साहिब सिंह वर्मा

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साहिब सिंह एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- साहिब सिंह (बहुविकल्पी)
साहिब सिंह वर्मा
साहिब सिंह वर्मा
साहिब सिंह वर्मा
पूरा नाम साहिब सिंह वर्मा
जन्म 15 मार्च, 1943
जन्म भूमि दिल्ली
मृत्यु 30 जून, 2007
मृत्यु स्थान राजस्थान
मृत्यु कारण सड़क दुर्घटना
पति/पत्नी साहिब कौर
संतान 2 पुत्र व 3 पुत्रियाँ
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी भारतीय जनता पार्टी
पद चौथे मुख्यमंत्री, दिल्ली
कार्य काल मुख्यमंत्री-27 फ़रवरी, 1996 - 12 अक्टूबर, 1998 तक
शिक्षा लाइब्रेरी साइंस
विद्यालय अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
अन्य जानकारी सन 1977 में साहिब सिंह वर्मा पहली बार दिल्ली नगर निगम के पार्षद चुने गये। पार्षद के पद की शपथ उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी गुरु राधा किशन के नाम पर ली थी।

साहिब सिंह वर्मा (अंग्रेज़ी: Sahib Singh Verma, जन्म- 15 मार्च, 1943; मृत्यु- 30 जून, 2007) भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष व तेरहवीं लोक सभा के सांसद थे। वर्ष 2002 में उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में श्रम मन्त्री नियुक्त किया था। साहिब सिंह वर्मा 1996 से 1998 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री भी रहे। साहिब सिंह वर्मा का निधन एक मार्ग दुर्घटना में उस समय हो गया, जब वह राजस्थान के सीकर ज़िले में एक विद्यालय की आधारशिला रखकर वापस दिल्ली आ रहे थे। 1999 का लोकसभा चुनाव साहिब सिंह वर्मा ने बाहरी दिल्ली सीट से दो लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीता था। नौकरशाही पर लगाम लगाए हुए उन्होंने 'कर्मचारी भविष्य निधि' पर ब्याज की दरों को कम करने से रोका। उनके इस काम को ए बुल इन चाइना शॉप कहकर सराहा गया था।

परिचय

दिल्ली-हरियाणा सीमा पर बसे गांव मुंडका के किसान परिवार में पैदा हुए साहिब सिंह ने ए.एम.यू. से लाइब्रेरी साइंस की पढ़ाई की थी। यहीं दाखिले के वक्त एक प्रोफेसर की सलाह पर उन्होंने अपने नाम में 'वर्मा' जोड़ लिया। डिग्री लेकर लौटे साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली की म्यूनिसिपैलिटी की लाइब्रेरी में नौकरी मिल गई। दिल्ली की महानगर पालिका में शुरू से ही जनसंघ का दबदबा था। जनसंघ में संघ का और संघ के स्वयंसेवक थे साहिब सिंह वर्मा। आपात काल के दौर में वॉरंट के बाद भी वह गिरफ्तारी से बचे रहे। मोरारजी देसाई की सरकार के दौरान दिल्ली में स्थानीय निकाय चुनाव हुए तो साहिब सिंह ने डेब्यू किया। केशवपुरम वॉर्ड से पार्षद बने। अस्सी के दशक में उनकी जीत भी दुबारा हुईं और बीजेपी संगठन में कद भी बढ़ा।

राजनीतिक सफर

सन 1977 में साहिब सिंह वर्मा पहली बार दिल्ली नगर निगम के पार्षद चुने गये। पार्षद के पद की शपथ उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी गुरु राधा किशन के नाम पर ली थी। प्रारम्भ में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन जनता पार्टी के टूटने के बाद वे भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी की हैसियत से चुनाव जीते। मदन लाल खुराना की सरकार में उन्हें सन 1993 में शिक्षा और विकास मन्त्रालय का महत्वपूर्ण मन्त्रीपद सौंपा गया, जिस पर रहते हुए उन्होंने कई अच्छे कार्य किये। इसका यह परिणाम हुआ कि 1996 में जब भ्रष्टाचार के आरोप में मदन लाल खुराना ने त्याग पत्र दिया तो दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान साहिब सिंह को ही दी गयी। न्यायालय द्वारा खुराना को भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त कर दिये जाने के बावजूद साहिब सिंह लगभग ढाई वर्ष तक मुख्यमन्त्री बने रहे। माना जाता है कि इससे खुराना नाराज चल रहे थे। आगे चलकर जब दिल्ली में प्याज के दामों में बेतहाशा बृद्धि हुई और उस पर नियन्त्रण नहीं हुआ तो साहिब सिंह को मुख्यमन्त्री पद से हटाकर सुषमा स्वराज को उस कुर्सी पर बिठाया गया। उन्होंने सरकारी आवास तत्काल खाली कर दिया और परिवार सहित उसी समय अपने गाँव आ गये।

साहिब सिंह वर्मा के इस कार्य से जनता में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ काफी तेज़ीसे बढा और 1999 का लोकसभा चुनाव उन्होंने बाहरी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से दो लाख से अधिक मतों के अन्तर से जीता। 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने एनडीए सरकार में उन्हें श्रम और नियोजन मन्त्रालय का दायित्व सौंपा। उन्होंने ब्यूरोक्रेसी के पेंच कसते हुए कर्मचारी भविष्य निधि पर ब्याज की दरों को कम करने से रोका। उनके इस कार्य की मीडिया ने "ए बुल इन चाइना शॉप" कहकर सराहना की। इसके वाबजूद वे 2004 का लोक सभा चुनाव हार गये। दिल्ली के शिक्षक समुदाय में साहिब सिंह काफी लोकप्रिय थे। 'हरीभूमि' के नाम से प्रकाशित होने वाला एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र उन्हीं के स्वामित्व में निकलता था।

मृत्यु

मुख्यमंत्री रहते हुए भी साहिब सिंह वर्मा सादगी भरा जीवन जीते थे। मोरी गेट के सरकारी विद्यालय में आम इंसानों की तरह घूमते हुए मिल जाते थे। स्कूल और शिक्षा से इतना जुड़ाव था कि जिस समय उनकी कार की टक्कर हुई, उस समय 30 जून, 2007 को सीकर ज़िला, राजस्थान में नीम का थाना में एक विद्यालय की आधारशिला रखकर वापस दिल्ली आ रहे थे। दुर्घटना में उनके कार चालक देवेश, सहायक नरेश अग्रवाल, सुरक्षाकर्मी जसवीर सिंह भी शिकार बने, जिन्हें उपचार के दौरान बचाया नहीं जा सका।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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