मन के भरम न टूटे, देखो ! मन के भरम न टूटे।
काम क्रोध अरु लोभ मोह मद, मत्सरता नहीं छूटे।
छिन-छिन पल-पल घडी-घडी, आयु बीते स्वांस अनूठे।।
तू मन मूरख कबहूँ न सोचे, छोड़े न झगड़े झूंठे।
ज्योति हृदय में प्रगटत ही तू, जान बूझ कर रूठे।।
सत्य ज्योति से ज्योति जगाले, रवि किरणें ज्यो फूटे।
राम नाम सुमरण धन सांचो, फिर लोहा क्यों कूटे।।
सतगुरु पारस पाकर अनहद, आनंद क्यों नहीं लूटे।
शिवदीन कहे मन मस्तो हाथी, बँधे न कबहू खूंटे।।