कोयला एक कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। साधारणतया लकड़ी के अंगारों को बुझाने से बच रहे जले हुए अंश को कोयला कहा जाता है। उस खनिज पदार्थ को भी कोयला कहते हैं जो संसार के अनेक स्थलों पर खानों से निकाला जाता है। कोयला एक तरफ जहाँ शक्ति प्राप्त करने अथवा औद्योगिक ईधन का एक महात्तवपूर्ण साधन है, वहीं विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत भी है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 19689 करोड़ टन कोयला निकालने का प्रथम प्रयास 1774 में झारखण्ड के रानीगंज कोयला क्षेत्र में दो अंग्रेज़ों सनमर तथा हेल्थीली ने किया एवं उसके बाद 1814 में इसी क्षेत्र में रूर्पट जोन्स की रिर्पोट मिलने पर कोयले का उत्खनन प्रारम्भ किया गया।
कोयले के प्रकार
कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता हैं -
- पीट कोयला :- इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 60% तक होती है। इसे जलाने पर अधिक राख एवं धुआँ निकलता है। यह सबसे निम्न कोटि का कोयला है।
- लिग्नाइट कोयला :- कोयला इसमें कार्बन की मात्रा 65% से 70% तक होती है। इसका रंग भूरा होता है, इसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है।
- बिटुमिनस कोयला :- इसे मुलायम कोयला भी कहा जाता है। इसका उपयोग घरेलू कार्यों में होता है। इसमें कर्बन की मात्रा 70% से 85% तक होती है।
- एन्थ्रासाइट कोयला :- यह कोयले की सबसे उत्तम कोटि है। इसमें कार्बन की मात्रा 85% से भी अधिक रहती है।
कोयले के विभिन्न स्तर समूह
भारत में कोयला मुख्यत: दो विभिन्न युगों के स्तर समूहों में मिलता है: पहला गोंडवाना युग में तथा दूसरा तृतीय कल्प में। कोयला उत्खनन में वर्तमान में भारत का स्थान चीन और अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा है और यहाँ पर लगभग 136 किग्रा. प्रति व्यक्ति कोयला निकाला जाता है, जो औसत से कम है। भारत में प्रचीन काल की गोण्डवाना शैलों में कुल कोयले का 98 प्रतिशत भाग पाया जाता है जबकि तृतीयक अथवा टर्शियर युगीन कोयला मात्र 2 प्रतिशत है।
- गोंडवाना युगीन कोयला
गोंडवाना कोयला उच्च श्रेणी का होता है। इसमें राख की मात्रा अल्प तथा तापोत्पादक शक्ति अधिक होती है। भारत में गोंडवाना युगीन और पूर्वोत्तर के कोयला भंडारों के सभी प्रकार का लगभग 2,0624 खरब टन कोयला है। गोण्डवान युगीन कोयला दक्षिण के पठारी भाग से प्राप्त होता है एवं इसकी आयु 25 करोड़ वर्ष निर्धारित की गयी है। गोंडवाना युग के प्रमुख क्षेत्र झरिया (बिहार) तथा रानीगंज (पश्चिम बंगाल) में स्थित है। अन्य प्रमुख क्षेत्रों में बोकारो, गिरिडीह, करनपुरा, पेंचघाटी, उमरिया, सोहागपुर, सिगरेनी, कोठगुदेम आदि उल्लेखनीय हैं।
- टर्शियर युगीन कोयला
टर्शियर कोयला घटिया श्रेणी का होता है। इसमें गंधक की प्रचुरता होने के कारण यह कतिपय उद्योगों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। टर्शियर युगीन कोयला उत्तर-पूर्वी राज्यों (पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश तथा नागालैण्ड), जम्मू कश्मीर, राजस्थान एवं कुछ मात्रा में तमिलनाडु राज्य में पाया जाता है। इसकी अनुमानित आयु 1.5 से 6.0 करोड़ वर्ष के बीच है। इसके सबसे प्रमुख क्षेत्र हैं- माकूम क्षेत्र (असम), नेवेली (तमिलनाडु, लिन्गाइट कोयले कक लिए प्रसिद्ध) तथा पलाना (राजस्थान)।
