सुमिरण का अंग -कबीर

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सुमिरण का अंग -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

भगति भजन हरि नांव है, दूजा दुक्ख अपार ।
मनसा बाचा क्रमनां, `कबीर' सुमिरण सार ॥1॥

`कबीर कहता जात हूँ, सुणता है सब कोई ।
राम करें भल होइगा, नहिंतर भला न होई ॥2॥

तू तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँ ।
वारी फेरी बलि गई ,जित देखौं तित तूं ॥3॥

`कबीर' सूता क्या करै, काहे न देखै जागि ।
जाको संग तैं बीछुड्या, ताही के संग लागि ॥4॥

जिहि घटि प्रीति न प्रेम-रस, फुनि रसना नहीं राम ।
ते नर इस संसार में, उपजि खये बेकाम ॥5॥

`कबीर' प्रेम न चषिया, चषि न लीया साव ।
सूने घर का पाहुंणां , ज्यूं आया त्यूं जाव ॥6॥

राम पियारा छांड़ि करि, करै आन का जाप ।
बेस्यां केरा पूत ज्यूँ, कहै कौन सू बाप ॥7॥

लूटि सकै तौ लूटियौ, राम-नाम है लूटि ।
पीछैं हो पछिताहुगे, यहु तन जैहै छूटि ॥8॥

लंबा मारग, दूरि घर, विकट पंथ, बहु मार ।
कहौ संतो, क्यूं पाइये, दुर्लभ हरि-दीदार ॥ 9॥

`कबीर' राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ ।
फूटा नग ज्यूँ जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ ॥10॥

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