श्री अरविंद मेरी दृष्टि में -रामधारी सिंह दिनकर
श्री अरविंद मेरी दृष्टि में -रामधारी सिंह दिनकर
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लेखक | रामधारी सिंह दिनकर | |
मूल शीर्षक | 'श्री अरविंद मेरी दृष्टि में' | |
मुख्य पात्र | अरविंद घोष | |
प्रकाशक | लोकभारती प्रकाशन | |
ISBN | 978-81-8031-328 | |
देश | भारत | |
भाषा | हिन्दी | |
प्रकार | जीवना/आत्मकथा | |
टिप्पणी | इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें अरविंद की कालजयी चौदह कविताओं को भी संकलित किया गया है, जो स्वयं राष्ट्रकवि दिनकर द्वारा अपनी विशिष्ट भाषा-शैली में अनूदित की गई हैं। |
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक श्री अरविंद मेरी दृष्टि में के माध्यम से योगीराज अरविंद घोष की विकासवाद, अतिमानव की अवधारणा एवं साहित्यिक मान्यताओं को बहुत ही सरलता से बताया है। अरविंद घोष केवल एक क्रान्तिकारी ही नहीं, उच्च कोटि के साधक भी थे। दिनकर जी के शब्दों में- "श्री अरविंद की साधना अथाह थी, उनका व्यक्तित्व गहन और विशाल था और उनका साहित्य दुर्गम समुद्र के समान है।" इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ अरविंद की कालजयी चौदह कविताओं को भी संकलित किया गया है, जो स्वयं राष्ट्रकवि दिनकर द्वारा अपनी विशिष्ट भाषा-शैली में अनूदित की गई हैं।[1]
भूमिका
योगीराज अरविंद का शरीरपात सन 1950 में दिसम्बर मास में हुआ था। लेखक के अनुसार जब मैं लगभग बयालीस वर्ष का हो चुका था, लेकिन मेरा भाग्य-दोष ऐसा रहा कि मैं श्री अरविंद के दर्शन नहीं कर सका। अब जब भी आश्रम जाता हूँ, श्री माँ के दर्शन करता हूँ और श्री अरविंद की समाधि पर ध्यान। ध्यान चाहे जैसा भी जमे, मन के भीतर एक कचोट ज़रूर सालती है कि हाय, मैं आपको उस समय नहीं देख सका, जब आप शरीर के साथ थे। अब तो यही एकमात्र उपाय है कि मन से यानी अध्ययन और चिन्तन से श्री अरविंद को समझने का प्रयास करूँ, और जिन्होंने श्री अरविंद को नहीं देखा, उनके लिए बस यही एक उपाय है, यद्यपि अध्ययन और चिन्तन अर्थात् मन सत्य को समझने का सही मार्ग नहीं है। चिन्तन में प्रामाणिकता श्रद्धा से आती है।
अरविंद के व्यक्तित्व के पहलू अनेक हैं और सभी पहलू एक से बढ़कर एक उजागर हैं। राजनीति में वे केवल पाँच वर्ष तक रहे थे। किन्तु उतने ही दिनों में उन्होंने सारे देश को जगाकर उसे स्वतन्त्रता-संघर्ष के लिए तैयार कर दिया। असहयोग की पद्धति उन्हीं की ईजाद थी। भारत का ध्येय पूर्ण स्वतन्त्रता की प्राप्ति है, यह उद्घोष भी सबसे पहले उन्हीं ने किया था। दार्शनिक तो यूरोप में बहुत उच्च कोटि के हुए हैं, किन्तु उनके दर्शन मेधा की उपज हैं, तर्क शक्ति के परिणाम हैं। उन्होंने जो कुछ लिखा, देखकर लिखा, अनुभव करके लिखा। श्री अरविंद के दर्शन का सार उनकी अनुभूति है। विचार उस अनुभूति को केवल परिधान प्रदान करता है। श्री अरविंद ने भारत की इस परम्परा को फिर से प्रमाणित कर दिया कि सच्चा दर्शन वह है, जो सोचकर नहीं, देखकर लिखा जाता है। अरविंद की कविता के विषय में क्या कहा जाए? उन्होंने ऐसी कविताएँ भी लिखी हैं, जिनके जोड़ की या जिनसे अच्छी कविताएँ संसार में मौजूद हैं। किन्तु यही बात क्या सावित्री के प्रसंग में कहीं जा सकती है?
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री अरविंद मेरी दृष्टि में (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2013।
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