भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
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उद्देश्य | विभिन्न राष्ट्रीय कार्यों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उसके उपयोगों का विकास |
स्थापना | 1969 |
संस्थापक | भारत सरकार |
मुख्यालय | बैंगलोर |
संबंधित लेख | अंतरिक्ष यान, प्रमोचन यान, आर्यभट, भास्कर, रोहिणी, एप्पल, पीएसएलवी, जीएसएलवी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष |
अन्य जानकारी | भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ख़ास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है। |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (अंग्रेज़ी: Indian Space Research Organisation, संक्षेप में 'इसरो') भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक प्रान्त की राजधानी बंगलुरू में है। संस्थान में लगभग 17,000 कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।
स्थापना
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतरिक्ष आयोग' और 'अंतरिक्ष विभाग' के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्त गति प्राप्त हुई। 'इसरो' को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्मक युग था जिस दौरान 'आर्यभट', 'भास्कर', 'रोहिणी' तथा 'एप्पल' जैसे प्रयोगात्मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्मक युग बना जबकि 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं। अंतरिक्ष यान के स्वदेश में ही प्रक्षेपण के लिए भारत का मज़बूत प्रक्षेपण यान कार्यक्रम है। यह अब इतना परिपक्व हो गया है कि प्रक्षेपण की सेवाएं अन्य देशों को भी उपलब्ध कराता है। इसरो की व्यावसायिक शाखा एंट्रिक्स, भारतीय अंतरिक्ष सेवाओं का विपणन विश्व भर में करती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ख़ास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है।
उद्देश्य
- इसरो का उद्देश्य है, विभिन्न राष्ट्रीय कार्यों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उसके उपयोगों का विकास।
- इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियाँ स्थापित की हैं-
- संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम विज्ञानीय सेवाओं के लिए इन्सैट
- और संसाधन मॉनीटरन तथा प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस)।
- इसरो ने इन्सैट और आईआरएस उपग्रहों को अपेक्षित कक्षा में स्थापित करने के लिए पीएसएलवी और जीएसएलवी, दो उपग्रह प्रमोचन यान विकसित किए हैं।
- तदनुसार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो प्रमुख उपग्रह प्रणालियाँ, यथा संचार सेवाओं के लिए भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इन्सैट) और प्राकृतिक संपदा प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन (आईआरएस) का, साथ ही, आईआरएस प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिए ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) और इन्सैट प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिए भूस्थिर उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) का सफलतापूर्वक प्रचालनीकरण किया है।[1]
महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक परीक्षण[2]
साईट
उपग्रह शैक्षणिक दूरदर्शन परीक्षण (साईट) एक मास कम्युनिकेशन या जन संचार परीक्षण था। इसके अंतर्गत देश के छह राज्यों के 2500 गांवों में अमरीकी उपग्रह ए टी एस-6 के इस्तेमाल से शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार नियोजन आदि विषयों पर ग्रामीण लोगों को टेलीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से जागरुक बनाया गया। यह परीक्षण 1 जुलाई 1975 से 31 जुलाई 1976 तक चला।
स्टेप परीक्षण
1977-79 में उपग्रह दूरसंचार परीक्षण परियोजना के दौरान फ़्रांस और जर्मनी के उपग्रह सिम्फोनी का प्रयोग किया गया। इसके माध्यम से संचार के क्षेत्र के कई महत्त्वपूर्ण परीक्षण पूरे किए गए। स्टेप परीक्षण ने घरेलू दूरसंचार के लिए एक भू स्थिर उपग्रह तंत्र के प्रचालन का मौक़ा दिया। इससे भू इन्फ्रास्ट्रक्चर के डिजाइन में मदद मिली।
एप्पल
