भी पूना इलेक्ट्रिक सप्लाई कम्पनी में था। पूना पहुँचकर बानो ने 'स्त्री रोग तथा प्रसूति' में अपनी प्रैक्टिस करने के बजाय डॉ. इडुल्जी कोयाली के साथ बतौर सामान्य डॉक्टर काम करना चुना। वह निरंतर यही कहती रहीं कि मैं केवल प्रसूति तक सीमित डॉक्टर नहीं हूँ, मुझे सामान्य डॉक्टर की तरह काम करना ज्यादा अच्छा लगता है।
- डॉक्टर के रूप में
एक दिन अचानक उन्हें उनके पति जहाँगीर ने सुझाया कि वह कल से ही किंग एंडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल (KEM) में काम करना शुरु करें। पूछने पर पता चला कि उस अस्पताल के चेयरमैन सरदार मुदलियार ने खुद बानो को आमंत्रित किया है। उन्हें एक कुशल डॉक्टर की तत्काल ज़रूरत है। इस सुझाव को मान कर 14 मई 1944 को बानो ने इस KEM में डॉक्टर का पद भार सम्भाल लिया।[1]
यह KEM अस्पताल 1912 में पूना के प्रख्यात व्यक्ति की स्मृति की स्मृति में शुरू किया गया था, जिनकी मृत्यु उसी वर्ष हुई थी। यह एक निजी सहायतार्थ चिकित्सालय था, जो छोटी पूँजी तथा अनुदान पर चल रहा था। जब बानो ने इस अस्पताल में कदम रखा था, तब इसमें मात्र चालीस बिस्तर थे। वहाँ पटेल नामक डॉक्टर था, जो कि छुट्टी पर चला गया था और ऐसे में बानों को वहाँ तत्काल चार्ज सम्भालना पड़ा था।
बानो ने पाया कि भले ही वह अस्पताल KEM मूलत: स्त्रियों की प्रसूति के लिए था, लेकिन वहाँ सभी तरह की बीमार स्त्रियाँ आती थीं। ज्यादातर स्त्रियाँ ग़रीब हिन्दू घरों से आती थींं और तभी अस्पताल पहुँचती थीं, जब स्थितियाँ बरदाश्त के बाहर हो जाती थींं। बैलगाड़ी पर लदी कष्ट से बेहाल स्त्री मरीज किसी भी तकलीफ को लेकर वहाँ आ खड़ी होती थीं। वहाँ बानों के साथ एक महिला डॉक्टर तथा तीन नर्से और थीं, जो सारा डॉक्टरी का काम सम्भालती थीं। काम सम्भालने के लिए कभी-कभी उन्हें अठारह घंटे की ड्यूटी पड़ जाती थी, लेकिन उसे सम्भालना होता था।
जब बानो और जहाँगीर का परिवार पूना, बानो की नानी-नाना की मृत्यु हो चुकी थी तथा उनका बड़ा-सा घर, जिसमें बानो का बचपन बीता था, वह बिक चुका था। इस स्थिति में बानो का परिवार अस्पताल की ऊपरी मंजिल पर बने एक अपार्टमैंट में चला गया। यह स्थिति बानो के लिए सुविधाजनक थी। वह बेटे का भी ध्यान कर लेती थीं तथा लम्बे समय तक अस्पताल में भी रह सकती थीं। जहाँगीर की कम्पनी भी पास में ही सड़क के ही पार थी, इस दृष्टि से भी यह व्यवस्था सबके लिए बहुत अनुकूल थी हालाँकि इसने बानो को अस्पताल में ज्यादा समय देने के कारण थकाना शुरू कर दिया था।
राष्ट्रीय भावना
बानो के जन्म से ही राष्ट्रीय भावना के संस्कार मिले थे। उनका लगाव गाँधी जी के प्रति भी था। एक प्रसंग यह बहुत आत्मीयता से याद करती थीं। एक बार छुट्टियों में यह बलसागर के समुद्र तट से लगे एक परिवार के घर टहलते हुए। उस समय बानो बच्ची ही थीं। उस दौर में गाँधीजी हरिजनों के लिए चन्दा इकठ्टा कर रहे थे। गाँधी जी को देख कर बानों तथा उसकी बहनें भाग कर उनके पास गई। गाँधी जी ने पूछा।
"तुम लोग कहाँ से आई हो"
इन्होंने इशारा करके अपना घर दिखाया। इस पर गाँधी जी ने प्रश्न किया।
"तब तो तुम लोग बड़े अमीर हो..."
