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*विद्या, धन एवं युद्ध में सिद्धि (सफलता) की प्राप्ति होती है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 525-529, [[स्कन्दपुराण]] से उद्धरण); स्मुतिकौस्तुभ (210-216); पुरुषार्थचिन्तामणि (95); व्रतराज (143-151)।</ref> | *विद्या, धन एवं युद्ध में सिद्धि (सफलता) की प्राप्ति होती है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 525-529, [[स्कन्दपुराण]] से उद्धरण); स्मुतिकौस्तुभ (210-216); पुरुषार्थचिन्तामणि (95); व्रतराज (143-151)।</ref> | ||
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10:56, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर या जब श्राद्ध एवं भक्ति से प्रेरित कोई हर्षपूर्ण जागरण हो तो गणेश जी के लिए किया जाता है। *इस व्रत में तिलयुक्त जल से स्नान करना चाहिए।
- गणेश की हिरण्य या रजत की प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए।
- पंचामृत से प्रतिमा का स्नान करना चाहिए।
- गंध, पुष्पों, धूप, दीपों एवं नैवेद्य का अर्पण करना चाहिए।
- 21 मोदक प्रतिमा के समक्ष रखे जाते हैं, एक गणेश के लिए, 10 पुजारी तथा 10 कर्ता के लिए।
- विद्या, धन एवं युद्ध में सिद्धि (सफलता) की प्राप्ति होती है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 525-529, स्कन्दपुराण से उद्धरण); स्मुतिकौस्तुभ (210-216); पुरुषार्थचिन्तामणि (95); व्रतराज (143-151)।
संबंधित लेख
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