मोती मस्जिद | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मोती मस्जिद (बहुविकल्पी) |
मोती मस्जिद, आगरा
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राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | आगरा |
निर्माता | मुग़ल बादशाह शाहजहाँ |
निर्माण काल | 16वीं शताब्दी (मध्य काल) |
स्थापना | आगरा क़िले के अन्दर |
प्रसिद्धि | ऐतिहासिक मुग़ल इमारत |
कब जाएँ | कभी भी |
आगरा (घरेलू हवाईअड्डा) | |
आगरा कैंट | |
बिजलीघर व ट्रान्सपोर्ट नगर | |
सभी उपलब्ध | |
संबंधित लेख | आगरा, ताज महल, मुग़ल वंश, शाहजहाँ, मुग़ल साम्राज्य
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अन्य जानकारी | दुनिया में स्थित सभी मस्जिदों के मंच में तीन सीढ़ियां होती हैं, लेकिन आगरा की मोती मस्जिद एकमात्र ऐसी मस्जिद है जिसमें चार सीढ़ियां हैं। |
मोती मस्जिद (अंग्रेज़ी: Moti Masjid) मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा निर्मित भव्य रचनाओं में से एक है जो कि भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा में स्थित है। इस मस्जिद का नाम इसकी रचना की वजह से पड़ा, क्यूंकि यह एक बड़े मोती की तरह चमकती है। प्रसिद्ध मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के युग को भारतीय इतिहास में कला और वास्तुकला का स्वर्णिम काल कहा जाता है। उनके शासनकाल के दौरान बहुत-सी अद्भुत इमारतों का निर्माण हुआ। उन्होंने ताज महल, आगरा क़िला, लाल क़िला (दिल्ली) और जामा मस्जिद (दिल्ली) जैसे विश्व प्रसिद्ध स्मारकों का निर्माण करवाया था। आगरा की मोती मस्जिद को 'Pearl Mosque' की उपाधि दी गयी है।
इतिहास
मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा मोती मस्जिद का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था। ऐसा माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण सम्राट ने अपने शाही दरबार के सदस्यों के लिए करवाया था। सफेद संगमरमर से बेहद कलात्मक रूप से बनी यह मस्जिद देखने में बहुत ही भव्य लगती है, जिस कारण हर साल हजारों की संख्या में आगरा आने वाले पर्यटक इस मस्जिद को देखे बगैर नहीं जाते हैं।[1]
रोचक तथ्य
- इस भव्य मस्जिद को बनाने में 6 साल का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य लगभग 1648 ई. में आरम्भ हुआ और 1654 ई. में पूरा हुआ था।
- मस्जिद के निर्माण के लिए शुद्ध सफेद पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था, जिसके कारण यह मोती के समान चमकदार सफेद मख़मली दिखाई पड़ती है।
- मोती मस्जिद में 7 खण्ड है, जिनको खंडदार मेहराब और खम्बों ने सहारा दे रखा है, आगे प्रत्येक को फिर से तीन गलियारों में विभाजित किया गया है।
- छत पर 3 गुंबद बने हैं, जिन्हें सफेद संगमरमर से बनाया गया हैं। गुम्बद की दीवारों को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है।
- मस्जिद के बायीं तरफ दीवान-ऐ-आम स्थित है, यह वे स्थान है जहां पर सम्राट अपनी प्रजा से भेंट करने के लिए दरबार को आयोजित करते थे।
- फर्श का ढलान पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर नीचे की तरफ जाता है।
- परिसर के मध्य के एक संगमरमर का टैंक है और साथ ही एक पारम्परिक धूप घड़ी जो दरबार के एक कोने पर स्थित अष्टकोणीय संगमरमर के स्तंभ पर स्थापित की गयी है।
- मस्जिद के अन्दर 3 प्रवेश द्वार है, जिनमे से सबसे बड़ा द्वार परिसर की पूर्वी तरफ स्थित है जिसे मुख्य द्वार भी कहा जाता है। दक्षिणी और उत्तरी छोर पर बाकी दो अतिरिक्त द्वार हैं।
- मुख्य इबादत कक्ष के एक हिस्से को जालियों से ढका गया है, जिससे मुग़ल महिलाएं भी इस इबादत खाने में इबादत कर सकें। इन जालियों का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है।[1]
- दुनिया में स्थित सभी मस्जिदों के मंच में 3 सीढ़ियां होती हैं, लेकिन ये एकमात्र ऐसी मस्जिद है जिसमें चार सीढ़ियां हैं।
- यहाँ गुम्बंददार खोखो से बनी एक श्रृंखला है, जिनका निर्माण मुख्य तौर पर हिन्दू वास्तुकला से प्रेरित होकर किया गया था।
- यह मस्जिद मुग़ल शासनकाल में बनी सबसे महँगी वास्तुकलाओं में से एक है। उस समय इसकी कुल निर्माण लागत 1,60,000 रूपए थी।
- इस मस्जिद की वास्तुशिल्प शैली की कुछ विशेषताएं मास्को स्थित संत बासिल कैथिडरल से काफी मिलती-जुलती है।
- मुग़ल काल में बनी सभी इमारतों की ही तरह इस मस्जिद का निर्माण भी सममितीय डिजाइन से किया गया है, जो देखने में बहुत ही आकर्षक लगती है।
- यह मस्जिद यमुना नदी के किनारे पर आगरा शहर के करीब ही स्थित है।
- समिति द्वारा मस्जिद में प्रवेश करने के लिए कुछ शुल्क निर्धारित किये हुए है जिनके अनुसार भारतीय नागरिकों का शुल्क 20 रुपए और विदेशी पर्यटकों को 750 रूपए का शुल्क अदा करना होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 मोती मस्जिद आगरा का इतिहास, निर्माण, वास्तुकला और तथ्य (हिंदी) samanyagyan.com। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2022।
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