यशोधरा जीत गई -रांगेय राघव
यशोधरा जीत गई -रांगेय राघव
| |
लेखक | रांगेय राघव |
प्रकाशक | राजपाल एंड संस |
ISBN | 81-7028-384-1 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 128 |
भाषा | हिन्दी |
प्रकार | उपन्यास |
यशोधरा जीत गई प्रसिद्ध साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार रांगेय राघव द्वारा लिखा गया उपन्यास है। 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा इस उपन्यास को प्रकाशित किया गया था। हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने अपने उपन्यास 'यशोधरा जीत गई' में प्रख्यात महापुरुष और जननायक गौतम बुद्ध का चरित्र ऐतिहासिक दृष्टि से प्रस्तुत किया है।
उपन्यास के अंश
साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कालाकारों औऱ महापुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक माला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने गौतम बुद्ध का चरित्र ऐतिहासिक दृष्टि से प्रस्तुत करने का सफल प्रयत्न किया है। 'यशोधरा जीत गई' उसी कड़ी की एक प्रमुख रचना है। 'यशोधरा जीत गई' में राष्ट्र की तात्कालिक स्थितियों में बुद्ध के समय में धर्म या राजनीति का विघटन शुरू हो गया था। देश में धर्म, राजनीति और वैचारिक अराजकता छा रही थी। ऐसे समय में बुद्ध ने अपने तप-बल से करोड़ों भ्रमित और धार्मिक रूप से निस्सहाय मनुष्यों को मानसिक आश्रय और शान्ति प्रदान की। इस उपन्यास में बुद्ध के अजेय और सुद्दढ़ व्यक्ति के निर्माण में संकलन करूणा-कोमल यशोधरा का भी मार्मिक रूप प्रस्तुत किया गया है, जिसके समक्ष एक बार बुद्ध का तपोबल भी नत हो गया था।[1]
भूमिका
महात्मा बुद्ध का जीवन बहुत विशाल है। 'यशोधरा जीत गई' में बुद्ध का पूरा जीवन लिखा जाए तो सम्पूर्ण जीवन लिखने के लिए ऐसे पाँच या छह ग्रन्थ और लिखे जा सकते हैं। तब ही पूरा रस भी आ सकता है। बुद्ध का जन्म वि.पू. 505 समझा जाता है। बुद्ध उन्नीस वर्ष के थे, तब उन्होंने घर छोड़ गए। उन्होंने छह वर्ष तक तपस्या की और फिर वे बुद्ध हुए। इसके बाद पैंतालीस वर्ष उपदेश दिए। इस प्रकार यह लम्बा जीवन विक्रम पूर्व 426 में पूरा हुआ और उसके बाद बौद्ध धर्म अपना रूप बदलता हुआ लगभग 1500 वर्ष भारत में रहा। बुद्ध के समय में समाज विषम था। दास-प्रथा अभी भी शेष थी और क्षत्रिय कुलगणों में ही यह अधिक थी। सामंत-प्रथा एकतंत्र शासन में उठ रही थी। बुद्ध ह्यसकालीन गण-व्यवस्था के विचारक थे, जिसने व्यापक मानवीय आधारों का सहारा लेना चाहा था, परन्तु व्यवहार में वह उस वस्तु को सफल नहीं कर सके।
बुद्ध भारतीय इतिहास में यद्यपि अपने चले आते विचारकों की परम्परा में थे, परन्तु फिर भी उनका गहरा प्रभाव पड़ा। यह कहा जा सकता है कि वही क्षत्रिय विचारक थे, जिसके चिन्तन में बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उनके चिन्तन में बहुत कुछ ऐसा था, जिसने आने वाले सामन्ती चिन्तन को भी निर्मित किया। लेखक के अनुसार प्रस्तुत औपचारिक विवरण में नए पात्र नहीं लिए। ऐसे दास-दासियों के नाम मिल जाएँ तो बात नहीं, परन्तु बड़े पात्र सब ऐतिहासिक ही हैं।
'त्रिपिटक' बुद्ध के बाद लिखे गए और उन्होंने प्रत्येक धर्मानुयायी परिवार की भाँति अपने आचार्य को चमत्कारों से भरने वाली चेष्टा की प्रणाली पर भारतीय इतिहास में अपना महत्त्व प्राप्त करने से रोका है। बुद्ध की निर्बलताएँ उनके युग की निर्बलताएँ थीं, उनकी विजय मानव को विजय और कल्याण देने वाली शक्तियाँ थीं। मैंने इस पुस्तक में युद्ध के महान् जीवन का निरपेक्ष दृष्टि से अध्ययन करने का प्रयत्न किया है और ऐसे पात्रों का वर्णन करके निश्चय ही इतिहास और भारतीय संस्कृति के प्रति श्रद्धावनत हुआ हूँ।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 यशोधरा जीत गई (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।
संबंधित लेख