रामानन्द सागर
रामानन्द सागर
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पूरा नाम | चंद्रमौली चोपड़ा |
प्रसिद्ध नाम | रामानन्द सागर |
जन्म | 29 दिसम्बर 1917 |
जन्म भूमि | लाहौर, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 12 दिसम्बर 2005 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | धारावाहिक- रामायण, कृष्णा, विक्रम बेताल, अलिफ़ लैला, जय गंगा मैया आदि। |
मुख्य फ़िल्में | इंसानियत, कोहिनूर, पैगाम, आँखें, ललकार, चरस, आरज़ू, गीत, बग़ावत आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री, फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (आँखें), फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ लेखक (पैग़ाम) |
विशेष योगदान | उनके द्वारा निर्मित और निर्देशित धारावाहिक "रामायण" ने देश में अद्भुत सांस्कृतिक जागरण पैदा किया। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रामानन्द सागर ने 22 छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे। उन्होंने इन्हें अपने तखल्लुस चोपड़ा, बेदी और कश्मीरी के नाम से लिखा, लेकिन बाद में वह सागर तखल्लुस के साथ हमेशा के लिए रामानंद सागर बन गए। |
रामानन्द सागर (अंग्रेज़ी: Ramanand Sagar, जन्म: 29 दिसम्बर, 1917; मृत्यु: 12 दिसम्बर, 2005) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे। रामानन्द सागर सबसे लोकप्रिय धारावाहिक 'रामायण' बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके कैरियर की शुरुआत "राइडर्स ऑफ़ द रैलरोड" (1936) नामक फ़िल्म के साथ हुई थी।
जीवन परिचय
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामानन्द सागर का जन्म अविभाजित भारत के लाहौर ज़िले के "असलगुरु" ग्राम नामक स्थान पर 29 दिसम्बर 1927 में एक धनी परिवार में हुआ था। उन्हें अपने माता-पिता का प्यार नहीं मिला, क्योंकी उन्हें उनकी नानी ने गोद ले लिया था। पहले उनका नाम चंद्रमौली चोपड़ा था लेकिन नानी ने उनका नाम बदलकर रामानंद रख दिया।
1947 में देश विभाजन के बाद रामानन्द सागर सबकुछ छोड़कर सपरिवार भारत आ गए। उन्होंने विभाजन की जिस क्रूरतम, भयावह घटनाओं का दिग्दर्शन किया, उसे कालांतर में "और इंसान मर गया" नामक संस्मरणों के रूप में लिपिबद्ध किया। यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वे जब अपनी मातृभूमि से बिछुड़कर युवावस्था में शरणार्थी बन भारत आए, उनकी जेब में मात्र 5 आने थे, किन्तु साथ में था अपने धर्म और संस्कृति के प्रति असीम अनुराग-भक्तिभाव। शायद इसी का परिणाम था कि आगे चलकर उन्होंने रामायण, श्रीकृष्ण, जय गंगा मैया और जय महालक्ष्मी जैसे धार्मिक धारावाहिकों का निर्माण किया। दूरदर्शन के द्वारा प्रसारित इन धारावाहिकों ने देश के कोने-कोने में भक्ति भाव का अद्भुत वातावरण निर्मित किया।
मेधावी छात्र
16 साल की अवस्था में उनकी गद्य कविता श्रीनगर स्थित प्रताप कालेज की मैगजीन में प्रकाशित होने के लिए चुनी गई। युवा रामानंद ने दहेज लेने का विरोध किया जिसके कारण उन्हें घर से बाहर कर दिया गया। इसके साथ ही उनका जीवन संघर्ष आरंभ हो गया। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के लिए ट्रक क्लीनर और चपरासी की नौकरी की। वे दिन में काम करते और रात को पढ़ाई। मेधावी छात्र होने के कारण उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय पाकिस्तान से स्वर्ण पदक मिला और फ़ारसी भाषा में निपुणता के लिए उन्हें मुंशी फ़ज़ल के ख़िताब से नवाज़ा गया। इसके बाद सागर एक पत्रकार बन गए और जल्द ही वह एक अखबार में समाचार संपादक के पद तक पहुंच गए। इसके साथ ही उनका लेखन कर्म भी चलता रहा।
सागर आर्ट कॉरपोरेशन
रामानंद सागर का झुकाव फ़िल्मों की ओर 1940 के दशक से ही था। लेकिन उन्होंने बाक़ायदा फ़िल्म जगत में उस समय एंट्री ली, जब उन्होंने राज कपूर की सुपरहिट फ़िल्म 'बरसात' के लिए स्क्रीनप्ले और कहानी लिखी। भारत के अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता पाने के बाद वर्ष 1950 में रामानन्द सागर ने एक प्रोडक्शन कंपनी "सागर आर्ट कॉरपोरेशन" शुरू की थी और 'मेहमान' नामक फ़िल्म के द्वारा इस कंपनी की शुरुआत की। बाद में उन्होंने इंसानियत, कोहिनूर, पैगाम, आँखें, ललकार, चरस, आरज़ू, गीत और बग़ावत जैसी हिट फ़िल्में बनाईं। वर्ष 1985 में वह छोटे परदे की दुनिया में उतर गए। फिर 80 के दशक में रामायण टीवी सीरियल के साथ रामानंद सागर का नाम घर-घर में पहुँच गया।