"हाँ", बानो ने स्वीकार किया।
"तो जाओ और तुम सब हरिजन फण्ड के लिए सौ-सौ रुपये लेकर आओ..."
यह सुनकर बानो अपनी बहनों के साथ भागकर गई और अपने मामा-मामी के पीछे पड़ गई कि, हरिजन फण्ड के लिए चंदा दो-अलगे दिन ही बानो ने उनसे सौ रुपये लेकर चंदा दिया और बहुत खुश हुई।
जब देश आज़ाद हुआ तो बानो तथा जहाँगीर ने यूनियन जैक का झण्डा उतरते तथा तिरंगा फहराते देखा। बानो याद करती थीं, कि वह आसानी से भावुक नहीं होती लेकिन तिरंगा देखकर वह और उनके पिता पति दोनों खुशी से इतने बिह्वल हुए कि उनके आँसू बह निकले।
क्लीनिक की स्थापना
वर्ष 1960 के दशक तक बानो ने KEM में निष्ठापूर्वक काम किया लेकिन तभी उन्हें इस बात का एहसास होने लगा कि इस तरह से केवल रोज का काम निपटाने से बात नहीं बनेगी। इन्होंने KEM का विस्तार गाँवों की ओर करने की योजना प्रस्तावित कीं। इस दिशा में उन्हें प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जे.पी. नायक से प्रेरणा भी मिली और दिशानिर्देश भी। बानो की नजर वाडू ब्लाक की ओर गई, जहाँ तीस हज़ार गाँव वाले बसे हुए थे। यह हिस्सा सोखे के चपेट में भी रहता था। बानो ने स्वास्थ्य सचिव से आग्रह किया कि ब्लाक की प्राइमरी हेल्थ इकाई उनके हवाले कर दी जाए और वह उसकी व्यवस्था सम्भाले। 1972 में KEM में छोटा क्लीनिक वाडू में स्थापित कर दिया, जहाँ प्रसूति तथा परिवार नियोजन कार्यक्रमों को ऊपर रखते हुए व्यवस्था की गई। बानो ने परिवार नियोजन कार्यक्रामों की ज़रूरत को गहराई से समझा। इसे गाँव की अनपढ़ स्त्रियों का सबसे बड़ा कष्ट का कारण माना कि उन्हें कई-कई बार बच्चे जनने पड़ते हैं और पालन-पोषण उनकी ग़रीबी को और कठिन बना देता है।[1]
परिवार नियोजन की पक्षधर
बानो परिवार नियोजन की पक्षधर भी थीं और विशेषज्ञ भी बनीं लेकिन उन्होंने आपातकाल में इंदिरा गाँधी के इसे चलाए जाने के ढंग पर असहमति जताई। इसको लेकर इंदिरा गाँधी ने उन्हें बात करने के लिए आमंत्रित किया और बानो ने इस बारे में अपना दृष्टिकोण उनके सामने रखा।
मैग्सेसे पुरस्कार
महाराष्ट्र के पारसी परिवार की बानो जहाँगीर कोयाजी चिकित्सा के क्षेत्र में बतौर डॉक्टर आईं, लेकिन उनका रुझान ग्रामीण निर्धन स्त्रियों के स्वास्थ्य की ओर ज्यादा होता गया। यह स्त्रियाँ ग़रीब तो थीं, साथ ही उनमें अशिक्षा के कारण स्वास्थ्य के प्रति जगरूकता भी नहीं थीं, बानो जहाँगीर ने यह भी देखा कि सामाजिक तौर पर परिवार में उनका स्थान बहुत सम्मानजनक नहीं है। ऐसे में बतौर डॉक्टर बानों का ध्यान केवल स्त्रियों के स्वास्थ्य पर नहीं गया बल्कि इन्होंने पुणे के अपने कार्य क्षेत्र के अस्पताल को माध्यम बना कर अपना व्यापक योगदान इस दिशा में दिया कि महाराष्ट्र की ग्रामीण स्त्रियों तथा उनके परिवारों के जीवन में सुधार आये। बानो जहाँगीर कोयाजी के इस सामाजिक सरोकार तथा उनकी दक्षता के लिए उन्हें 1993 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया।
- पद्मभूषण
बानो को वर्ष 1989 में 'पद्मभूषण' की उपाधि से भी अलंकृत किया गया।
मृत्यु
बानो जहाँगीर कोयाजी 15 जुलाई 2004 को स्वर्ग सिधार गईंं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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