चेतन आनंद (निर्देशक)
चेतन आनंद | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- चेतन आनंद |
चेतन आनंद (निर्देशक)
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पूरा नाम | चेतन आनंद |
जन्म | 3 जनवरी 1915 |
जन्म भूमि | गुरदासपुर, पंजाब |
मृत्यु | 6 जुलाई 1997 (उम्र- 82) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक |
मुख्य फ़िल्में | 'नीचा नगर', 'हक़ीक़त', 'हीर रांझा', 'कुदरत', 'बाज़ी', 'हिंदुस्तान की कसम' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ दूसरी फ़ीचर फ़िल्म- हक़ीक़त), फ़िल्मफेयर पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ कहानी- कुदरत) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | चेतन आनंद, प्रसिद्ध अभिनेता देवानंद के बड़े भाई हैं। |
चेतन आनंद (अंग्रेज़ी: Chetan Anand, जन्म: 3 जनवरी, 1915; मृत्यु: 6 जुलाई, 1997) प्रसिद्ध हिंदी फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे। बॉलीवुड फ़िल्मों को इस स्तर पर पहली बार पहचान दिलाने का श्रेय चेतन आनंद को जाता है। चेतन आनंद सदाबहार अभिनेता देव आनंद के बड़े भाई थे। देव आनंद चेतन आनंद की बदौलत ही फ़िल्म इंडस्ट्री में आ सके।
जीवन परिचय
3 जनवरी, 1915 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे चेतन आनंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। चेतन ने लाहौर से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद राजनीति में कदम रखा और वह वर्ष 1930 के दशक में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने दून स्कूल में शिक्षक के रूप में भी कार्य किया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। प्रिया राजवंश चेतन आनंद की सहयात्री थीं। दोनों ज़िंदगी भर साथ-साथ रहे। शादी नहीं की और उसकी ज़रूरत भी नहीं समझी। बाहरी दुनिया के लोग उन्हें पति-पत्नी मानते रहे।[1]
प्रमुख फ़िल्में
- नीचा नगर (1946) -निर्देशक
- आँधियाँ (1952) - निर्देशक
- टॅक्सी ड्राइवर (1954)- निर्देशक, पटकथा लेखक
- फ़ंटूश (1956) - निर्देशक
- काला बाज़ार (1960) - अभिनेता
- किनारे किनारे (1963) - निर्देशक, पटकथा लेखक
- हक़ीक़त (1964) - निर्देशक, पटकथा लेखक
- आखिरी खत (1966) - निर्देशक, पटकथा लेखक
- हीर रांझा (1970) - निर्देशक, पटकथा लेखक
- हंसते ज़ख्म (1973) - निर्देशक, पटकथा लेखक
- हिंदुस्तान की कसम (1973) - निर्देशक
- जानेमन (1976 ) - निर्देशक
- साहब बहादुर (1977 )- निर्देशक, निर्माता
- कुदरत (1981) - निर्देशक, पटकथा लेखक
- हाथों की लकीरें (1986) - निर्देशक, निर्माता
फ़िल्मी कैरियर
इतिहास के शिक्षक रहे चेतन ने वर्ष 1940 के दशक के शुरू में सम्राट अशोक पर एक फ़िल्म की पटकथा लिखी थी। उनका फ़िल्मी सफर वर्ष 1944 में आई फणी मजूमदार की फ़िल्म 'राजकुमार' से शुरू हुआ। उस फ़िल्म में वह मुख्य भूमिका में थे। चेतन ने अभिनय छोड़कर निर्देशन के क्षेत्र में किस्मत आजमाई और जल्द ही उन्होंने इतिहास रच दिया।
फ़िल्म 'नीचा नगर'
वर्ष 1946 में बतौर निर्देशक उनकी पहली फ़िल्म 'नीचा नगर' ने कान फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार हासिल किया। अपने जमाने के सुपरस्टार देवानंद और निर्माता-निर्देशक विजय आनंद के बड़े भाई चेतन की बतौर निर्देशक पहली फ़िल्म 'नीचा नगर' ने वर्ष 1946 में पहले कान फ़िल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का अवार्ड जीता था। वह फ़िल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली पहली फ़िल्म थी। ख़्वाजा अहमद अब्बास द्वारा लिखित