धारावाहिक रामायण
रामानन्द सागर ने उस समय इतिहास रचा जब उन्होंने टेलीविज़न धारावाहिक "रामायण" बनाया और जो भारत में सबसे लंबे समय तक चला और बेहद प्रसिद्ध हुआ। जो भगवान राम के जीवन पर आधारित और रावण और उसकी लंका पर विजय प्राप्ति पर बना था।
निर्देशन और निर्माण
रामानन्द सागर ने कुछ फ़िल्मों तथा कई टेलीविज़न कार्यक्रमों व धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया। इनके द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध टीवी धारावाहिकों में रामायण, कृष्णा, विक्रम बेताल, दादा-दादी की कहानियाँ, अलिफ़ लैला और जय गंगा मैया आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। धारावाहिकों के अलावा उन्होंने आँखेंं, ललकार, गीत आरजू आदि अनेक सफल फ़िल्मों का निर्माण भी किया। 50 से अधिक फ़िल्मों के संवाद भी उन्होंने लिखे। कैरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने पत्रकारिता भी की। पत्रकार, साहित्यकार, फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, संवाद लेखक आदि सभी का उनके व्यक्तित्व में अनूठा संगम था। और तो और, रामायण धारावाहिक की प्रत्येक कड़ी में उनके द्वारा रामचरित मानस की घटनाओं, पात्रों की भक्तिपूर्ण, सहज-सरस और मधुर व्याख्या ने उन्हें एक लोकप्रिय प्रवचनकर्ता के रूप में भी स्थापित किया।
लेखन
उन्होंने 22 छोटी कहानियां, तीन वृहत लघु कहानी, दो क्रमिक कहानियां और दो नाटक लिखे। उन्होंने इन्हें अपने तखल्लुस चोपड़ा, बेदी और कश्मीरी के नाम से लिखा लेकिन बाद में वह सागर तखल्लुस के साथ हमेशा के लिए रामानंद सागर बन गए। बाद में उन्होंने अनेक फ़िल्मों और टेलीविज़न धारावाहिकों के लिए भी पटकथाएँ लिखी।
सम्मान और पुरस्कार
सन् 2001 में रामानन्द सागर को उनकी इन्हीं सेवाओं के कारण पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें फ़िल्म 'आँखें' के निर्देशन के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार और 'पैग़ाम' के लिए लेखक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।
निधन
देश में शायद ही कोई ऐसा फ़िल्म निर्माता-निर्देशक हो जिसे न केवल अपने फ़िल्मी कैरियर में भारी सफलता मिली वरन् जिसे करोड़ों दर्शकों, समाज को दिशा देने वाले संतों-महात्माओं का भी अत्यंत स्नेह और आशीर्वाद मिला। डॉ. रामानन्द सागर ऐसे ही महनीय व्यक्तित्व के धनी थे। सारा जीवन भारतीय सिने जगत की सेवा करने वाले रामानन्द सागर शायद भारतीय फ़िल्मोद्योग के ऐसे पहले टी.वी. धारावाहिक निर्माता व निर्देशक थे, जिनके निधन की खबर सुनते ही देश के कला प्रेमियों, करोड़ों दर्शकों सहित हजारों सन्त-महात्माओं में शोक की लहर दौड़ गई। गत 12 दिसम्बर 2005 की देर रात मुंबई, महाराष्ट्र के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। 87 वर्षीय रामानंद सागर ने तीन महीने बीमार रहने के बाद अंतिम साँस ली। जूहु के विले पार्ले स्थित शवदाह गृह में उनके बड़े पुत्र सुभाष सागर ने उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी। इस अवसर पर उनके चाहने वाले सैकड़ों लोग, कलाकार, निर्माता- निर्देशक उपस्थित थे।
उनकी जनप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हरिद्वार में आयोजित धर्मसंसद में शोकाकुल संतों, देश के चोटी के धर्माचार्यों ने उनकी स्मृति में मौन रखा। विश्व हिन्दू परिषद ने रामजन्म भूमि आन्दोलन में रामानन्द सागर के योगदान को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि इतिहास में उनका नाम सदैव अमर रहेगा। उनके द्वारा निर्मित और निर्देशित धारावाहिक "रामायण" ने देश में अद्भुत सांस्कृतिक जागरण पैदा किया।
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