अकिलन

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अकिलन
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अकिलन
पूरा नाम पेरुंगळूर वैद्य विंगम अखिलंदम ( पी. वी. अखिलंदम)
जन्म 27 जून, 1922
जन्म भूमि तमिलनाडु
मृत्यु 31 जनवरी, 1988
कर्म भूमि तमिलनाडु, भारत
कर्म-क्षेत्र तमिल साहित्य
मुख्य रचनाएँ 'नेंजिन अलैगल', 'पावै विलक्कु', 'चित्तिरप्पावै', 'वेंगैयिन मैंदन', 'कयल विषि', 'वेत्री तिरुनगर' आदि।
पुरस्कार-उपाधि ज्ञानपीठ पुरस्कार (1975), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1963), तमिल विकास परिषद का पुरस्कार (1968), राजा अण्णमलै चेट्टियार पुरस्कार (1976)
प्रसिद्धि तमिल साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1940 में अकिलन ने मित्रों के सहयोग से एक 'शक्ति युवा संघ' बनाया और जी-जान से स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

अकिलन (अंग्रेज़ी: Akilan, जन्म- 27 जून, 1922, तमिलनाडु; मृत्यु- 31 जनवरी, 1988[1]) तमिल भाषा के सुविख्यात साहित्यकार, उपन्यासकार, लघु कहानी लेखक, पत्रकार, व्यंग्यकार, यात्रा लेखक, नाटककार तथा पटकथा लेखक थे। अकिलन का पूरा नाम 'पेरुंगळूर वैद्य विंगम अखिलंदम' (पी. वी. अखिलंदम) था। उन्होंने अपना अधिकांश लेखन कार्य अकिलन नाम से किया और इसी नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी वे जाने जाते थे।

जन्म

अकिलन का जन्म 27 जून, 1922 को पेरुंगलूर, तमिलनाडु में हुआ था। उनके पिता फ़ॉरेस्ट रेंजर थे। पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा आई.सी.एस. बने, लेकिन वर्ष 1938 में अचानक उनकी मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद अकिलन आर्थिक परेशानियों व निराशाओं से घिर गए।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

संघर्ष भरे इन्हीं दिनों की अनुभूतियाँ अकिलन की प्रेरणा बनीं और 1939 में उनकी सबसे पहली कहानी अर्थकष्ट से मृत्यु प्रकाश में आई। कुछ समय बाद कवि सुब्रह्मण्यम भारतीय एवं बंकिमचंद्र चटर्जी की रचनाओं ने उनके मानस में राष्ट्रीयता की चिंगारी जला दी। अत: 1940 में मैट्रिक करते ही अपने मित्रों के सहयोग से उन्होंने एक 'शक्ति युवा संघ' बनाया और जी-जान से स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। जब देश में 'भारत छोड़ो आंदोलन' की ललकार गूंजी तो अकिलन ने मुक्त भाव से सरकार विरोधी कहानियाँ लिखनी शुरू कर दीं।

कार्यक्षेत्र

वर्ष 1945 में अकिलन रेलवे मेल सर्विस में सॉर्टर के काम पर नियुक्त हुए और 23 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना पहला उपन्यास 'पेन' लिखा। प्रतिष्ठित तमिल मासिक 'कलैमगल' ने इसे प्रतियोगिता में प्रथम स्थान देकर पुरस्कृत किया। द्वितीय महायुद्ध के दौरान भारत की स्वाधीनता के लिए सशस्त्र संघर्ष नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ब्रिटिश सेनाओं के विरुद्ध किया, उसके प्रति अकिलन के मन में विशेष लगाव और आदर भाव था।

साहित्य से लगाव

आई. एन. ए. के अनेक सैनिकों और सेनानायकों से अकिलन के बेहद घनिष्ठ संबंध थे। उनकी भावनाओं ने अभिव्यक्ति पाई उपन्यास 'नेंजिन अलैगल' में। उनका यह उपन्यास वर्ष 1951 में प्रकाशित हुआ और 1955 में तमिल अकादमी द्वारा पुरस्कृत हुआ। 1958 में 'पावै विलक्कु' लिखने के दौरान उन्होंने अचानक नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और त्रिची से मद्रास (वर्तमान चेन्नई) चले गए। साहित्यमर्मियों के मत से 'पावै विलक्कु' और 'चित्तिरप्पावै' उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ हैं। 'चित्तिरप्पावै' के कारण अकिलन का नाम तमिलनाडु के ही नहीं, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर में बसे लाखों तमिल भाषियों तक पहुँच गया। यह उपन्यास गद्य की काव्यमयता का सुंदर उदाहरण है और आधुनिक तमिल उपन्यास साहित्य की प्रौढ़ता का प्रतीक माना जाता है।

ऐतिहासिक उपन्यास

अकिलन ने कुछ ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे। वर्ष 1961 में प्रकाशित 'वेंगैयिन मैंदन' उनका पहला ऐतिहासिक उपन्यास था, जिसे 1963 में 'साहित्य अकादमी' ने पुरस्कृत किया। फिर 1965 में 'कयल विषि' निकला। इस पर उन्हें 1968 में 'तमिल विकास परिषद' का पुरस्कार मिला। अकिलन का तीसरा ऐतिहासिक उपन्यास है 'वेत्री तिरुनगर', जो 1966 में प्रकाशित हुआ था। 1973 में प्रकाशित उनकी रचना 'एंगे पोगीरोम' एक सामाजिक उपन्यास है, जिसमें समाज और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का चित्रण किया गया है। अकिलन को इसी कृति पर 1976 में 'राजा अण्णमलै चेट्टियार पुरस्कार' भी मिला था।

प्रमुख कृतियाँ

अखिलंदम की प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास
  • मंगिय निलवु (1944)
  • पेन (1947)
  • तुनैवि (1951)
  • संदिप्पु (1952)
  • अवलुक्कु (1953)
  • वेंगयिन मैंदन (1961)
  • पुदु वेल्लम् (1964)
  • कयल विषि (1965)
  • वेत्री तिरुनगर (1966)
  • चित्तिरप्पावै (1968)
  • कोल्लैकारन (1969)
  • एंगे पोगिरोम (1973)
कहानी
  • सक्तिवेल (1946)
  • सांति (1952)
  • नेल्लूर अरिसी (1967)
  • एरिमलै (1970)
  • पसियुम रूसियुम (1974)
निबंध
  • मणमक्कलुक्कु (1953)
  • कदैकलै (1972)
नाटक
  • वाषविल इनबम (1955)

निधन

तमिल भाषा के महान् साहित्यकार अकिलन का निधन 31 जनवरी, 1988 को हुआ।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • भारत ज्ञानकोश खण्ड-1

बाहरी कड़ियाँ

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