उत्पादन
भारत के कुल कोयला उत्पादन का सर्वाधिक भाग गोण्डवाना युगीन चट्टानों में मिलता है, जिसका विस्तार 90650 वर्ग किमी. क्षेत्र पर है। इसका सबसे प्रमुख क्षेत्र पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, तथा उड़ीसा राज्यों में फैला हैं, जहाँ से कुल उत्पादन का 76 प्रतिशत कोयला प्राप्त किया जाता है, जबकि 17 प्रतिशत कोयला मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ तथा 6 प्रतिशत कोयला आन्ध्र प्रदेश में मिलता है। गोण्डवान युगीन कोयला मुख्यतः बिटुमिनस प्रकार का है, जिसका उपयोग कोकिंग कोयला बनाकर देश के लौह- इस्पात के कारखानों में किया जाता है। प्रायद्वीपीय भारत की नदी-घाटियाँ कोयला के प्रमुख प्राप्ति स्थल हैं, जिनमें दामोदर नदी घाटी, सोन-महानदी, ब्राह्नाणी नदी घटी, वर्धा-गोदावरी-इन्द्रावती नदी तथा कोयला-पंच-कान्हन नदी घाटी प्रमुख हैं।
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प्राप्ति स्थान
झारखण्ड राज्य में झारिया, बोकारो, गिरिडीह, रामगढ़, उत्तरी एवं दक्षिणी करनपुरा, औरंगा, हुटार, डाल्टगंज आदि तथा बिहार के ललमटिया आदि क्षेत्रों में उत्तम कोटि का बिटुमिनस कोयला निकाला जाता है। झारिया कोयला क्षेत्र 450 वर्ग किमी. द्वोत्र में विस्तृत है एवं यहाँ से झारखण्ड राज्य का लगभग 50 प्रतिशत कोयला निकाला जाता है। गिरिडीह कोयला क्षेत्र का क्षेत्रफल 2.8 वर्ग किमी हैं। यहां बराकर श्रेणी की शैंलों में कोयला मिलता है। बोकारो क्षेत्र झारिया के पश्चिमी में स्थित है एवं इसका क्षेत्रफल 674 वर्ग किमी है। यहाँ पर 305 मी. की गहराई तक 53 करोड़ टन कोयला होने का अनुमान लगाया गया है। बिहार का करनपुरा क्षेत्र ऊपरी दामोदर घाटी से 3 किमी पश्चिमी में स्थित है और इसका कुल क्षेत्रफल 1,424 वर्ग किमी है। यहाँ मिलने वाली कोयला परतें 20 से 30 मी. मोटी हैं।
पश्चिम बंगाल राज्य का रानीगंज कोयला क्षेत्र ऊपरी दामोदर नदी घाटी में है, जो भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण एवं बड़ा कोयला क्षेत्र है। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 1,500 वर्ग किमी है। इसमें बराकर तथा रानीगंज श्रेणियों का उत्तम कोयला निकाला जाता है। इस क्षेत्र से भारत का लगभग 35 प्रतिशत कोयला प्राप्त होता है। अरुणाचल प्रदेश के नामचिक-नामकुफ क्षेत्र में भी कोयला खान स्थित है।
सोनाघाटी कोयला क्षेत्र का विस्तार मध्य प्रदेश[1] तथा उड़ीसा[2] राज्यों में फैला हैं। यहाँ के तातापानी - रामकोला कोयला क्षेत्र को छत्तीसगढ़ कोयला क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। उड़ीसा का तलचर कोयला ब्राह्नाणी नदी घाटी में फैला है, जहाँ की करहरवाड़ी कोयला परत मशहूर है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की गोदावरी एवं वर्धा नदी घाटियों तथा सतपुड़ा पर्वतीय क्षेत्र में भी कोयले का उत्खनन किया जाता है। 2007-08 के दौरान देश में कुल 4911 लाख टन कोयले का उत्पादन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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