लैन्सडाउन 1888 ई. से 1894 ई. तक भारत का वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल रहा। साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का लैन्सडाउन, लॉर्ड डफ़रिन के बाद भारत का वायसराय बना था। उसके समय में 'सर ड्यूरण्ड' को अफ़ग़ानिस्तान भेजा गया, जिनके प्रयास से भारत ओर अफ़ग़ानिस्तान के मध्य सीमा का निर्धारण हुआ, जिसे 'डूरण्ड रेखा' के नाम से जाना जाता है। मणिपुर में हुए विद्रोह को शान्त करने का श्रेय लैन्सडाउन को ही दिया जाता है। लैन्सडाउन के समय 1891 ई. में दूसरा फैक्ट्री एक्ट लाया गया था। इसमें स्त्रियों को 11 घंटे प्रतिदिन से अधिक काम करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।
आर्थिक मन्दी
लैन्सडाउन के समय स्वतंत्र मणिपुर राज्य में थोड़े समय के लिए बगावत हुई, जिसके लिए राज्य के प्रधान सेनापति टिकेन्द्रजीत को ज़िम्मेदार ठहराया गया। बगावत को कुचल दिया गया और टिकेन्द्रजीत को फाँसी दे दी गई। कुछ समय से चाँदी का भाव गिरता जा रहा था, और लॉर्ड लैन्सडाउन के प्रशासन काल में इतनी मन्दी आ गई कि, 1893 ई. में टकसालों में चाँदी और सोने के सिक्कों का निर्बाध रीति से ढालना बन्द कर दिया गया और सोना और चाँदी को रुपये से बदलने के लिए भाव प्रति गिन्नी दस रुपये के बजाए पन्द्रह रुपया कर दिया गया। इसके फलस्वरूप रुपये की विनिमय दर काफ़ी गिर गई, जिससे भारत को बहुत हानि हुई।
अग्रसर नीति
लॉर्ड लैन्सडाउन ने भारत के उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी सीमान्तों पर 'अग्रसर नीति' कुछ सीमा तक जारी रखी। बर्मा (वर्तमान म्यांमार) पर की गई ब्रिटिश विजय को चीन ने मान्यता प्रदान कर दी। सिक्किम का स्वतंत्र राज्य 1888 ई. में ब्रिटिश संरक्षण में ले लिया गया और तिब्बत के साथ उसकी सीमा का निर्धारण कर दिया गया। चटगाँव के उत्तर-पूर्व के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लुशाइयों, उससे और पूर्व के चिन लोगों तथा इरावती नदी के उस पार स्थित शान राज्यों को ब्रिटिश प्रभाव क्षेत्र में सम्मिलित कर लिया गया। उत्तर-पश्चिम में क्वेटा से बोलन दर्रे तक सामरिक महत्त्व की रेलवे लाइन का निर्माण किया गया, जिससे कंधार तक बढ़ना सुगम हो गया। अफ़ग़ान सीमा पर गिलगिट के निकट हुंजा और नगर के दो छोटे-छोटे राज्यों को 1892 ई. में ले लिया गया। उसी वर्ष चित्राल की घाटी के मार्ग पर स्थित कलात राज्य को ब्रिटिश संरक्षण में ले लिया गया।
सीमा निर्धारण
उत्तर-पश्चिम में ब्रिटिश शासन के इस विस्तार से अफ़ग़ानिस्तान का अमीर अब्दुर्रहमान चिन्तित हो उठा और उसे अंग्रेज़ों की नीयत में सन्देह होने लगा। अन्त में 1892 ई. में लॉर्ड लैन्सडाउन के कहने से अमीर अब्दुर्रहमान सर माटिंसर डूरैण्ड को अफ़ग़ानिस्तान में ब्रिटिश राजदूत के रूप में रखने के लिए राज़ी हो गया। डूरैण्ड बिना किसी रक्षक दल को साथ लिए अफ़ग़ानिस्तान गया और अमीर अब्दुर्रहमान से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने में सफल हुआ। उसने कुछ विवादास्पद क्षेत्र के सम्बन्ध में अमीर से समझौता किया और अन्त में अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच जिन क्षेत्रों में सीमाकंन करना सम्भव था, वहाँ सीमाकंन करने में सफल हो गया। यह सीमा रेखा उसके नाम पर डूरैण्ड सीमा रेखा कहलाती है।
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