लॉर्ड वेलेज़ली
लॉर्ड वेलेज़ली (अंग्रेज़ी: Lord Wellesley, जन्म- 20 जून, 1760; मृत्यु- 26 सितंबर, 1842) सन 1798-1805 ई. तक भारत के गवर्नर-जनरल रहे। 1798 ई. में सर जॉन शोर के अस्तक्षेपवादी युग के बाद लॉर्ड वेलेज़ली भारत के गर्वनर जनरल बने, जो अपनी ‘सहायक सन्धि’ प्रणाली के कारण प्रसिद्ध हुए। इन्होंने भारत में अंग्रेज़ साम्राज्य के विस्तार को अपना लक्ष्य बनाया। हालाँकि 'सहायक सन्धि' का प्रयोग भारत में वेलेज़ली से पूर्व डूप्ले द्वारा किया गया था। लॉर्ड वेलेज़ली फ़्राँसीसियों को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करते थे। इन्हीं के समय में चतुर्थ मैसूर युद्ध लड़ा गया था, जिसमें टीपू सुल्तान की पराजय तथा मृत्यु हो गई थी।
सहायक सन्धि
लॉर्ड वेलेज़ली भारत में 'सहायक सन्धि' प्रणाली के कारण भी प्रसिद्ध रहे हैं। सहायक सन्धि निम्न शर्तों पर आधारित होती थी-
- भारतीय राजाओं को अपना विदेशी सम्बन्ध ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नियंत्रण में स्थापित करना होता था, और जो भी बात दूसरे राज्यों से करनी थी, कम्पनी के माध्यम से ही संभव हो सकती थी।
- सहायक सन्धि करने वाले बड़े राज्यों के लिए यह आवश्यक था कि, वे किसी अंग्रेज़ सैन्य अधिकारी द्वारा नियंत्रित एक सैन्य टुकड़ी को अपने राज्य में रखें, तथा बदले में ‘पूर्ण प्रभुसत्ता वाले क्षेत्र’ कम्पनी को दें। छोटे स्तर के बदले में नक़द धन दिया करते थे।
राज्य | वर्ष |
---|---|
हैदराबाद | सितम्बर, 1798 ई. |
मैसूर | 1799 ई. |
तंजौर | अक्टूबर, 1799 ई. |
अवध | नवम्बर, 1801 ई. |
पेशवा | दिसम्बर, 1803 ई. |
बरार (भोंसले) | दिसम्बर, 1803 ई. |
ग्वालियर (सिंधिया) | फ़रवरी, 1804 ई. |
नोट- सहायक संधि स्वीकार करने वाले अन्य राज्य थे- जोधपुर, जयपुर, मच्छेड़ी, बूंदी तथा भरतपुर।
- सहायक सन्धि करने वाले प्रत्येक राज्य को अपनी राजधानी में एक अंग्रेज़ रेजीडेन्ट को रखना पड़ता था, तथा कम्पनी की पूर्व आज्ञा के बिना राजा किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं ले सकता था।
- कम्पनी सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करते हुए राज्य की उसके हर प्रकार के शत्रुओं से रक्षा करेगी।
कम्पनी को लाभ
सहायक सन्धि से कम्पनी को लाभ ही लाभ था, जैसे- राज्यों को आपस में लड़ाना, उन्हें सहायक सन्धि के जाल में फँसाना, अपने सैन्य व्यय में कटौती कराना, फ़्राँसीसी शक्ति को कमज़ोर करना। सहायक सन्धि देशी राज्यों के लिये हानि ही हानि थी, जैसे- सेना में भारतीय सैनिकों की बेकारी, विदेशी सम्बन्ध कम्पनी के नियन्त्रण में हो जाना, राजा का बिल्कुल निष्क्रय हो जाना एवं सहायक सन्धि से जुड़े राज्यों का दिवालिया हो जाना आदि।
टीपू सुल्तान की पराजय
लॉर्ड वेलेज़ली के समय में फ़्राँसीसियों का भय भारत में पूरी तरह फैला हुआ था। वेलेज़ली ने फ़्राँसीसियों को हराने का एकमात्र उपाय यह निकाला कि, भारत के सभी राज्य उसके अधीनस्थ हों। नेपोलियन के सहयोग से अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकाल करने की योजना बनाने वाले टीपू सुल्तान को चतुर्थ मैसूर युद्ध 1799 ई. में पराजित कर दिया गया। इस युद्ध में 'शेर-ए-मैसूर' टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई। 1799 ई. में मेहदी अली ख़ाँ नामक एक दूत को अंग्रेज़ों ने ईरान के शाह के दरबार में भेजा। इसी प्रकार 1800 ई. में एक अन्य दूत जॉन मैल्कम बहुत से बहुमूल्य उपहार लेकर तेहरान पहुँचा। इनके फलस्वरूप शाह से एक सन्धि हुई, जिसमें शाह ने फ़्राँसीसियों को अपने देश में आने की अनुमति न देने का वचन दिया। टीपू सुल्तान का सम्पर्क नेपोलियन से हो चुका था, और वह उसके सहयोग से अंग्रेज़ों को भारत से भगाना चाह रहा था।
अंग्रेज़ी राज्य की सेवा
लॉर्ड वेलेज़ली ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में नागरिक सेवा में भर्ती किये गये युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए ‘फ़ोर्ट विलियम कॉलेज’ की स्थापना की। उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापारिक कम्पनी के स्थान पर एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। लॉर्ड वेलेज़ली “बंगाल का शेर” के उपनाम से प्रसिद्ध थे। इनके समय में ही 1801 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी का सृजन किया गया। नेपोलियन के विस्तार को रोकने के लिए वेलेज़ली ने भारत से जनरल वेयर्ड के नेतृत्व में एक सैनिक दस्ता मिस्र भेजा। इन्हीं के कार्यकाल में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1803-1806 ई.) हुआ था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख