बलवंतराय मेहता
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पूरा नाम | बलवंतराय गोपालजी मेहता |
जन्म | 19 फ़रवरी 1900 |
जन्म भूमि | भावनगर, गुजरात |
मृत्यु | 19 सितम्बर 1965 |
मृत्यु स्थान | सुथरी, कच्छ |
पति/पत्नी | सरोजबेन |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | दूसरे मुख्यमंत्री, गुजरात |
कार्य काल | 19 सितम्बर 1963 – 20 सितम्बर 1965 तक |
अन्य जानकारी | 1 अप्रैल 1958 को संसद ने 'बलवंत राय मेहता समिति' की सिफारिशों को पारित कर उन्हें लागू किया। 2 अक्टूबर 1959 को पंडित नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले से भारत में पंचायती राज की विधिवत शुरुआत की। |
बलवंतराय गोपालजी मेहता (अंग्रेज़ी: Balwantrai Gopalji Mehta, जन्म- 19 फ़रवरी 1900; मृत्यु- 19 सितम्बर 1965) भारतीय राजनीतिज्ञ और गुजरात के दूसरे मुख्यमंत्री थे। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में उनके योगदान के लिए उन्हें पंचायती राज का वास्तुकार माना जाता है।
जन्म व शिक्षा
बलवंतराय मेहता का जन्म 19 फ़रवरी, 1900 को भावनगर में एक माध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उन्होनें बी.ए. तक पढ़ाई की थी। 1920 में उनकी ग्रेजुएशन पूरी हुई थी। जब नतीजे आए तो वह हर विषय में उत्तीर्ण थे। उन्होंने अंग्रेज़ सरकार की दी हुई डिग्री लेने से मना कर दिया था। इस समय उनकी उम्र महज 20 साल थी। कॉलेज से निकलने के बाद लाला लाजपतराय के संगठन ‘सर्वेंट ऑफ़ पीपल’ की सदस्यता ले ली। 'सर्वेंट ऑफ़ इंडिया' गैर-राजनीतिक संगठन था। लाला जी ने कांग्रेस से इतर सामाजिक सेवा के लिए इस संगठन को बनाया था। बलवंतराय मेहता लंबे समय तक इसके सदस्य रहे और दो बार इसके अध्यक्ष भी चुने गए।
राजनीतिक शुरुआत
1921 वो साल था जब बलवंतराय मेहता का सियासी सफ़र शुरू हुआ। 1921 में उन्होंने 'भावनगर प्रजामंडल' की स्थापना की। उस समय भावनगर एक प्रिंसली स्टेट या रजवाड़ा हुआ करता था। यहां अंग्रेजों का सीधा कब्ज़ा नहीं था। गुहिल राजा कृष्णाकुमार सिंह का राज हुआ करता था। महज़ 21 की उम्र में बलवंतराय सामंती शासन के खिलाफ मोर्चा लेना शुरू कर चुके थे। 1928 में सूरत के बारडोली में गांधीजी और सरदार पटेल के नेतृत्व में सत्याग्रह शुरू हुआ। बलवंतराय इस सत्याग्रह के महत्वपूर्ण सदस्य बनके उभरे। 1930 से 1932 तक चले असहयोग आंदोलन के दौरान वह जेल में रहे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें फिर से जेल में डाल दिया गया। वह आज़ादी से पहले करीब सात साल तक जेल में रहे।[1]
आज़ादी के बाद गांधीजी के कहने पर बलवंतराय मेहता ने कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्यता ली। 1952 में देश में पहली बार चुनाव हुए। भावनगर को उस समय गोहिल राजाओं की वजह से गोहिलवाड़ के नाम से जाना जाता था। बलवंतराय यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में उतर गए। उनके मुकाबिल थे, निर्दलीय उम्मीदवार कृष्णलाल। बलवंतराय मेहता 80256 वोट हासिल करके माननीय सांसद बने। 1957 में दूसरी लोकसभा के चुनाव थे। बलवंतराय गोहिलवाड़ (भावनगर) से चुनाव लड़ गए। सामने थे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जशवंत भाई मेहता। बलवंतराय 82582 वोट हासिल कर आसानी से चुनाव जीत गए। वहीं जशवंत भाई मेहता महज़ 62958 वोट ही हासिल कर पाए।
पंचायती राज के पितामह
