मेष संक्रान्ति
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विवरण | 'मेष संक्रांति' को 'मेष संक्रमण' भी कहा जाता है। यह सौर चक्र वर्ष के पहले दिन को संदर्भित करता है। |
देश | भारत |
धर्म | हिन्दू धर्म |
तिथि | 14 अप्रॅल या 15 अप्रॅल |
देव | सूर्य |
अन्य जानकारी | मेष संक्रान्ति को पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में 'पाना संक्रांति' और एक दिन बाद मेष संक्रांति, बंगाल में 'पोहेला बोइशाख' आदि नामों से मनाया जाता है। |
मेष संक्रान्ति (अंग्रेज़ी: Mesha Sankranti) को पारंपरिक हिंदू सौर कैलेंडर में नए साल की शुरुआत के तौर पर माना जाता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह आमतौर पर 14 अप्रॅल या 15 अप्रॅल को मनाई जाती है। इस दिन को भारत के कई राज्यों में त्योहार के रूप में मनाते हैं। जैसे- पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में 'पाना संक्रांति' और एक दिन बाद मेष संक्रांति, बंगाल में 'पोहेला बोइशाख' आदि जैसे प्रचलित नामों से।
वैदिक ज्योतिषानुसार
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मेष संक्रांति के पहले दिन से सौर कैलेंडर के नववर्ष का प्रारंभ होता है। भारत के विभिन्न सौर कैलेंडरों जैसे ओड़िया कैलेंडर, तमिल कैलेंडर, मलयालम कैलेंडर और बंगाली कैलेंडर में मेष संक्रांति के पहले दिन को नववर्ष का पहला दिन माना जाता है। ओड़िशा में हिन्दू अर्धरात्रि से पहले मेष संक्रांति होती है तो संक्रांति के पहले दिन को ही नववर्ष के पहले दिन के रूप में मनाते हैं। मेष संक्रांति 'पणा संक्रांति' के रूप में मनाते हैं।
नाम
मेष संक्रांति को तमिलनाडु में 'पुथांडु', केरल में 'विशु', बंगाल में 'नबा बर्ष' या 'पोहला बोइशाख' असम में 'बिहु' और पंजाब में 'वैशाखी' के नाम से मनाया जाता है।
सौर कैलेंडर
सौर कैलेंडर का प्रारंभ मेष संक्रांति से होता है। सूर्य जब मीन राशि में प्रवेश करता है तो मीन संक्रांति होती है, वह सौर कैलेंडर का अंतिम मास होता है। सौर कैलेंडर में 12 मास होते हैं। इसे आप 12 राशि के नाम से जानते हैं। सौर मास के 12 नाम इस प्रकार हैं-
- मेष
- वृषभ
- मिथुन
- कर्क
- सिंह
- कन्या
- तुला
- वृश्चिक
- धनु
- कुंभ
- मकर
- मीन
सूर्य पूजा
मेष संक्रांति में सूर्य देव की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इस दिन स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य दें और गायत्री मंत्र का जाप करें। इसके बाद ब्राह्मण को दान-दक्षिणा भी दें। इस दिन गेहूं, गुड़ और चांदी की वस्तु दान करना शुभकारी होता है। मेष संक्रांति को स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहनें। ताबें के पात्र या लोटे में जल, अक्षत्, लाल पुष्प रखकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। सूर्य देव की स्तुति करने से सभी प्रकार की तरक्की होती है। यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
महत्त्व
हिंदू धर्म में मेष संक्रांति का काफी महत्व है। दरअसल, इस दिन से खरमास का समापन माना जाता है और शुभ कार्यों जैसे शादी विवाह, गृह प्रवेश और घर खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त कि शुरुआत मानी जाती है।
सत्तू संक्रांति
सत्तू संक्रांति के दिन घर में खाना ना बनाने कि प्रथा है। इस दिन घर के सभी सदस्य सत्तू का सेवन करते हैं। इस दिन सत्तू का दान भी किया जाता है। दरअसल, सौर कैलेंडर के अनुसार, सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ गर्मी के मौसम कि शुरुआत मानी जाती है। यही वजह है कि लोग ऐसा आहार लेते हैं जो शीतलता दे और सुपाच्य भी हो। इस दिन जल, मिट्टी के घड़े, स्नान, तिलों द्वारा पितरों का तर्पण तथा कृष्ण भगवान की पूजा अर्चना का भी विशेष महत्व है।
सत्यनारायण की पूजा
इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा अर्चना भी की जाती है और उन्हें सत्तू का भोग लगाया जाता है। इस भोग को प्रसाद के रूप में घर के सदस्यों को दे सकते हैं। इस दिन कई लोग सत्तू का शर्बत भी बनाकर पीते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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