बीजू पटनायक

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बीजू पटनायक
बीजू पटनायक
बीजू पटनायक
पूरा नाम बिजयानंद पटनायक
जन्म 5 मार्च, 1916,
जन्म भूमि कटक, उड़ीसा
मृत्यु 17 अप्रैल, 1997
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
अभिभावक पिता- लक्ष्मीनारायण पटनायक, माता- आशालता देवी
पति/पत्नी ज्ञान पटनायक
संतान प्रेम पटनायक, नवीन पटनायक, गीता पटनायक
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, भूतपूर्व मुख्यमंत्री (उड़ीसा)
पार्टी जनता दल
पद मुख्यमंत्री
कार्य काल प्रथम - 23 जून 1961 से 2 अक्टूबर 1963 तक

द्वितीय - 5 मार्च 1990 से 15 मार्च 1995 तक

अन्य जानकारी बीजू पटनायक लोगों को प्रोत्साहित करने और विश्वास जीतने में दक्ष थे। वह लोगों के साथ प्रभावशाली ढंग से बात करते थे और अपने विचार जनता तक सही ढंग से पहुंचाने में समर्थ थे।

बीजू पटनायक (अंग्रेज़ी: Biju Patnaik, जन्म- 5 मार्च, 1916, कटक, उड़ीसा; मृत्यु- 17 अप्रैल, 1997, नई दिल्ली) प्रसिद्ध भारतीय राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता तथा उड़ीसा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री (तीसरे) थे। वह दो बार ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे थे। इनके नाम पर 'बीजू पटनायक हवाई अड्डा' भी है। बिजयानंद पटनायक को बीजू पटनायक के नाम से जाना जाता है। एक राजनेता के अलावा वह एक एयरनोटिकल इंजीनियर, नेविगेटर, उद्योगपति, स्वतंत्रता सेनानी व पायलट थे। इन सबसे ऊपर उन्हें एक अभूतपूर्व व्यक्तित्व के तौर पर जाना जाता है। नेपोलियन उनके प्रेरणा थे और बीजू ने उन्हीं के पदचिन्हों का अनुसरण किया। बीजू पटनायक लोगों को प्रोत्साहित करने और विश्वास जीतने में दक्ष थे। वह लोगों के साथ प्रभावशाली ढंग से बात करते थे और अपने विचार जनता तक सही ढंग से पहुंचाने में समर्थ थे। अपनी दृढ़ इच्छा और त्याग के चलते वह एक प्रसिद्ध राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता बने। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और उड़ीसा के लोगों के लिए आदर्श व्यक्तित्व बन गए।

प्रारंभिक जीवन

बीजू पटनायक का जन्म उड़ीसा के कटक में 5 मार्च, 1916 को हुआ। उनके पिता का नाम लक्ष्मीनारायण पटनायक और माता का नाम आशालता देवी था। उनके पिता उड़िया आंदोलन के अग्रणी सदस्य और जाने-माने राष्ट्रवादी थे। उनके दो भाई और एक बहन थी। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा मिशन प्राइमरी स्कूल और मिशन क्राइस्ट कॉलेजिएट कटक से पूरी की। 1927 में वह रेवेनशॉ विद्यालय चले गए, जहां एक समय पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी अध्ययन किया था। वह अपने कॉलेज के दिनों में प्रतिभावान खिलाड़ी थे और यूनिवर्सिटी की फ़ुटबॉल, हॉकी और एथलेटिक्स टीम का नेतृत्व करते थे। वह तीन साल तक लगातार स्पोर्ट्स चैंपियन रहे।

विमान चालक

दिल्ली फ्लाइंग क्लब और एयरनोटिक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में पायलट का प्रशिक्षण लेने के लिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। बचपन से ही उनकी रुचि हवाई जहाज उड़ाने में थी। इस प्रकार वह एक प्रख्यात पायलट और नेविगेटर बन गए। बीजू पटनायक ने इंडियन नेशनल एयरवेज ज्वाइन कर ली और एक पायलट बन गए। 1940-1942 के दौरान जब स्वतंत्रता का संघर्ष जारी था, वह एयर ट्रांसपोर्ट कमांड के प्रमुख थे।

बीजू पटनायक (पायलट)

बीजू पटनायक महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और 1943 में दो साल के लिए जेल की सजा भी काटी। उन पर स्वतंत्रता सेनानियों को अपने प्लेन में गुप्त स्थान तक पहुंचाने का आरोप था। जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ, तब उन्होंने रॉयल इंडियन एयरफोर्स ज्वाइन कर लिया। उन्होंने इंडोनेशिया के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई। पंडित जवाहरलाल नेहरू के मार्गदर्शन में उन्होंने डच शासकों के चंगुल से इंडोनेशिया के लोगों को आजाद होने में मदद की। 23 मार्च 1947 को पंडित नेहरू ने 22 एशियाई देशों की पहली इंटर एशिया कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए बीजू पटनायक को भी आमंत्रित किया था। इस कांफ्रेंस में इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री सुल्तान सजाहिर्र भी आमंत्रित थे। पंडित नेहरू बीजू पटनायक पर भरोसा करते थे, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री सुल्तान सजाहिर्र का आगमन सुरक्षित सुनिश्चित करने के लिए उनसे कहा और बीजू पटनायक ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। इसके बाद इंडोनेशिया के लोगों में उनकी छवि एक नायक की बन गई थी।[1]

राजनीतिक गतिविधियाँ

वर्ष 1946 में बीजू पटनायक उत्तर कटक विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे। 1961 से 1963 तक उन्होंने उड़ीसा के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया। वह लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1975 में जब देश में आपातकाल था, तब अन्य विपक्षी नेताओं के साथ गिरफ्तार होने वाले वह पहले व्यक्ति थे। 1977 में वह जेल से छूटे और केंद्रपारा से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए तथा 1979 तक मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह की सरकार में केंद्रीय लोहा इस्पात व खनन मंत्री रहे। 1980 में बीजू लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और 1986 में वह पुनः लोकसभा का चुनाव जीत गए। 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल की जीत हुई और वह पुनः उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 1995 तक मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उड़ीसा की सेवा की।

पुरस्कार और सम्मान

इंडोनेशिया की सरकार ने बीजू पटनायक को सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भूमिपुत्र' से नवाजा था। यह पुरस्कार उनकी वीरता और साहसिक कार्यों के चलते दिया गया था। 1996 में इंडोनेशिया की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर उन्हें सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बिनतांग जासू उतमा‘ प्रदान किया गया था।

योगदान

दुनियाभर के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए बीजू पटनायक ने 1952 में कलिंग फाउंडेशन ट्रस्ट की स्थापना की और 'कलिंग पुरस्कार' की पहल की, जिसे यूनेस्को द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए प्रदान किया जाता है। इसके अलावा उन्होंने पारादीप बंदरगाह के निर्माण में बड़ा योगदान दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बीजू पटनायक (हिंदी) itshindi.com। अभिगमन तिथि: 5 फरवरी, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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