इसका पूरा नाम एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट था। यह भारत में निर्मित पहला संचार उपग्रह था। यह प्रायोगिक संचार उपग्रह था, जिसमें केवल सी-बैंड ट्रांसपांडर थे। इसकी लॉन्चिंग 19 जून 1981 को यूरोपीय अंतरिक्ष संस्था के एरियन राकेट से की गई। यह एक बेलनाकार उपग्रह था। इसका वजन 350 किलोग्राम था। इस उपग्रह के इस्तेमाल से टेलीविजन कार्यक्रमों के प्रेषण और रेडियो नेटवर्किंग जैसे संचार परीक्षण किए गए।
आर्यभट उपग्रह
भारत का पहला उपग्रह था। इसका नामकरण भारत के प्राचीन गणितज्ञ आर्यभट के नाम पर किया गया। इसे 19 अप्रॅल 1975 को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से लॉन्च किया गया। इस उपग्रह का निर्माण एक्स रे खगोलिकी वायुगतिकी और सौर भौतिकी पर परीक्षण करने के लिए किया गया था।
भास्कर उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भास्कर-1 और भास्कर-2 का निर्माण किया गया। ये देश के पहले निम्न भू कक्षा प्रेक्षण उपग्रह थे। दोनों उपग्रहों को रूस के लॉन्चिंग स्टेशन कपूस्टिन यार से छोड़ा गया। इन्हें क्रमश: 7 जून 1979 और 20 नवंबर 1981 को छोड़ा गया था। दोनों उपग्रहों ने समुद्र विज्ञान, जल विज्ञान आदि से जुड़े कई आंकड़े इकट्ठे किए।
रोहिणी उपग्रह
यह एक उपग्रह श्रृंखला का नाम है। इसकी लॉन्चिंग इसरो ने ही की थी। रोहिणी प्रथम का इस्तेमाल लॉन्चिंग यान एसएलवी-3 के निष्पादन के मापन के लिए किया गया था। रोहिणी-2 और रोहिणी-3 उपग्रहों में लैंड मार्क संवेदक नीतभार लगाए गए थे।
इसरो के प्रमुख केंद्र[2]
- जोधपुर- पश्चिमी आरआरएसएससी
- उदयपुर- सौर वेधशाला
- भोपाल- इनसैट मुख्य नियंत्रण सुविधा
- अहमदाबाद- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, विकास और शैक्षिक संचार यूनिट
- बैंगलोर- अंतरिक्ष आयोग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो मुख्यालय, इनसेट कार्यक्रम कार्यालय, सिविल इंजीनियरिंग प्रभाग, अंतरिक्ष कारपोरेशन, इसरो उपग्रह केंद्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, इस्टैरक, दक्षिणी आरआरएसएससी, एनएनआरएमएस सचिवालय
- हासन- इनसैट मुख्य नियंत्रण सुविधा
- अलुवा- अमोनियम प्रक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
- तिरुवनंतपुरम- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, द्रव नोदन प्रणाली केंद्र, इसरो जड़त्वीय प्रणाली केंद्र
- देहरादून- भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान, उत्तरी आरआरएसएससी
- नई दिल्ली- अंतरिक्ष विभाग शाखा सचिवालय, इसरो शाखा कार्यालय, दिल्ली पृथ्वी स्टेशन
- लखनऊ- इस्ट्रैक भू-केंद्र
- खड़गपुर- पूर्वी आरआरएसएससी
- नागपुर- मध्य आरआरएसएससी
- हैदराबाद- राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी
- तिरुपति- एनएमएसटी रडार सुविधा
- श्रीहरिकोटा- सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार केंद्र
- महेंद्रगिरि- द्रव नोदन जांच सुविधा केंद्र
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रणेता[2]
- डॉ. विक्रम साराभाई- 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्मे विक्रम इसरो के पहले चैयरमेन थे।
- डॉ. सतीश धवन- वे 1972 में इसरो के चेयरमैन बने। लंबे कार्यकाल के दौरान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों ने लंबी छलांग लगाई।
- प्रो. यू. आर. राव- अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इसरो के भूतपूर्व चेयरमैन। आर्यभट, एप्पल, इनसैट और आईआरएस तंत्र के विकास में अहम भूमिका।
- डॉ. के. कस्तूरीरंगन- इसरो के भूतपूर्व चेयरमैन जिन्होंने 9 साल तक अंतरिक्ष कार्यक्रम को संभाला।
- जी माधवन नायर- इसरो के वर्तमान में चेयरमैन। वे राकेट तंत्रों के क्षेत्र में मशहूर तकनीकी विशेषज्ञ हैं।
प्रमुख उपलब्धियाँ
- वर्ष 2005-06 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे प्रमुख उपलब्धि 'पीएसएलवीसी 6' का सफल प्रक्षेपण रही है।
- 5 मई, 2005 को 'पोलर उपग्रह प्रक्षेपण यान' (पीएसएलवी-एफसी 6) की नौवीं उड़ान ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सफलतापूर्वक दो उपग्रहों - 1560 कि.ग्रा. के कार्टोस्टार-1 तथा 42 कि.ग्रा. के हेमसेट को पूर्व-निर्धारित पोलर सन सिन्क्रोनन आर्बिट (एसएसओ) में पहुंचाया। लगातार सातवीं प्रक्षेपण सफलता के बाद पीएसएलवी-सी 6 की सफलता ने पीएसएलवी की विश्वसनीयता को आगे बढ़ाया तथा 600 कि.मी. ऊंचे पोलर एसएसओ में 1600 कि.ग्रा. भार तक के नीतभार को रखने की क्षमता को दर्शाया है।
