राजेन्द्र अवस्थी
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पूरा नाम | राजेन्द्र अवस्थी |
जन्म | 25 जनवरी, 1930 |
जन्म भूमि | जबलपुर |
मृत्यु | 30 दिसम्बर, 2009 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
अभिभावक | पिता- धनेश्वर प्रसाद, माता- बेटी बाई |
पति/पत्नी | शकुंतला अवस्थी |
संतान | तीन पुत्र तथा दो पुत्रियाँ |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | साहित्यकार और पत्रकार |
मुख्य रचनाएँ | 'सूरज किरण की छाँव', 'जंगल के फूल', 'जाने कितनी आँखेंं', 'मकड़ी के जाले', 'दो जोड़ी आँखेंं', 'दोस्तों की दुनिया' आदि। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अवस्थी जी को अक्सर सभाओं और गोष्ठियों में भी आमंत्रित किया जाता था। वहाँ आने वाला प्रत्येक श्रोता बड़े ध्यान से उनकी बात सुनता था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
राजेन्द्र अवस्थी (अंग्रेज़ी: Rajendra Awasthi, जन्म- 25 जनवरी, 1930, जबलपुर; मृत्यु- 30 दिसम्बर, 2009, दिल्ली) भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार थे। वे 'कादम्बिनी पत्रिका' के सम्पादक थे। उन्होंने जहाँ एक पत्रकार के रूप में कई मापदण्ड स्थापित किये, वहीं अपने साहित्य सृजन में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की थी। राजेन्द्र अवस्थी 'नवभारत', 'सारिका', 'नंदन' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' के सम्पादक भी रहे थे। उन्होंने कई चर्चित उपन्यासों, कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह 'ऑथर गिल्ड ऑफ़ इंडिया' के अध्यक्ष भी रहे थे। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें वर्ष 1997-1998 में साहित्यिक कृति से सम्मानित किया था। राजेन्द्र अवस्थी ने 'कादम्बिनी' के 'कालचिंतन' कॉलम के माध्यम से अपना एक ख़ास पाठक वर्ग तैयार किया था।
जन्म तथा शिक्षा
राजेन्द्र अवस्थी का जन्म 25 जनवरी, 1930 ई. को जबलपुर के उपनगरीय क्षेत्र गढ़ा के ज्योतिनगर मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता का नाम धनेश्वर प्रसाद और माता बेटी बाई थीं। अवस्थी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मंडला में और फिर उच्च शिक्षा जबलपुर में प्राप्त की थी। शिक्षा के दौरान ही उनका साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँचाइयों को उन्होंने स्पर्श किया।
व्यावसायिक जीवन
राजेन्द्र अवस्थी ने वर्ष 1950 से 1957 तक कलेक्ट्रेट में लिपिक के पद पर कार्य किया, किंतु वर्ष 1957 के आखिरी महीनों में वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत की थी। वे 'नवभारत' में सहायक संपादक भी रहे थे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। उन्होंने कई समाचार पत्रों सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन भी किया। राजेन्द्र अवस्थी सन 1960 तक जबलपुर में रहे और इसके बाद दिल्ली चले गए।
विवाह
दिल्ली में रहते हुए उन्होंने जमीन से जुड़ी सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने वाला साहित्य रचा एवं पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। इस दौरान अवस्थी जी का विवाह मंडला में शकुंतला अवस्थी से हुआ। उनके परिवार में तीन बेटे और दो बेटियाँ हैं।
लोकप्रियता
अवस्थी जी ने 'कादम्बिनी' के 'कालचिंतन' कॉलम के माध्यम से असीम लोकप्रियता प्राप्त की थी। यह 'कालचिंतन' की ख्याति ही थी कि कादम्बिनी ने किसी समय में बिक्री के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। यह भी राजेन्द्र अवस्थी की लेखनी का ही करिश्मा था कि मृतप्राय पत्रिकाओं के दौर में भी उनकी 'कादम्बिनी' साँस लेती रही। उनके कुशल संपादन और दूरदर्शिता का ही उदाहरण था कि रहस्य, रोमांच, भूत-प्रेत, आत्माओं, रत्न-जवाहरात, तंत्र-मंत्र-यंत्र व कापालिक सिद्धियों जैसे विषय को भी गहरी पड़ताल, अनूठे विश्लेषण और अद्भुत तार्किकता के साथ वे पेश कर सके।
कादम्बिनी के नियमित पाठक जानते थे कि कॉलम 'कालचिंतन' ने कितनी ही बार उनके मन की दार्शनिक उलझनों को सहजता से सुलझा कर रख दिया था। उनका एक-एक शब्द नपा-तुला, जाँचा-परखा और अनुभवों की गहनता से उपजा हुआ लगता था। राजेन्द्र अवस्थी ने 'कादम्बिनी' के ऐसे अनूठे और अदभुत विशेषांक निकाले, जो आज भी सुधी पाठकों के पुस्तक-संग्रह में आसानी से मिल जाएँगे। 'रिडर्स डाइजेस्ट' की 'सर्वोत्तम' जैसी पत्रिका की बराबरी अगर कोई कर सकती थी तो वह सिर्फ 'कादम्बिनी' ही थी। 'नवनीत' इस कड़ी में दूसरे स्थान पर रखी जा सकती है। हालाँकि समय बदलने के साथ 'कादम्बिनी' की विषयवस्तु सिमटने लगी थी, लेकिन गुणवत्ता के स्तर पर वह हमेशा शीर्ष पर रही।[1] राजेन्द्र अवस्थी के संपादकीय व्यक्तित्व का प्रभाव 'कादम्बिनी' के अलावा 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान', 'सरिता' और 'नंदन' जैसी स्तरीय पत्रिकाओं में भी बखूबी नजर आया।
गम्भीर वक्ता
एक गम्भीर विचारक और वक्ता के रूप में भी अवस्थी जी को विशेष सम्मान प्राप्त थी। समाज, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति आदि विषयों पर सम्भाषण हेतु गम्भीर विषयों पर सारगर्भित विचारों के लिये राजेन्द्र अवस्थी को अक्सर सभाओं और गोष्ठियों में भी आमंत्रित किया जाता था। वहाँ आने वाला प्रत्येक श्रोता बड़े ध्यान से उनकी बात सुनता था।[2]
रचनाएँ
राजेन्द्र अवस्थी जी की साठ से भी अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है, जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- उपन्यास
- सूरज किरण की छाँव
- जंगल के फूल
- जाने कितनी आँखेंं
- बीमार शहर
- अकेली आवाज
- मछली बाज़ार
- कविता संग्रह
- मकड़ी के जाले
- दो जोड़ी आँखेंं
- मेरी प्रिय कहानियाँ
- उतरते ज्वार की सीपियाँ
- एक औरत से इंटरव्यू
- दोस्तों की दुनिया
- यात्रा वृत्तांत
- जंगल से शहर तक
विश्वयात्री
राजेन्द्र अवस्थी को विश्वयात्री भी कहा जा सकता है। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं, जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे।
निधन
अवस्थी जी हृदय के मरीज थे। तबीयत अधिक बिगड़ने के कारण उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल, दिल्ली में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था, लेकिन 30 दिसम्बर, 2009 को उनका देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजेन्द्र अवस्थी, एक कुशल सम्पादक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2012।
- ↑ राजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धांजलि (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 दिसम्बर, 2012।
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