लॉर्ड हेस्टिंग्स

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लॉर्ड हेस्टिंग्स

लॉर्ड हेस्टिंग्स 1813 से 1823 ई. तक भारत का गवर्नर-जनरल रहा। उसने गर्वनर-जनरल के रूप में भारत में राजनीतिक श्रेष्ठता को और बढ़ाने का प्रयत्न किया। उसके समय में सर्वप्रथम 'आंग्ल-नेपाल युद्ध' लड़ा गया। अंग्रेज़ जनरल 'गिलिसपाई' ने इस युद्ध में वीरगति प्राप्त की थी। इस युद्ध के परिणामस्वरूप अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया गया, और गोरखाओं की पूर्ण रूप से पराजय हुई। लॉर्ड हेस्टिंग्स के काल में ही तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध लड़ा गया था, जिसमें मराठों की पराजय हुई थी। हेस्टिंग्स को पिण्डारियों का दमन करने का श्रेय भी दिया जाता है।

आंग्ल-नेपाल युद्ध

इस युद्ध में अंग्रेज़ों की ओर से 'जनरल आक्टरलोनी', 'कर्नल निकलस' व 'गार्डनर', 'जनरल गिलिसपाई' आदि नायक थे। जनरल गिलिसपाई का कालंग के दुर्ग पर आक्रमण विफल रहा, तथा वह स्वयं वीरगति को प्राप्त हुआ। उसके उत्तराधिकारी 'मेजर मार्टिडल' भी जैतक दुर्ग को जीतने में असफल रहे, किन्तु अंग्रेज़ इस विफलता से हताश नहीं हुए तथा कर्नल निकलस और गार्डनर ने कुमाऊँ की पहाड़ियों में स्थित अल्मोड़ा नगर पर विजय प्राप्त कर ली और जनरल आस्टरलोनी ने मालाओं नगर को अमर सिंह थापा से छीन लिया। इस युद्ध में गोरखाओं की पूर्ण पराजय हुई। 1816 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी एवं गोरखों के मध्य ‘सुगौली सन्धि’ हुई, जिससे यह युद्ध समाप्त हुआ। सुगौली सन्धि की शर्तों के अनुसार गढ़वाल तथा कुमाऊँ अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गए। गोरखों ने काठमाडूं में ब्रिटिश सेना रखना स्वीकार किया। शिमला, रानीखेत, नैनीताल अंग्रेज़ों के नियन्त्रण में हो गये। प्रसंगतः 'चार्ल्स नेपियर' का वह कथन उल्लेखनीय है, जिसमें उसने कहा था, "यदि मैं 12 वर्ष के लिए भारत का बादशाह बन जाऊँ, तो भारत में एक भी भारतीय नरेश नहीं रहेगा, निज़ाम का नाम भी कोई नहीं सुनेगा और नेपाल हमारा होगा।" लॉर्ड हेस्टिंग्स के काल में तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध भी लड़ा गया, जिसमें मराठे पराजित हुए।

गोरखों की भर्ती

सुगौली सन्धि की शर्तों के अनुसार गोरखाओं ने सिक्किम को ख़ाली कर दिया। इस सन्धि का सबसे बड़ा लाभ गोरखों का अंग्रेज़ी सेना में भरती होना था। 1857 ई. में भी ये राजभक्त बने रहे तथा उन्होंने अंग्रेज़ी साम्राज्य के प्रसार में योगदान दिया।