- 22 दिसंबर, 2005 को इन्सेट-4ए का सफल प्रक्षेपण, जो कि भारत द्वारा अब तक बनाए गए सभी उपग्रहों में सबसे भारी तथा शक्तिशाली है, वर्ष 2005-06 की अन्य बड़ी उपलब्धि थी। इन्सेट-4ए डाररेक्ट-टू-होम (डीटीएच) टेलीविजन प्रसारण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।
- इसके अतिरिक्त, नौ ग्रामीण संसाधन केंद्रों (वीआरसीज) के दूसरे समूह की स्थापना करना अंतरिक्ष विभाग की वर्ष के दौरान महत्वपूर्ण मौजूदा पहल है। वीआरसी की धारणा ग्रामीण समुदायों की बदलती तथा महत्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष व्यवस्थाओं तथा अन्य आईटी औजारों से निकलने वाली विभिन्न प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए संचार साधनों तथा भूमि अवलोकन उपग्रहों की क्षमताओं को संघटित करती है।
समाचार
इसरो ने लॉन्च किया जीसेट-6A सैटेलाइट
- 29 मार्च, 2018 गुरुवार
भारत का दमदार संचार सैटलाइट जीसैट 6-A श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से 29 मार्च, 2018 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और भारतीय सेनाओं को सशक्त बनाने की दिशा में एक और मील का पत्थर साबित होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो की इस सफल लॉन्चिंग के लिए उसे बधाई भी दी है। इस सेटेलाइट का वजन 2,140 किलोग्राम है। यह श्रीहरिकोटा के सेकंड स्टेशन से लॉन्च किया गया और 17 मिनट में अपनी कक्षा में प्रवेश कर लेगा। इस सेटेलाइट की सबसे बड़ी खासियत मल्टी बीम कवरेज सुविधा है। इसके जरिये भारत को नेटवर्क मैनेजमेंट तकनीक में मदद मिलेगी। यही नहीं, इसमें एस-बैंड कम्युनिकेशन लिंक के लिए 6 मीटर व्यास का एक एंटीना भी है। प्रक्षेपण यान जीएसलवी की 12वीं उड़ान है। रॉकेट की लंबाई 49.1 मीटर है। भारत सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट की दुनिया में नई क्रांति लाने की तैयारी कर रहा है। जीसैट-6ए सैटेलाइट उसी कड़ी का एक हिस्सा है। इसरो इस समय देश का सबसे वजनी कम्युनिकेशन सैटेलाइट जीसैट-11 पर काम कर रहा है। इसका वजन 5.6 टन है। हालांकि, भारत के पास चार टन से ज्यादा वजनी सैटेलाइट भेजने की क्षमता रखने वाले रॉकेट नहीं हैं। भारत इसे साउथ अमेरिकी आइलैंड फ्रेंच गुयाना से एरियन-5 रॉकेट के जरिए लॉन्च करेगा। सैटेलाइट की कामयाब लॉन्चिंग से भारत के पास खुद का सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट होगा। सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट से हाई स्पीड कनेक्टिविटी बढ़ जाएगी।
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इसरो ने लॉन्च किया 100वाँ उपग्रह, एक साथ भेजे 31 सैटेलाइट्स
- 12 जनवरी, 2018 शुक्रवार
भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 12 जनवरी, 2018 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-40 सी के जरिये पृथ्वी अवलोकन उपग्रह कार्टोसैट-2 सहित 31 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया। इसरो ने बताया कि पीएसएलवी-सी40 ने कार्टोसैट-2 श्रृंखला उपग्रह को सूर्य स्थैतिक कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया है। पीएसएलवी-सी40 रॉकेट का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सुबह 9:28 पर अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपण किया गया जो बादलों से भरे आसमान को चीरता हुआ अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया। 31 अगस्त, 2017 को इसी तरह के राकेट से नौवहन उपग्रह आई.आर.एन.एस.एस.1-एच लांच किया गया था, लेकिन हीट शील्ड न खुलने की वजह से सैटेलाइट राकेट के चौथे चरण में असफल हो गया था। पीएसएलवी-सी40 वर्ष 2018 की पहली अंतरिक्ष सफल परियोजना है। सैटेलाइट केन्द्र निदेशक एम. अन्नादुरई ने बताया कि माइक्रो उपग्रह अंतरिक्ष में भारत का 100वां उपग्रह है। अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इंजीनियरों ने गुरुवार को राकेट के निचले, मध्य और ऊपरी हिस्से की तेल की टंकी में द्रव्य और ठोस ईंधन गुरुवार को ही भरना शुरू कर दिया था। बता दें कि 15 फरवरी 2017 को एक साथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर ISRO ने ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे अब तक कोई दोहरा नहीं सका है।
