शुभ द्वादशी

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को आरम्भ होता है।
  • 1 से 9 तक एकभक्त।
  • 10 को स्नानोपरान्त मध्याह्न में केशव पूजा की जाती है।
  • दोनों पक्षों की द्वादशियों पर (मार्गशीर्ष से चार मासों तक) तिल एवं हिरण्य का दान दिया जाता है।
  • चैत्र से चार मासों में भूसी निकाले हुए अन्नों एवं सोने से पूर्ण पात्रों का दान दिया जाता है।
  • इसी प्रकार अन्य चार मासों में गोविन्द पूजा की जाती है।
  • कार्तिक शुक्ल की द्वादशी पर सात पातालों, पर्वतों से युक्त पृथ्वी की स्वर्णिम प्रतिमा का निर्माण और उसके समक्ष हरि प्रतिमा का स्थापन एवं हरि पूजा की जाती है।
  • जागर (रात भर जागना) होता है।
  • दूसरे दिन प्रात: 21 ब्राह्मणों में से प्रत्येक को एक गाय, एक बैल, एक जोड़ा वस्त्र, अंगूठी, सोने का कंगन एवं कर्णफूल, एक ग्राम (यदि कर्ता राजा हो तो) का दान तथा कृष्ण 12 पर पृथ्वी की रजत प्रतिमा बनाकर उसका दान दिया जाता है।
  • कर्ता को समृद्धि एवं विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।[1]

 

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 340-343); हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1101-1103, वराह पुराण 55|1-59 से उद्धरण)।

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