भजन बिन जीवन कैसा यार ।
धन-द्रव्य तेरे काम न आवे, राज पाट दरबार ।
काम न आवे झूंठी माया, झूंठो है संसार ।।
ध्रुव भज पाई अचला पदवी, गज भज करी पुकार ।
भक्त अनेक ही तार दिये, वही निर्धारन आधार ।।
उन बिन संगी को जीवन को, मन से नेक विचार ।
वही तरण तारण रघुराई, भ्रम उर के सब टार ।।
शिवदीन भजो उन ही को निशदिन, जो हैं सर्वाधार ।
सकल पुराणन में यश गायो, वेद रटत हैं चार ।।