इस रॉकेट के जरिए कार्टोसैट-2 के साथ 28 अंतर्राष्ट्रीय सह-यात्री उपग्रहों में से 19 अमेरिका, पांच दक्षिण कोरिया और एक-एक कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन और फिनलैंड के हैं। इसके साथ ही दो अन्य भारतीय उपग्रह-पांच किलो वजनी नैनो अंतरिक्ष यान और लगभग 100 किलो वजनी सूक्ष्म उपग्रह शामिल हैं। सभी 31 उपग्रहों का वजह 1323 किलोग्राम है। इसरो ने इतिहास रचते हुए अपना 100वाँ सैटेलाइट लॉन्च कर दिया है। पीएसएलवी श्रृंखला के सैटेलाइट का नाम कार्टोसैट-2, है। इस सैटलाइन को 'आई इन द स्काइ' के नाम से भी जाना जा रहा है, क्योंकि ये अतंरिक्ष से तस्वीरें लेने के लिए ही बनाया गया है। खास बात है कि ये पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर पैनी नजर बनाए रखेगा। सैटेलाइट की सफल लॉन्चिंग पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसरो को बधाई दी है। प्रधानमंत्री ने इस नए साल का तोहफा करार देते हुए कहा कि तकनीकी में ये बदलाव देश के नागरिकों, किसानों और मछुआरों की मदद में सहयोगी देगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी 40 के साथ एक साथ 31 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे हैं। भारत के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि पिछले साल अगस्त में पीएसएलवी-सी 39 का मिशन फेल हो गया था। इसके बाद प्रक्षेपण यान पीएसएलवी को फिर से तैयार किया गया। कोई रॉकेट फेल हो जाए तो उसे मरम्मत करके दोबारा नया जैसा बनाकर लांचिंग पैड पर उतारना बहुत बड़ी बात है। ये भारत का 'वर्कहॉर्स रॉकेट' है जिसके फेल होने से भारत की दिक्कतें बहुत बढ़ जाती हैं।
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इसरो ने सफलतापूर्वक लॉन्च किया साउथ एशिया सैटेलाइट
- 5 मई, 2017 शुक्रवार
करीब 450 करोड़ की लागत से बने उपग्रह (जीसैट-9) को 5 मई, 2017 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने लॉन्च किया। इससे उपग्रह से सार्क देशों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलेगा लेकिन पाकिस्तान इससे बाहर है। इसका उपग्रह को चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दक्षिण एशियाई उपग्रह का सफल प्रक्षेपण ऐतिहासिक क्षण, इससे संबंधों के नए आयाम की शुरुआत होगी। जीसैट-9 को भारत की ओर से उसके दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के लिए उपहार माना जा रहा है। इस उपग्रह को इसरो का रॉकेट जीएसएलवी-एफ09 लेकर जाएगा। इसरो के अध्यक्ष ए.एस किरण कुमार ने गुरुवार को बताया था कि इससे आठ सार्क देशों में से सात भारत, श्रीलंका, भूटान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव परियोजना का हिस्सा हैं। पाकिस्तान ने यह कहते हुए इससे बाहर रहने का फैसला किया कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है। बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने कहा, ' इस लॉन्च से हमारे आपसी रिश्ते मजबूत होंगे। इससे लोगों को आपस में जोड़ा जा सकेगा। लैंड, वॉटर और स्पेस में हमारा आपसी सहयोग बढ़ेगा।' भूटान के पीएम शेरिंग तोबगे ने कहा, 'दक्षिण एशिया उपग्रह लॉन्च ऐतिहासिक पल है। यह दुनिया के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि है। भारत को इसके लिए बधाई। आपसी सहयोग के लिए यह बड़ा कदम है। सैटलाइट बेस्ट संचार अब ज़रूरी हो गया है। हमारे क्षेत्र के लिए यह बेहतर होगा। यह भूटान जैसे देश के लिए काफ़ी अहम होगा।' मालदीव के राष्ट्रपति यमीन अब्दुल गयूम ने कहा, 'दक्षिण एशिया में यह 'सबका साथ सबका विकास' है। यह सैटलाइट इस क्षेत्र के लिए काफ़ी अहम होगा। यह पीएम मोदी का शानदार विजन है। इससे क्षेत्र के जनता के बीच सहयोग बढ़ेगा।' नेपाल के पीएम पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने इस शानदार लॉन्चिंग के लिए भारत को बधाई दी। उन्होंने कहा, 'यह क्षेत्र के विकास और टेलिमेडिसिन और आपदा प्रबंधन के लिए बेहतर होगा। संचार सेवा के लिए भी यह उपग्रह बेहतरीन होगा।' श्रीलंका के राष्ट्रपति एम. सिरीसेना ने भी कहा, 'यह लॉन्च सभी सार्क देशों के लिए फायदेमंद होगा। शिक्षा, पर्यावरण, मौसम अनुमान के लिए लाभदायक होगा। यह क्षेत्र के लोगों को अच्छा जीवन देगा।'