पिण्डारियों का दमन

लॉर्ड हेस्टिंग्स को पिण्डारियों के दमन का भी श्रेय प्राप्त है। अंग्रेज़ इतिहासकार पिण्डारियों को अफ़ग़ान लुटेरा मानते थे, और दौलतराव शिन्दे को इनका एक मात्र नेता मानते थे, परन्तु इसकी सत्यता प्रमाणित नहीं होती। पिण्डारियों का पहला उल्लेख मुग़लों के महाराष्ट्र पर 1689 ई. के आक्रमण के समय मिलता है। बाजीराव प्रथम के काल से ये अवैतनिक रूप से मराठों की ओर से लड़ते थे और केवल लूट में भाग लेते थे। पिण्डारी किसी भी धर्म को न मानते हुए लूटमार में संलग्न रहने वाले व्यक्ति थे। 19वीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में 'वासिल मुहम्मद', 'चीतू' तथा 'करीम ख़ाँ' इनके नेता थे। 1812 ई. में पिण्डारियों ने अंग्रेज़ों के अधिकार वाले क्षेत्र- मिर्ज़ापुर तथा 'शाहाबाद' पर आक्रमण कर दिया। हेस्टिंग्स ने उनके दमन को अपना लक्ष्य बनाकर उनके विरुद्ध कार्रवाई की। उसने 1,13,000 सेना तथा 300 तोपें एकत्रित कर लीं। उत्तरी सेना की कमान उसने स्वयं ली तथा दक्षिणी सेना की कमान 'टॉमस हिसलोप' को दे दी। उनके नेताओं में वासिल मुहम्मद ने आत्महत्या कर ली। करीम ख़ाँ को गोरखपुर में एक छोटी-सी रियासत दे दी गयी, और चीतू को जंगल में शेर मारकर खा गया। मैल्कल ने पिण्डारियों को "मराठा शिकारियों के साथ शिकारी कुत्तों" की उपमा दी। 1824 ई. तक पिंडारियों का सफाया हो चुका था।

बाजीराव द्वितीय को पेन्शन

लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय में ही मराठों के साथ अंग्रेज़ों की अन्तिम लड़ाई हुई थी, जिसमें मराठे पराजित हुए। 13 जून, 1817 ई. को पेशवा ने अपनी हार स्वीकार करके एक सन्धि पर हस्ताक्षर किया, जिसके अनुसार मराठा संघ समाप्त हो गया। 5 नवम्बर, 1817 ई. को शिन्दे से एक सन्धि की गयी, जिसके अनुसार महाराजा ने 5000 सैनिक पिण्डारियों के विरुद्ध अभियान के लिए देना स्वीकार किया। नागपुर के अप्पा साहब सीतावर्डी में तथा होल्कर महीदपुर में पराजित हुए। लॉर्ड हेस्टिंग्स ने बाजीराव द्वितीय को गद्दी से उतारकर 18 लाख रुपये वार्षिक पेन्शन देकर कानपुर के समीप बिठूर के स्थान पर भेज दिया। सतारा की गद्दी शिवाजी के वंशज प्रताप सिंह को दे दी गयी।

रैयतवाड़ी व्यवस्था

लॉर्ड हेस्टिंग्स अपने साथीयों के साथ हाथी पर सवार होकर लखनऊ में प्रवेश करते हुए

हेस्टिंग्स के भारत आने के पहले तक मुग़ल सम्राट को औपचारिक रूप से सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। सम्राट कम्पनी के लिए ‘हमारा विशेष कृपपात्र भृत्य’, ‘आदरणीय पुत्र’ जैसे शब्दों को प्रयोग में लाता था। हेस्टिग्स ने दिल्ली आने पर शर्त रखी कि, वह सम्राट से तभी मिलना चाहेगा, जब ये पुराने शिष्टचार ख़त्म किये जायँ। उसकी यह इच्छा पूरी हुई। उसके प्रतिवाद का प्रभाव यह रहा कि, लॉर्ड हेस्टिंग्स का उत्तराधिकारी लॉर्ड एम्सहर्स्ट 1827 ई. में सम्राट से बराबरी के सम्मान से मिला। हेस्टिंग्स के समय में ही 'सर टॉमस मुनरों' 1820 ई. में मद्रास का गर्वनर बना और उसने मालाबार, कन्नड़, कोयम्बटूर, मदुरै और डिंडीगल में रैयतवाड़ी व्यवस्था को लागू किया। इस व्यवस्था के अन्तर्गत कृषकों को सीधे भू-स्वामी मान लिया गया तथा बिचैलियों का अस्तित्व समाप्त हो गया।

अन्य सुधार

लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय में ही 'एलफिन्स्टन' ने बम्बई में 'महालवाड़ी' तथा रैयतवाड़ी व्यवस्था' के मिश्रण को लागू किया। बंगाल में रैयत के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए 1822 ई. में 'टैनेन्सी एक्ट' या 'काश्तकारी अधिनियम' लागू किया गया। इस एक्ट के अन्तर्गत यदि रैयत अपने हिस्से की निश्चित राशि किराये में देता रहता था, तो उसे विस्थापित नहीं किया जा सकता था। असामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त लगान में वृद्धि भी नहीं की जा सकती थी। हेस्टिंग्स ने प्रेस पर लगे प्रतिबन्ध को समाप्त कर प्रेस के मार्गदर्शन के लिए भी नियम बनाये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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