होमरूल लीग आन्दोलन

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होमरूल लीग आन्दोलन का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहते हुए संवैधानिक तरीक़े से स्वशासन को प्राप्त करना था। इस लीग के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक एवं श्रीमती एनी बेसेंट थीं। स्वराज्य की प्राप्ति के लिए तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 ई. को बेलगांव में 'होमरूल लीग' की स्थापना की थी। इनके द्वारा स्थापित लीग का प्रभाव कर्नाटक, महाराष्ट्र (बम्बई को छोड़कर), मध्य प्रान्त एवं बरार तक फैला हुआ था।

स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा - बाल गंगाधर तिलक

शाखाएँ तथा प्रचार

होमरूल लीग की छ: शाखाएँ बनायीं गयीं। मध्य महाराष्ट्र, बम्बई, कर्नाटक और मध्य प्रान्त में एक-एक तथा बरार में दो। बाल गंगाधर तिलक ने छ: मराठी और दो अंग्रेज़ी परचे निकालकर उन्होंने अपने प्रचार कार्य को तेज कर दिया। तिलक ने जनता को होमरूल की आवश्यकता को समझाते हुए कहा, "भारत उस बेटे की तरह है, जो अब जवान हो चुका है। समय का तकाजा है कि बाप या पालक इस बेटे को उसका वाजिब हक दे दे।" तिलक ने मई, 1917 ई. में नासिक में लीग की पहली वर्षगांठ मनाई।

एनी बेसेंट का योगदान

भारत आकर एनी बेसेंट ने साप्ताहिक पत्र 'कामनवील' का 2 जनवरी, 1914 ई. से एवं दैनिक पत्र 'न्यू इंडिया' का 14 जुलाई, 1914 ई. से प्रकाशन प्रारम्भ किया। इन पत्रों के द्वारा एनी बेसेंट ने भारतीयों में स्वतन्त्रता एवं रातनीतिक भावना को जागृत किया। उन्होंने भारत में आयरलैण्ड की तरह सितम्बर, 1916 ई. में मद्रास (अडयार) में 'होमरूल लीग' की स्थापना की तथा जॉर्ज अरुंडेल को लीग का सचिव नियुक्त किया। एनी बेसेंट के सहयोगियों में बी.पी. वाडिया तथा सी.पी. रामास्वामी अय्यर शामिल थे। जवाहर लाल नेहरू, वी. चक्रवर्ती, जे. बनर्जी जैसे नेताओं ने भी लीग की सदस्यता ग्रहण की। गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित संस्था 'सर्वेण्ट ऑफ़ इण्डिया सोसायटी' के सदस्यों को लीग में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। तिलक के होमरूल लीग के प्रभाव क्षेत्र से बाहर के सभी हिस्सों में लीग के प्रभाव को फैलाने की ज़िम्मेदारी एनी बेसेंट पर थी। होमरूल लीग के सर्वाधिक कार्यालय मद्रास में थे। तिलक ने अपने पत्र 'मराठा' एवं 'केसरी' तथा एनी बेसेंट ने पत्र 'कॉमनवील' एवं 'न्यू इण्डिया' के माध्यम से 'गृह शासन' या 'होमरूल' का ज़बरदस्त प्रचार किया।

लीग का प्रभाव

कालान्तर में होमरूल लीग के बढ़ते हुए प्रभाव से ख़तरा महसूस करके ब्रिटिश सरकार ने एनी बेसेंट, जॉर्ज अरुन्डेल तथा वी.पी. वाडिया को 1917 ई. में गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के विरोध में एस.सुब्रह्मण्य अय्यर ने अपनी 'नाइट हुड' की उपाधि वापस कर दी। तिलक ने गिरफ्तारी के विरोध में 'सत्याग्रह' करना चाहा, किन्तु इससे पूर्व ही सरकार ने एनी बेसेंट को छोड़ दिया। एनी बेसेंट की लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी। इसके परिणामस्वरूप 1917 ई. में कांग्रेस के 'कलकत्ता अधिवेशन' में एनी बेसेंट को अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली वह प्रथम महिला थीं। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कहा कि "भारत अब अनुग्रहों के लिए अपने घुटनों पर नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए अपने पैरों पर खड़ा है।"

समाप्ति की घोषणा

चारो ओर से दबाव महसूस होने पर भारत सचिव मांटेग्यू ने 20 अगस्त, 1917 ई. को ब्रिटिश संसद में इस आशय का एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें भारत को उत्तरादायी शासन प्रदान करने की बात की गई थी। इसके परिणामस्वरूप एनी बेसेंट ने 20 अगस्त, 1917 ई. को ही 'होमरूल लीग' को समाप्त करने की घोषणा की।

इन्हें भी देखें: इंडियन होमरूल लीग


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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