किसी बात पर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई हो, निश्चय न हो पा रहा हो तो 'संदेह' पैदा होता है, जबकि कुछ का कुछ समझ लेना 'भ्रम' है। भ्रम में निश्चित रूप से ग़लत समझ लेने की स्थिति होती है, पर संदेह में निश्चय का अभाव होता है। उदाहरणार्थ- 'मुझे संदेह है कि वह इतना सारा काम आज पूरा कर पाएगा', 'इस भ्रम में मत रहिए कि नेताजी अपना किया वादा निभाएँगे।'
इन्हें भी देखें: समरूपी भिन्नार्थक शब्द एवं अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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