शतरुद्र संहिता भगवान शिव के अन्य चरित्रों- हनुमान, श्वेत मुख और ऋषभदेव का वर्णन है। इन्हें भगवान शिव का अवतार कहा गया है। शिव की आठ मूर्तियाँ भी बताई गई हैं। इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं। इस संहिता में शिव के लोक प्रसिद्ध 'अर्द्धनारीश्वर' रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि-विकास में 'मैथुनी क्रिया' के योगदान के लिए धरा गया था।
शिव लीला का वर्णन
'शतरुद्र संहिता' में भगवान शिव के विभिन्न अवतारों की उत्पत्ति और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इस संहिता के आरम्भ में भगवान महादेव के पाँच अवतारों का वर्णन किया गया है। ये अवतार हैं-
- सग्योजात
- वामदेव
- तत्पुरुष
- अघोर
- ईशान
विभिन्न कल्पों में भगवान शिव उपर्युक्त वर्णित अवतार धारण कर ब्रह्माजी को सृष्टि रचना के लिए प्रेरित करते हैं। सनकादि ऋषियों के प्रश्न पर स्वयं शिवजी ने 'रुद्राष्टाध्यायी' के मंत्रों द्वारा अभिषेक का महात्म्य बतलाया है। भूरि प्रशंसा की है और बड़ा फल दिखाया है। इस प्रकार वेदों एवं उपनिषदों में भगवान 'शिव' का उद्धारक स्वरूप है।
'शिवपुराण' की 'शतरुद्र संहिता' के द्वितीय अध्याय में भगवान शिव को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान, महादेव का उल्लेख है। शिव की इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पांच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं। चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है।[1]
ग्यारहवें रुद्र हनुमान
'शतरुद्र संहिता' में श्रीराम के भक्त हनुमान को रुद्रों में ग्यारहवाँ रुद्र माना गया है। वह परम कल्याण, स्वरूप साक्षात शिव हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'हनुमान बाहुक' में भी इसका समर्थन किया है। 'वायु पुराण' के पूर्वाद्ध में भगवान महादेव के हनुमान रूप में अवतार लेने का उल्लेख है। 'विनय पत्रिका' के अनेक पदों में गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान को शंकर रूप मानकर 'देवमणि' रुद्रावतार महादेव, वामदेव, कालाग्रि आदि नामों से संबोधित किया है। हनुमान को पुराणों में कहीं भगवान शिव के अंश रूप में तो कहीं साक्षात शंकर जी के रूप में वर्णित किया गया है। 'शिव पुराण' की 'शतरुद्र संहिता' के बीसवें अध्याय से इस कथन की पुष्टि होती है। 'स्कंद पुराण' के अनुसार हनुमान से बढ़कर जगत में कोई नहीं है। किसी भी दृष्टि से चाहे पराक्रम, उत्साह, मति और प्रताप वर विचार करें अथवा शील माधुर्य और नीति को देखें, चाहे गाम्भीर्य चातुर्य और धैर्य को देखें, इस विशाल ब्रह्मांड में हनुमान जैसा कोई नहीं है। हनुमान जी के लिए 'वायुपुत्र' का जो प्रयोग होता है, उसकी दार्शनिक प्रतीकात्मक भूमिका जानना अनिवार्य है। वायु, गति, पराक्रम, विद्या, भक्ति और प्राण शब्द का पर्याय है। वायु के बिना या वायु की वृद्धि से प्राणियों का मरण होता है। साधक और योगी के लिए तो प्राण, वायु का नियमन योग की आधार भूमिका है। पवन सभी का प्राणदाता जनक है। इसी प्राणतत्व की भूमिका पर हनुमान जी पवनपुत्र सहज ही निरुपित हो जाते हैं।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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