कान्यकुब्ज ब्राह्मण

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कान्यकुब्ज एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कान्यकुब्ज (बहुविकल्पी)

कान्यकुब्ज ब्राह्मण का तात्पर्य कन्नौज क्षेत्र के ब्राह्मण से होता है। यदि कोई ब्राह्मण यह कहता है कि वह 'कान्यकुब्ज ब्राह्मण' है, तो इसका अर्थ है कि वह कन्नौज क्षेत्र का रहने वाला है। कान्यकुब्ज ब्राह्मण कन्नौज तथा इससे सटे अवध क्षेत्र से ही विस्थापित हुए।

  • ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण ‘कान्यकुब्ज’ माने जाते हैं। कान्यकुब्ज में दो शब्द हैं। 'कान्य' और 'कुब्ज' अर्थात् सौ कुबड़ी कन्याओं से जिनकी उत्पत्ती हुई, वे कान्यकुब्ज कहलाए। सुप्रसिद्ध आप्टे के विशाल कोष में भी लिखा है कि कन्नौज का नाम ‘कान्यकुब्ज’ है। प्रत्युत 'रामायण' के बालकाण्ड[1] में इस विषय का विस्तृत वर्णन मिलता है। जब राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र साथ लेकर सिद्धाश्रम से लौटते हैं, तब कुश राजा के राज्य में पहुँचकर राम ने विश्वामित्र से पूछा कि[2]-

"भगवन्! कोन्वयं देशः"

अर्थात् 'इस देश का क्या नाम है।' तब विश्वामित्र ने बताया कि "मेरा जन्म देश यही है और यह देश ब्राह्मणों की उत्पत्ति का केन्द्र है। ये सारे ब्राह्मण क्षत्रियों की सन्तान हैं।" इस प्रकार ‘वर्णसंकर’ का दोषारोपण भी कर दिया।

ब्रह्मयोनिर्महा नासीत् कुशोनाम महातपः।
अल्किष्टव्रतधर्मज्ञः सज्जन प्रतिपूजकः॥

अर्थात् "कुश नाम का महातपस्वी राजा ‘ब्रह्मयोनि’ था। उसके वैदर्भी नाम की स्त्री से कुशाम्ब, कुशनाभ आदि चार पुत्र पैदा हुए। कुशाम्ब ने कौशाम्बी बसाया, जिसको आजकल ‘कोसम’ कहते हैं और कुशनाभ क्षत्रिय राजा ने घृताची नाम की स्त्री से सौ सुन्दर कन्याएँ पैदा कीं।

कुशनाभस्तु राजार्षिः कन्याशत मनुत्तमम्।
जनयामास धर्मात्मा घृताच्यां रघुनन्दन॥

  • ये कन्याएँ वायु दोष से कुबड़ी हो गयीं। इन कुबड़ी सौ कन्याओं का विवाह चूली के पुत्र ब्रह्मदत्त से हुआ। ब्रह्मदत्त ब्राह्मण था। उसके स्पर्श मात्र से सभी कन्याओं का कुबड़ापन दूर हो गया।[2]

स्पृष्ट मात्रे तदा पाणौ विकुब्जाः विगत ज्वराः।
युक्तं परमया लक्ष्म्या बभौ कन्याशतं तदा॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अध्याय 32, 33 और 34
  2. 2.0 2.1 कान्यकुब्ज का अर्थ (हिन्दी) हिन्दी समय। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2015।

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