लालमणि मिश्र
लालमणि मिश्र
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पूरा नाम | लालमणि मिश्र |
जन्म | 11 अगस्त, 1924 |
जन्म भूमि | कानपुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 17 जुलाई, 1979 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | शास्त्रीय संगीत |
प्रसिद्धि | शास्त्रीय वादक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | संगीत की हर विधा में पारंगत लालमणि मिश्र ने अपनी साधना और शोध के बल पर एक अलग शैली विकसित की, जिसे ‘मिश्रवाणी’ के नाम से स्वीकार किया गया। |
लालमणि मिश्र (अंग्रेज़ी: Lalmani Misra, जन्म- 11 अगस्त, 1924, कानपुर; मृत्यु- 17 जुलाई, 1979) भारतीय संगीत जगत के ऐसे मनीषी थे, जो अपनी कला के समान ही अपनी विद्वता के लिए भी जाने जाते थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. लालमणि मिश्र ने पटियाला के उस्ताद अब्दुल अज़ीज़ ख़ाँ को सुनकर गुप्त रूप से विचित्र वीणा हेतु वादन तकनीक विकसित करने के साथ-साथ भारतीय संगीत वाद्यों के इतिहास तथा विकास क्रम पर अनुसन्धान किया। वैदिक संगीत पर शोध करते हुए उन्होंने सामिक स्वर व्यवस्था का रहस्य सुलझाया। सामवेद के इन प्राप्त स्वरों को संरक्षित करने के लिए उन्होंने 'राग सामेश्वरी' का निर्माण किया। भरत मुनि द्वारा विधान की गयी बाईस श्रुतिओं को मानव इतिहास में पहली बार डॉ. मिश्र द्वारा निर्मित वाद्य यंत्र श्रुति-वीणा पर एक साथ सुनना सम्भव हुआ।
जन्म
डॉ. लालमणि मिश्र का जन्म 11 अगस्त, 1924 को कानपुर के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पाँच वर्ष की आयु में उन्हें स्कूल भेजा गया, किन्तु 1930 में कानपुर के भीषण दंगों के कारण न केवल इनकी पढ़ाई छूटी बल्कि इनके पिता का व्यवसाय भी बर्बाद हो गया। परिवार को सुरक्षित बचाकर इनके पिता कलकत्ता (अब कोलकाता) आ गए।[1]
संगीत शिक्षा
कोलकाता में बालक लालमणि की माँ को संगीत की शिक्षा प्रदान करने कथावाचक पण्डित गोबर्धन लाल घर आया करते थे। एक बार माँ को सिखाए गए 15 दिन के पाठ को यथावत सुना कर उन्होंने पण्डित जी को चकित कर दिया। उसी दिन से लालमणि की विधिवत संगीत शिक्षा आरम्भ हो गई। पण्डित गोबर्धन लाल से उन्हें ध्रुवपद और भजन का ज्ञान मिला तो हारमोनियम के वादक और शिक्षक विश्वनाथप्रसाद गुप्त से हारमोनियम बजाना सीखा। ध्रुवपद-धमार की विधिवत शिक्षा पण्डित कालिका प्रसाद से खयाल की शिक्षा रामपुर सेनिया घराने के उस्ताद वज़ीर ख़ाँ के शिष्य मेंहदी हुसेन ख़ाँ से मिली। बिहार के मालिक घराने के शिष्य पण्डित शुकदेव राय से सितार वादन की तालीम मिली।
व्यावसायिक शुरुआत
मात्र 16 वर्ष की आयु में लालमणि मिश्र मुंगेर, बिहार के एक रईस परिवार के बच्चों के संगीत-शिक्षक बन गए। 1944 में कानपुर के कान्यकुब्ज कॉलेज में संगीत-शिक्षक नियुक्त हुए। इसी वर्ष सुप्रसिद्ध विचित्र वीणा वादक उस्ताद अब्दुल अज़ीज ख़ाँ (पटियाला) के वाद्य विचित्र वीणा से प्रभावित होकर उन्हीं से शिक्षा ग्रहण की और 1950 में लखनऊ के 'भातखण्डे जयन्ती समारोह' में इस वाद्य को बजा कर विद्वानो की प्रशंसा अर्जित की। लालमणि मिश्र 1951 में उदयशंकर के दल में बतौर संगीत निर्देशक नियुक्त हुए और 1954 तक देश-विदेश का भ्रमण किया। 1951 में कानपुर के 'गाँधी संगीत महाविद्यालय' के प्रधानाचार्य बने। 1958 में पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के आग्रह पर वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय में वाद्य विभाग के रीडर पद पर सुशोभित हुए और यहीं डीन और विभागाध्यक्ष भी हुए।[1]
मिश्रवाणी
संगीत की हर विधा में पारंगत पण्डित लालमणि मिश्र ने अपनी साधना और शोध के बल पर अपनी एक अलग शैली विकसित की, जिसे ‘मिश्रवाणी’ के नाम से स्वीकार किया गया।
मृत्यु
17 जुलाई, 1979 को मात्र 55 वर्ष की आयु में लालमणि मिश्र का निधन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 लालमणि मिश्र (हिंदी) radioplaybackindia.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 26 जुलाई, 2017।