राघवानन्द को रामानन्द का गुरु माना गया है। स्वामी राघवानन्द हिन्दी भाषा में भक्तिपरक काव्य रचना किया करते थे। रामानन्द को रामभक्ति गुरु परंपरा से ही मिली थी। हिन्दी में लेखन की प्रेरणा भी उन्हें अपने गुरु राघवानन्द की कृपा से प्राप्त हुई थी।
- 'भक्तमाल' में नाभादासजी ने गुरु राघवानन्द को ही रामानन्द का गुरु माना है।
- राघवानन्द की एक हिन्दी रचना 'सिद्धान्त पंचमात्रा' प्राप्त हुई है, जो 'काशी विद्यापीठ' से प्रकाशित और स्व. डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल द्वारा सम्पादित 'योग प्रवाह' नामक पुस्तक में संग्रहीत है।
- 'सिद्धान्त पंचमात्रा' से ही स्पष्ट हो जाता है कि राघवानन्द जी योग-मार्ग की साधना से परिचित थे और अंत:साधना और अनुभवसिद्ध ज्ञान की महिमा के विश्वासी थे।[1]
- किंवदन्ती है कि रामानन्द के गुरु पहले कोई दण्डी संन्यासी थे, बाद में राघवानन्द स्वामी हुए। 'भविष्यपुराण', 'अगस्त्यसंहिता' तथा 'भक्तमाल' के अनुसार राघवानन्द ही रामानन्द के गुरु थे।
- एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार यह भी माना जाता है कि छुआ-छूत मतभेद के कारण गुरु राघवानन्द ने ही रामानन्द को नया सम्प्रदाय चलाने की अनुमति दी थी।
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