`कबीर'दुबिधा दूरि करि,एक अंग ह्वै लागि । यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि ॥1॥ दुखिया मूवा दु:ख कौं, सुखिया सुख कौं झुरि । सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दु:ख मेल्हे दूरि ॥2॥ काबा फिर कासी भया, राम भया रे रहीम । मोट चून मैदा भया ,बैठि कबीरा जीम ॥3॥