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इसरो ने एक साथ रिकार्ड 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रचा
- 15 फ़रवरी, 2017 बुधवार
अंतरिक्ष में भारत ने 15 फ़रवरी, 2017 बुधवार को एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी ने श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केन्द्र से एक एकल मिशन में रिकार्ड 104 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यहां से क़रीब 125 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा से एक ही प्रक्षेपास्त्र के जरिये रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक किया गया। भारत ने एक रॉकेट से 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर इस तरह का इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है। प्रक्षेपण के कुछ देर बाद पीएसएलवी-सी37 ने भारत के काटरेसैट-2 श्रृंखला के पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह और दो अन्य उपग्रहों तथा 103 नैनो उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सफल अभियान को लेकर इसरो को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि पूरे देश के लिए यह गौरव का क्षण है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के प्रमुख एएस किरण कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण पर इसरो दल को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने एक ही रॉकेट के जरिए 104 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के लिए वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि इस अहम उपलब्धि ने भारत को गौरवांवित किया है।
3 स्वदेशी एवं 101 विदेशी उपग्रह
प्रक्षेपण के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में रॉकेट से उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। रूसी अंतरिक्ष एजेंसी की ओर से एक बार में 37 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण की तुलना में भारत एक बार में 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने में सफलता हासिल कर इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है। भारत ने इससे पहले जून 2015 में एक बार में 23 उपग्रहों को प्रक्षेपण किया था। यह उसका दूसरा सफल प्रयास है। पीएसएलवी पहले 714 किलोग्राम वजनी काटरेसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह का पृथ्वी पर निगरानी के लिए प्रक्षेपण करेगा और उसके बाद 103 सहयोगी उपग्रहों को पृथ्वी से करीब 520 किलोमीटर दूर ध्रुवीय सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में प्रविष्ट कराएगा जिनका अंतरिक्ष में कुल वजन 664 किलोग्राम है। इन 104 उपग्रहों में भारत के तीन और विदेशों के 101 सैटेलाइट शामिल है। इसरो के वैज्ञानिकों ने एक्सएल वैरियंट का इस्तेमाल किया है जो सबसे शक्तिशाली रॉकेट है और इसका इस्तेमाल महत्वाकांक्षी चंद्रयान में और मंगल मिशन में किया जा चुका है। इनमें 96 उपग्रह अमेरिका के, पांच क्रमश: इसरो के अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों- इजरायल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात के हैं।
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इसरो ने अंतरिक्ष में रचा इतिहास, लॉन्च किए 20 उपग्रह
- बुधवार, 22 जून, 2016
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 22 जून, 2016 को एक साथ 20 उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में स्थापित करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। इससे पहले 2008 में उसने एक साथ 10 उपग्रह लॉन्च किए थे, जो उसका अब तक का रेकॉर्ड था। संख्या के अलावा जो एक और बात इस उपलब्धि को खास बनाती है, वह है मल्टी पॉइंट डिलिवरी। इससे पहले इसरो ने जब एकाधिक उपग्रह लॉन्च किए तो वे एक ही ऊंचाई पर छोड़े गए थे। यानी वे एक-दूसरे से पर्याप्त दूरी रखते हुए कमोबेश एक जैसी ही ऑरबिट में घूमते थे। यह पहला मौका है जब इसरो ने पीएसएलवी-C34 के जरिए उपग्रहों को अलग-अलग ऊंचाई पर छोड़ा है। जो 20 उपग्रह छोड़े गए हैं उनमें 17 कमर्शियल हैं।
17 सैटेलाइट विदेशी, तीन स्वदेशी