गांधीजी ने ‘स्वराज’ का खाका खींचा था, उसमें हर गांव को एक स्वंतत्र इकाई की तरह काम करना था। वह चाहते थे कि हर गांव इतना आत्मनिर्भर हो कि अपनी सरकार खुद चला सके। इसलिए हर गांव और गांव की पंचायत का मजबूत होना जरूरी था। 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस दिशा में पहलकदमी की। दरअसल 1957 की जनवरी में सामुदायिक विकास के कार्यक्रमों की जांच के लिए एक कमिटी बनाई गई थी। इस कमिटी की अध्यक्षता कर रहे थे बलवंतराय मेहता। नवंबर 1957 में इस कमिटी ने अपनी सिफारिशें सौंपी। तीन स्तर वाले पंचायती राज का पूरा खाका सामने रखा गया।
1 अप्रैल 1958 को संसद ने 'बलवंत राय मेहता समिति' की सफारिशों को पारित कर उन्हें लागू किया। 2 अक्टूबर 1959 को पंडित नेहरू ने राजस्थान के नागौर जिले से भारत में पंचायती राज की विधिवत शुरुआत की। लेकिन इन सिफारिशों को पूरी तरह लागू करने वाला पहला राज्य बना आंध्र प्रदेश। भारत में पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा हासिल करने के लिए काफ़ी इंतजार करना पड़ा। 1993 में 73वां संशोधन कर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इनके नियमित चुनाव सुनिश्चित किए, लेकिन बलवंतराय मेहता कमिटी द्वारा सुझाए गए तीन स्तरीय पंचायती राज के ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया गया। ये तीन स्तर हैं- गांव के स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक के स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर जिला पंचायत। इस तरह आज भी बलवंतराय मेहता का दिया हुआ ढांचा यथावत जारी है।[1]
मुख्यमंत्री का पद
24 अगस्त 1963 को आए कामराज प्लान ने कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं की बलि ली। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता नेहरू के विरोधी खेमे से आते थे। कामराज प्लान के तहत पंडित नेहरू ने अगस्त 1963 में चंद्रभानु गुप्ता से इस्तीफ़ा ले लिया। मोरारजी देसाई इस इस्तीफे के बहुत खिलाफ थे। उन्होंने पहले नेहरू जी को समझाने की कोशिश की। जब नेहरू नहीं माने तो वो इसी प्लान के तहत जीवराज मेहता के इस्तीफे पर अड़ गए। गुजरात मोरारजी का गृहराज्य था। जीवराज मेहता, मोरारजी की मर्ज़ी के खिलाफ़ नेहरू जी की सिफारिश के चलते सूबे के पहले मुख्यमंत्री बने थे। मोरारजी के दबाव की वजह से जीवराज मेहता को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। मोरारजी पहले भी बलवंतराय मेहता का नाम सुझा चुके थे, लेकिन नेहरू के सामने उनकी ज्यादा चल नहीं पाई थी। इस मौके पर उन्होंने अपनी पसंद के आदमी को गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा ही दिया। सितंबर 1963 को बलवंतराय मेहता राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने।
मृत्यु
19 सितम्बर, 1965 को भारत-पाक युद्ध के दौरान बलवंतराय मेहता मीठापुर से कच्छ तक जा रहे थे। रास्ते में पाकिस्तानी वायु सेना ने उनके विमान पर हमला कर दिया, जिसमें मेहता जी के साथ उनकी पत्नी, तीन कार्यकर्ता, एक पत्रकार और दो विमान चालक की मौत हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 गुजरात का वो मुख्यमंत्री जो भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गया (हिंदी) helallantop.com। अभिगमन तिथि: 26 फरवरी, 2020।
बाहरी कडियाँ
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क्रमांक | राज्य | मुख्यमंत्री | तस्वीर | पार्टी | पदभार ग्रहण |