बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना
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बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की स्थापना का संकल्प बिहार राज्य की विधान सभा ने 11 अप्रैल, 1947 ई. के दिन किया था। भारत-पाक विभाजन सम्बन्धी असुविधाओं के कारण परिषद का कार्य 1950 ई. में प्रारम्भ हो सका, जब शिवपूजन सहाय इसके मंत्री नियुक्त हुए थे।
- इस परिषद का उद्घाटन 11 मार्च, 1951 ई. के दिन हुआ। तब से यह विभिन्न क्षेत्रों में द्रुतगति से कार्यशील है।
- परिषद के उद्देश्यों की सफलता के लिए श्रेष्ठ साहित्य के संकलन और प्रकाशन की व्यवस्था भी की गयी है।
- प्रारम्भिक एवं वरिष्ठ ग्रंथ-प्रणेताओं एवं नवोदित साहित्यकारों को पुरस्कार देने की योजना बनी और सोचा गया कि उपयोग साहित्य का सम्पादन करने वालों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाय।[1]
- विशिष्ट विद्वानों के सारगर्भित भाषणों का प्रबन्ध हुआ और हस्तलिखित एवं दुर्लभ साहित्य की खोज का काम हाथ में लिया गया तथा भोजपुरी, मैथिली एवं मराठी आदि लोक भाषाओं क शब्दकोश प्रस्तुत करने की दिशा में प्रयत्न प्रारम्भ हुआ। इस कार्यक्रम के अनुसार अब परिषद के पास हस्तलिखित एवं दुर्लभ ग्रंथों का विशाल संग्रह एकत्र हो गया है।
- इसके द्वारा साहित्यिक एवं अन्य विषयों से सम्बद्ध प्राय: 70 ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं, जो अपने क्षेत्र की मानक कृतियाँ हैं।
- परिषद का वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष भव्य समारोह के साथ सम्पन्न होता है। योग्य विद्वानों के भाषणों की व्यवस्था इसी अवसर पर की जाती है।
- बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की ओर से त्रैमासिक 'परिषद पत्रिका' का भी प्रकाशन किया जाता है, जिसमें अधिकतर शोध रचनाएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 384 |