पीएसएलवी-C34 की लॉन्चिंग सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से श्रीहरिकोटा में की गई। भारतीय समय के अनुसार पीएसएलवी C-34 की लॉन्चिंग 22 जून को सुबह 9 बजकर 26 मिनट पर की गई। पीएसएलवी सी-34 के 20 सैटेलाइटों में से 17 कमर्शियल सैटेलाइट हैं। यानी 17 सैटेलाइट दूसरे देशों के हैं जिन्हें भेजने के लिए इसरो ने उन देशों से फीस ली है। इसके अलावा दो सैटेलाइट देश के दो शिक्षा संस्थानों के हैं। इस लॉन्चिंग में एक सैटेलाइट कॉर्टोसैट 2 सीरीज का इसरो का अपना है। इन 20 उपग्रहों का कुल वज़न 1288 किलोग्राम था, लेकिन उनमें अकेले कार्टोसैट-2 सीरीज उपग्रह का वजन ही 727.5 किलोग्राम है। यह उपग्रह देश में हो रहे वानस्पतिक या भूगर्भीय बदलावों पर बारीकी से नज़र रख सकेगा। मिशन को खास बनाने वाली एक और अहम बात यह है कि बाकी दो सैटलाइट चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी और पुणे के कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग के छात्रों ने तैयार किए हैं।
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- सोमवार, 23 मई, 2016
भारत की अंतरिक्ष में बड़ी कामयाबी, लॉन्च किया स्वदेशी स्पेस शटल
भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (ISRO) सोमवार 23 मई, 2016 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से पूरी तरह से भारत में बने स्पेस शटल RLV-TD को लॉन्च किया। इसे भारत का अपना खुद का स्पेस शटल है। अमेरिकी स्पेस शटल जैसा दिखने वाला ये शटल फिलहाल प्रयोग की स्थिति में है और अपने असली साइज से 6 गुना छोटा है। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के डायरेक्टर के सिवन के अनुसार, ‘RLV-TD का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह पहुंचाना और फिर वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करना है। शटल को एक ठोस रॉकेट मोटर से ले जाया जाएगा। नौ मीटर लंबे रॉकेट का वजन 11 टन है।' इस परीक्षण के बाद इसको पूरी तरह से तैयार होने में करीब दस वर्ष तक का समय लग जाएगा। ISRO के वैज्ञानिकों के अनुसार, यह लागत कम करने, विश्वसनीयता कायम रखने और मांग के अनुरूप अंतरिक्ष में पहुंच बनाने के लिए एक साझा हल है। यह पहली बार है, जब इसरो ने पंखों से युक्त किसी यान का प्रक्षेपण किया है। यह यान बंगाल की खाड़ी में तट से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर उतरा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीट कर वैज्ञानिकों को इसके लिए बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा भारत के पहले स्वदेशी अंतरिक्ष शटल RLV-टीडी की लॉन्चिंग हमारे वैज्ञानिकों के मेहनती प्रयासों का परिणाम है। गतिशीलता और समर्पण के साथ जो हमारे वैज्ञानिकों और इसरो ने पिछले कुछ सालों में काम किया है, वह असाधारण और बहुत ही प्रेरणादायक है।
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सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण
- गुरुवार, 18 दिसम्बर, 2014
'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके 3 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया है। इसरो ने इससे पहले 24 सितंबर, 2014 को मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया था। जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन लगाया गया है। इसकी ऊंचाई 43.43 मीटर है। इस यान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन ठोस, द्रव और क्रायोजनिक का इस्तेमाल किया गया है। जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के निर्माण पर कुल 140 करोड़ रुपये की लागत आई है। क्रू माड्यूल के निर्माण पर 15 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। इस सबसे भारी रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले 3.65 टन वजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। यह माड्यूल को रॉकेट में लगाया गया था। इसे पैराशूट के जरिए बंगाल की खाड़ी में सफलतापूर्वक उतारा गया है। इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो निदेशक के. राधाकृष्णन ने दी। इस मौके पर इसरो के पूर्व निदेशक डॉ. कस्तूरीरंगन भी मौज़ूद थे। जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्देश्य इनसेट-4 जैसे भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है। इस सफलता के बाद भारत इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम हो गया है। इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह का वजन 4500-5000 किलोग्राम तक होता है। इस श्रेणी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत अब तक दूसरे देशों पर निर्भर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाज़ार में भी अपनी दावेदारी मज़बूत करेगा और दूसरे देशों के इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगा।
