सत्यनारायण व्रत

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  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • सत्यनारायणव्रत बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र में अत्यन्त प्रचलित है।
  • सत्यनारायणव्रत भविष्य पुराण[1] में निरूपित है।
  • महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री ने इसे मुसलमानी प्रभाव से आक्रान्त माना है।
  • स्कन्द पुराण के रेवाखण्ड[2] में उल्लिखित है कि आरम्भिक काल में (और बहुत से स्थानों पर आज भी) इसे 'सत्यपीर की पूजा' कहा जाता है।
  • जे. बी. आर. एस.[3] में उपर्युक्त लेखक ने कहा है कि 'सीर्नी' की मुस्लिम विधि हिन्दुओं के द्वारा सत्यनारायण की कथा में अपनी ली गयी।
  • यह व्रत आधुनिक मध्यम वर्ग के लोगों एवं नारियों में अत्यन्त प्रचलित है।
  • इस व्रत की कथाओं के लिए[4] ऐसा आया है कि विष्णु ने नारद से इस व्रत का उल्लेख किया था। किसी भी सत्यनारायण की पूजा की जा सकती है।
  • नैवेद्य सवा सेर या सवा मन; जिसमें केला, घृत, दूध, गेहूँ का आटा, गुड़ या शर्करा सम्मलिति रहते हैं; ये सभी मिला दिये जाते हैं; यजमान को कथा सुननी चाहिए और प्रसाद ग्रहण करना चाहिए; गीत, नृत्य एवं जागर करना चाहिए। तब लोग अपने-अपने घर जाते हैं; इससे सभी कामनाओं की पूर्ति होती है; एक ब्राह्मण, एक लकड़हारे, साध नामक वणिक् एवं उसकी पुत्री कलावती की कथाएँ सुननी चाहिए।
  • इन गाथाओं में सत्यनारायण प्रतिहिंसक एवं ईर्ष्यालु प्रकट किये गये हैं।
  • ये कथाएँ स्कन्द पुराण के रेवाखण्ड से ली गयी कही गयी हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व), अध्याय 24-29
  2. बंगवासी संस्करण
  3. जे. बी. आर. एस. जिल्द 16, पृ0 328
  4. इण्डियन एण्टीक्वेरी (जिल्द 3, पृ0 83-85

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