संगीतज्ञ कीट
संगीतज्ञ कीट
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विवरण | कीट प्राय: छोटा, रेंगने वाला, खंडों में विभाजित शरीर वाला और बहुत-सी टाँगों वाला एक प्राणी हैं। |
जगत | जीव-जंतु |
उप-संघ | हेक्सापोडा (Hexapoda) |
कुल | इंसेक्टा (Insecta) |
लक्षण | इनका शरीर खंडों में विभाजित रहता है जिसमें सिर में मुख भाग, एक जोड़ी श्रृंगिकाएँ, प्राय: एक जोड़ी संयुक्त नेत्र और बहुधा सरल नेत्र भी पाए जाते हैं। |
जातियाँ | प्राणियों में सबसे अधिक जातियाँ कीटों की हैं। कीटों की संख्या अन्य सब प्राणियों की सम्मिलित संख्या से छह गुनी अधिक है। इनकी लगभग दस बारह लाख जातियाँ अब तक ज्ञात हो चुकी हैं। प्रत्येक वर्ष लगभग छह सहस्त्र नई जातियाँ ज्ञात होती हैं और ऐसा अनुमान है कि कीटों की लगभग बीस लाख जातियाँ संसार में वर्तमान में हैं। |
आवास | कीटों ने अपना स्थान किसी एक ही स्थान तक सीमित नहीं रखा है। ये जल, स्थल, आकाश सभी स्थानों में पाए जाते हैं। जल के भीतर तथा उसके ऊपर तैरते हुए, पृथ्वी पर रहते और आकाश में उड़ते हुए भी ये मिलते हैं। |
आकार | कीटों का आकार प्राय: छोटा होता है। अपने सूक्ष्म आकार के कारण वे वहुत लाभान्वित हुए हैं। यह लाभ अन्य दीर्घकाय प्राणियों को प्राप्त नहीं है। |
अन्य जानकारी | कीटों की ऐसी कई जातियाँ हैं, जो हिमांक से भी लगभग 50 सेंटीग्रेट नीचे के ताप पर जीवित रह सकती हैं। दूसरी ओर कीटों के ऐसे वर्ग भी हैं जो गरम पानी के उन श्रोतों में रहते हैं जिसका ताप 40 से अधिक है। |
बहुत से कीट संगीतज्ञ होते हैं। कीट वाणीहीन होते हैं, इसलिए इनका संगीत वाद्य संगीत होता है। ये केवल प्रौढ़ावस्था में ही अपना वाद्य जानते हैं। प्राय: नर कीट ही संभवत: मादा को आकर्षित करने के लिए संगीत उत्पन्न करते हैं। इनके वाद्य अधिकतर ढोल के आकार के होते हैं, अर्थात् इन वाद्यों में एक झिल्ली होती है जिसमें तीव्र कंपन होने से ध्वनि उत्पन्न होती है। कंपन उत्पन्न करने की दो विधियाँ है। एक भाग को दूसरे भाग पर रगड़कर जो ध्वनि उत्पन्न की जाती है। उसकी बेला[1] से उत्पन्न हुई ध्वनि से तुलना कर सकते हैं। दूसरी विधि में कीट की पेशियों का संकोचन विमोचन होता है। ये पेशियाँ झिल्ली से जुड़ी रहती हैं और इसलिए झिल्ली में भी कंपन होने लगता है। इस प्रकार से ध्वनि उत्पन्न करने का मनुष्य के पास कोई साधन नहीं है। झींगुर, कैटीडिड[2], टिड्डे तथा सिकेडा कीट समाज की गाने वाली प्रसिद्ध मंडली के सदस्य हैं। झींगुर, कैटीडिड और टिड्डे एक ही गण के अंतर्गत आते हैं। झींगुर और कैटीडिड के एक अग्र पक्ष पर रेती के समान एक फलक होता है, जो दूसरे अग्र पक्ष के उस भाग को रगड़ता है, जो किनारे की ओर मोटा-सा हो जाता है। कैटीडिड में रेती बाएँ पक्ष पर होती है। कुछ झींगुर अपने दाएँ पक्ष वाली रेती से ही काम लेते हैं। टिड्डे के पक्षों पर दाते होते हैं और पिछली टाँगों पर भीतर की ओर तेज किनारा होता है। सिकेडा की पीठ पर दोनों ओर पक्षों के पीछे एक-एक अंडाकार छिद्र होता है, जिस पर एक झिल्ली बनी रहती है। इस प्रकार एक ढोल सा बन जाता है। इस झिल्ली पर भीतर की ओर पेशियाँ जुड़ी रहती हैं, जो इसमें कंपन उत्पन्न करती हैं। ढोल में तीलियाँ होती है। इन तीलियों की संख्या भिन्न-भिन्न जातियों में भिन्न होती है। मच्छर दो प्रकार का गान करते हैं, इनके नाम निम्न हैं-
- प्रेमगान
- लालसागान
प्रेमगान
प्रेमगान नर को मैथुन करने के लिए आकर्षित करता है।
लालसागान
जो प्रेमगान और लालसागान कहलाते हैं। लालसागान द्वारा एक मादा अन्य मादाओं को संदेश देती है कि उसने रुधिर चूसने के लिये शिकार ढूँढ़ लिया है और वे वहाँ पहुँचकर रुधिर चूस सकती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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