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मंगलयान सफल, भारत ने इतिहास रचा
- 24 सितम्बर, 2014, बुधवार
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो का उपग्रह मंगलयान मंगल ग्रह की अंडाकार कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर चुका है। ये भारत के अंतरिक्ष शोध में एक कालजयी घटना है। इस अभियान की कामयाबी से भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया। भारत ने लिक्विड मोटर इंजन की तकनीक से मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित किया। आमतौर पर चांद तक पहुंचने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इतने लंबे मिशन पर भारत से पहले किसी ने लिक्विड मोटर इंजन का इस्तेमाल नहीं किया था। एक ओर मंगल मिशन इतिहास के पन्नों पर स्वयं को सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा रहा था वहीं दूसरी ओर यहां स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कमांड केंद्र में अंतिम पल बेहद व्याकुलता भरे थे। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के साथ मंगल मिशन की सफलता के साक्षी बने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, "विषमताएं हमारे साथ रहीं और मंगल के 51 मिशनों में से 21 मिशन ही सफल हुए हैं, लेकिन हम सफल रहे।" खुशी से फूले नहीं समा रहे प्रधानमंत्री ने इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन की पीठ थपथपाई और अंतरिक्ष की यह अहम उपलब्धि हासिल कर इतिहास रचने के लिए भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को बधाई दी। भारत के मंगल अभियान का निर्णायक चरण 24 सितंबर को सुबह यान को धीमा करने के साथ ही शुरू हो गया था। इस मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी, जिस दौरान यान में मौजूद इंजन को चालू किया गया। मंगलयान की गति धीमी करनी थी ताकि ये मंगल की कक्षा में गुरुत्वाकर्षण से खुद-बखुद खिंचा चला जाए और वहां स्थापित हो जाए। इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर, 2013 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर, 2013 को पृथ्वी के गुरूत्वाकषर्ण से बाहर निकल गया था। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान 'नासा' का मंगलयान 'मावेन' 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। भारत के एम.ओ.एम. की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। भारत ने इस मिशन पर क़रीब 450 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, जो बाकी देशों के अभियानों की तुलना में सबसे ज़्यादा क़िफ़ायती है।
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भारत का मंगलयान पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा
- 5 नवम्बर, 2013, मंगलवार
भारत ने अपने पहले मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान (एमओएम) के लिए ध्रुवीय रॉकेट को 5 नवम्बर, 2013 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इतिहास रच दिया। चंद्रमा पर भेजे यान के बाद यह भारत का सबसे महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियान है। पूर्वी तट के क़रीब श्रीहरिकोटा द्वीप से रॉकेट ने सीधे आकाश की ओर उड़ान भरी और 44 मिनट बाद रॉकेट से अलग हो कर उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में आ गया। यात्रा का पहला चरण सफल रहा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस कार्यक्रम के सीधे प्रसारण का भी इंतजाम किया था जिसके जरिए भारत के इस ऐतिहासिक पल को लाखों लोगों ने टीवी पर देखा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी25 का यह ऐतिहासिक प्रक्षेपण