और उमा आनंद, कामिनी कौशल तथा रफ़ीक अहमद के अभिनय से सजी यह फ़िल्म समाज के अमीर और ग़रीब वर्ग के बीच की खाई में झांकती और मानवीय संवेदनाओं को टटोलती है। फ़िल्म समीक्षक ज्योति वेंकटेश ने बताया कि बेहतरीन निर्देशन कौशल की वजह से 'नीचा नगर' का शुमार भारतीय सिनेमा की बेहतरीन फ़िल्मों में किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा में सामाजिक यथार्थवाद के चित्रण की परम्परा शुरू की और समानांतर सिनेमा की फ़िल्मों के अन्य निर्देशकों के लिए सृजन का एक नया रास्ता खोला।[1]
नवकेतन प्रोडक्शंस की स्थापना
1950 के दशक के शुरू में उन्होंने अपने छोटे भाई और उस जमाने के मशहूर अभिनेता देवानंद के साथ नवकेतन प्रोडक्शंस के नाम से एक फ़िल्म कम्पनी की स्थापना की। इस बैनर ने बॉलीवुड को अफसर, टैक्सी ड्राइवर और आंधियां जैसी फ़िल्में दीं। बाद में, चेतन ने हिमालय फ़िल्म्स नाम से अपनी अलग कम्पनी शुरू की। इस बैनर ने हिन्दी सिनेमा को हक़ीक़त, हीर रांझा, हंसते जख्म और हिन्दुस्तान की कसम जैसी अच्छी फ़िल्में दीं। इसके अलावा कालाबाज़ार, किनारे-किनारे, आखिरी खत, कुदरत हाथों की लकीरें फ़िल्मों में चेतन ने विभिन्न भूमिकाओं को अंजाम दिया। उन्होंने वर्ष 1988 में 'परमवीर चक्र' नाम से एक धारावाहिक भी बनाया था।[1]
रोचक तथ्य
- चेतन आनंद की फ़िल्म 'हीर रांझा' के संवाद कैफ़ी आज़मी ने लिखे थे। शबाना आज़मी कहती हैं, "मुझे बड़ी हैरत होती थी कि अब्बा इतना कम बोलते हैं आखिर संवाद लिखते समय उनके और चेतन साहब के बीच बातें क्या होती हैं। चेतन आनंद रोज़ाना सुबह 10 बजे हमारे घर आ जाते थे। वो कमरे के एक कोने में बैठ जाते थे और अब्बा दूसरी तरफ बैठे रहते थे। दोनों के बीच कोई बात नहीं होती थी। और फिर चेतन साहब घर लौट जाते।" लेकिन हीर रांझा के शायराना तरीके से लिखे संवाद बेहद लोकप्रिय साबित हुए।
- "बहुत कम लोगों को शायद यह पता होगा कि चेतन आनंद की पहली फ़िल्म “नीचा नगर” को 'पाम दी ओरे' (सर्वोत्तम फ़िल्म) पुरस्कार सबसे पहले कान फ़िल्म फेस्टिवल में 1946 में मिला था।
- चेतन आनंद पहले निर्देशक थे, जिन्होंने राजेश खन्ना को अपनी फ़िल्म ‘आखरी खत’ के लिए चुना था। उसके बाद राजेश खन्ना कामयाबी के शिखर तक पहुंचे।
- अपनी पत्नी मोना (कल्पना कार्तिक) से देव आनंद की मुलाकात 'बाजी' (1951) के सेट पर हुई थी। चेतन आनंद उन्हें शिमला के सेंट पीटर्स कॉलेज से हिरोइन बनाने के लिए लाए थे। वास्तव में वे चेतन की पहली पत्नी उमा बैनर्जी की छोटी बहन थीं। उमा से चेतन ने लाहौर में कॉलेज की पढ़ाई के समय ही शादी कर ली थी।
- चेतन आनंद से राज कुमार की गहरी दोस्ती थी और इसी वजह से चेतन के साथ उन्होंने कई फ़िल्मों 'हिंदुस्तान की कसम', 'कुदरत', 'हीर रांझा' आदि में काम भी किया। राजकुमार को स्टार बनाने में चेतन आनंद का महत्त्वपूर्ण योगदान था।
सम्मान और पुरस्कार
- 1946: पाम दी’ओरे (सर्वोत्तम फ़िल्म), कान फ़िल्म फेस्टिवल (नीचा नगर)
- 1965- राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ दूसरी फ़ीचर फ़िल्म (हक़ीक़त)
- 1982- फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ कहानी- (कुदरत)
निधन
हिन्दी फ़िल्म जगत् को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की शुरुआत करने वाले इस कलाकार ने 6 जुलाई 1997 को 82 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से विदा ले ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 चेतन आनंद: बॉलीवुड को दी अंतराष्ट्रीय पहचान (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 2 दिसम्बर, 2012।