हे कृष्ण तुझे पल पल जीने के लिए
तेरे बाल स्वरूप को देखने की आशा में
मैं हुई गोकुल
तेरी बाँसुरी की धुन सुनने के लिए
मैं हुई कदम्ब
यमुना हुई तुझे छूने के लिए
मटकी बनी माखन के लिए
यशोदा मईया की धड़कन बनी
देवकी की प्रतीक्षा बनी
सुदामा की मित्रता बनी
राधा के मन की भावनायें बनी
गोवर्धन पर्वत बनी
मोर पंख बनी
सुदर्शन चक्र बनी
जिस रथ को तुमने कुरुक्षेत्र में घुमाया
उसकी रास बनी
जिस साड़ी से तुमने द्रौपदी की लाज रखी
उसका अस्तित्व बनी
तुम्हारे हुंकार की आवाज़ बनी
तुम्हारे आँखों से छलके अश्रुकण बनी
हे कृष्ण
तुम्हारी हर बेचैनी की मैं साक्षी बनी
तुम गीता सुनाते रहे
मैं आत्मसात करती गई
तुम्हारा बचपन कई तूफानों के क्रम में था
अपने बच्चों के जीवन में उठे तूफानों को
मैंने तुम्हारा उनमें होना माना
तुम्हारा धैर्य उनका धैर्य बना
जानना चाहते हो सारांश ....
तो सुनो,
वह हर किराये का घर गोकुल रहा हमारे लिए
जिसमें तुम हमारे स्वाभिमान की रक्षा में लगे रहे
.... किसी ने देखा या नहीं तुम्हें
यह कोई प्रमाण नहीं देना
बस तुम जानो
मैं जानूँ
तुम कृष्ण कृष्ण
मैं गोकुल गोकुल
मथुरा में तुम्हारा शरीर है
गोकुल में आत्मा
हाँ कृष्ण
मैं तुम्हारी आत्मा हूँ
बिना किसी सारांश के …