अपराह्न दो बजकर 38 मिनट पर चेन्नई से क़रीब 100 किलोमीटर दूर यहां स्पेसपोर्ट से किया गया। इसरो के निदेशक डॉ. राधाकृष्णन ने कहा, "मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि यह पीएसएलवी की 25वीं उड़ान है। मैं समस्त इसरो परिवार को बधाई देता हूँ, जिन्होंने बेहद कम वक़्त में यह मुमकिन कर दिखाया।" लगभग 450 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के तहत भारत ने मंगल ग्रह के लिए अपना पहला यान श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया। मंगलवार को इसे छोड़े जाने के बाद से इसका नियंत्रण बैंगलोर में इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने हाथों में ले लिया है। इस मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा छोड़ने से पहले पांच चक्कर लगाने हैं, जिसके बाद यह 1 दिसंबर को सूर्य की परिधि में प्रवेश कर जाएगा। वहां से लगभग नौ महीने बाद यह यान मंगल ग्रह तक की अपनी यात्रा पूरी कर पाएगा। श्रीहरिकोटा से मंगल मिशन की तस्वीरें देश के अंतरिक्ष अभियान के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां कर रही हैं। पीएसएलवी सी25 (PSLV C-25) 'मार्स ऑर्बिटर' नाम के उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गया है। इस कामयाबी के साथ ही भारत अंतरिक्ष में नई इबारत लिखने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है।
- उद्देश्य
इसरो का मकसद है कि इस मिशन के ज़रिए दूसरे ग्रहों की पड़ताल की घरेलू तकनीक विकसित की जाए। मंगलयान के सितंबर 2014 तक मंगल ग्रह पर पहुंचने की उम्मीद है। इसके बाद पंद्रह किलो वज़न का एक ऑर्बिटर मंगल के वातावरण में लॉन्च होगा। ऑर्बिटर पर लगे सेंसर मंगल ग्रह की मिट्टी और खनिजों और वहां मौजूद गैसों की जांच करेंगे।
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पीएसएलवी ने तीन उपग्रहों को किया अंतरिक्ष में स्थापित
- बुधवार, 20 अप्रॅल, 2011
अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भारतीय वैज्ञानिकों ने फिर कामयाबी का परचम लहराया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) के उपग्रह प्रक्षेपण यान 'पीएसएलवी' ने 20 अप्रॅल, 2011 बुधवार को तीन उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया। गत वर्ष दिसंबर में जीएसएलवी के प्रक्षेपण में मिली दो लगातार विफलताओं के बाद इसरो की यह कामयाबी बेहद अहम है। पीएसएलवी का यह 18वां मिशन था। इससे पहले पीएसएलवी के ज़रिये किये गये 17 प्रक्षेपणों में से लगातार 16 मिशन में सफलता हासिल हुई थी, जिससे इसकी विश्वसनीयता का पता चलता है। पीएसएलवी ने सफलता के क्रम को बनाये रखते हुए आज 17वें प्रक्षेपण को भी सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
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- प्रेसनोट डॉट इन
- इस्पात टाइम्स
- प्रात:काल राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक
- मेरी खबर डॉट कॉम
- वेब दुनिया हिन्दी
- पत्रिका डॉट कॉम
पीएसएलवी-17 का सफल प्रक्षेपण
- शुक्रवार, 15 जुलाई, 2011
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्रवार, 15 जुलाई, 2011 को पीएसएलवी सी-17 के जरिए जीसैट-12 ए का श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण किया। इसरो ने इसे भारतीय समयानुसार शाम 4.48 बजे प्रक्षेपित किया, जो अपने निर्धारित समय में धरती की कक्षा में स्थापित हो गया। जीसैट-12 संचार सेटेलाइट का वज़न 1410 किलोग्राम है और इसका जीवन काल आठ सालों का होगा। समाचार एजेंसी के मुताबिक़ इसरो के प्रकाशन और जनसम्पर्क निदेशक एस. सतीश ने पहले ही इस बात की संभावना जताई थी कि प्रक्षेपण में कोई समस्या नहीं आएगी। यह उपग्रह संचार के क्षेत्र में काफ़ी महत्त्वपूर्ण साबित होगा। इससे दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा और ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसरो के बारे में (हिन्दी) (ए.एस.पी) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2012।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 अंतरिक्ष कार्यक्रम और भारत (हिन्दी) (ए.एस.पी) विस्फ़ोट डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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